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भारत और रूस के संबंध

भारत-रूस संबंध

दिसम्बर 1991 में सोवियत संघ के पूर्ण विघटन होने के बाद 9 सोवियत गणतन्त्रों द्वारा स्वतंत्र राष्ट्रों का एक राष्ट्रमंडल स्थापित किया गया। कानूनी रूप में रूस भू० पू० सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में निषेधाधिकार तथा स्थायी सदस्यता रूस को दे दी गई। सोवियत संघ परमाणु शस्त्र भण्डार की चाबी भी भू0 पू0 सोवियत संघ के राष्ट्रपति गोर्बाच्योव द्वारा रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन को सौंप दी गई। सोवियत संघ के विघटन से भारत को बहुत हानि हुई क्योंकि इसकी समाप्ति का इसके लिए अर्थ था, उच्च कोटि के व्यापारिक-औद्योगिक तथा तकनीकी सम्बन्धों और सुरक्षा शस्त्रों की आपूर्ति के युग का अन्त। भारत के लिए अपनी सुरक्षा मशीनरी तथा विमानों के पुों की प्राप्ति का विषय एक सिर दर्द बन गया। सोवियत संघ जैसी महाशक्ति की प्रगाढ़ मित्रता तथा सहयोग के अन्त से, वह भी एक ऐसे समय में जब पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर तथा पंजाब में युद्ध जैसी स्थिति बनाए हुए था जो कि किसी भी समय वास्तविक युद्ध में परिवर्तित हो सकती थी, सुरक्षा साधनों की आपूर्ति की समस्या ने भारत के विदेश-सम्बन्धों को सीमित कर दिया था। 1989-91 में भारत सोवियत संघ की दुर्बलता तथा अस्थिरता से उत्पन्न समस्या को भली-भांति भांप गया था। तभी इसने रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के साथ घनिष्ठता स्थापित करने के प्रयत्न आरम्भ कर दिये थे। तथापि सोवियत संघ के अस्तित्व के बने रहने तक भारत के लिए राष्ट्रपति गोर्बाच्योवं तथा राष्ट्रपति येल्तसिन के साथ सम्बन्धों में संतुलन बनाये रखना कठिन था, क्योंकि दोनों के बीच काफी मतभेद थे।

नवम्बर 1991 में भारत के विदेशी मामलों के मंत्री श्री माधव सिंह सोलंकी ने सोवियत संघ की यात्रा की तथा अपने सम्बन्धों को फिर से ढर्रे पर लाने के प्रयत्न किये जो सोवियत संघ के भूक्षेत्रों की पुनः संरचना कारण पटरी से उतर गये थे।उसने सोवियत संघ के अधिकारियों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने तथा सोवियत संघ की तुलना में रूस के साथ सम्बन्धों की स्थिति का पहले से ही अन्दाजा लगाने के लिए इस अवसर का लाभ उठाया। वे सोवियत तथा रूसी प्रशासनों, दोनों के ही अधिकारियों से मिले। इस यात्रा से उन्हें सोवियत संघ की बुनियादी स्थिति का पता चल गया। उस समय यहां के सभी सोवियत गणराज्यों ने भारत के साथ व्यापार करने की रुचि तथा रुपया-रूबल समानता जैसी समस्याओं के लिए, जब कभी आवश्यकता हो, उपाय सुझाने का विश्वास दिलाया, वहां रूस कीसरकार ने यह घोषणा की कि रूस अपने देश की धरती पर तीसरे देशों तथा सोवियत संघ के द्वारा व्यापार करने के लिए किये गये विशेष समझौतों को मान्यता नहीं देगा। (ऐसे समझौतों में भारत तथा सोवियत संघ का रुपया-रूबल समझौता भी शामिल था)। यहाँ तक कि जब मि0 सोलंकी मास्को में ही थे, रूसी विदेश मंत्री केसीरोव ने टी0 वी0 साक्षात्कार में कहा कि रूस भारत के साथ स्वेच्छा से कूटनीतिक सम्बन्ध बनाना चाहेगा, इस कथन का अर्थ यह था कि शेष सोवियत गणतंत्रों के लिए भी ऐसा करने के दरवाजे खुले हैं। इसलिए इस यात्रा से 1991 की रूस की राजनीतिक व्यवस्था का परिवर्तित तथा ढीला-ढाला स्वरूप प्रकाश में आया तथा इसके साथ साथ ही रूस के साथ भारत के सम्बन्धों के विकास के रास्ते में आने वाली सम्भावित कठिनाइयों का भी पता चला।

भारत-रूस सम्बन्धों के कारक

जब दिसम्बर 1991 में सोवियत संघ पूर्णतया विघटित हो गया तो रूस के साथ सम्बन्धों की स्थापना भारत के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो गई क्योंकि रूस भूतपूर्व सोवियत संघ का सबसे बड़ा तथा शक्तिशाली गणतन्त्र राज्य था, जो सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना था तथा जिसके साथ भारत का 70% व्यापार चलता था। रूस के राष्ट्रपति येल्तसिन ने यह कहने में तनिक भी देर नहीं की कि उनका विश्वास है कि भारत को दिये गये वचन पूरे किए जाएंगे। फिर भी उस समय भारत, रूस की अर्थव्यवस्था की बिगड़ी हुई स्थिति, स्पष्ट रूसी नीति का अभाव, भारत की सुरक्षा आवश्यकताओं के पूरा करने की रूस के सामर्थ्य के बारे में जानकारी का अभाव, यथार्थवादी विनिमय दर के निर्धारण के साथ सम्बन्धित समस्या तथा रुपया-रूबल व्यापार समस्या के कारण, अनिश्चय की स्थिति में था।

भारत के लिए रूसी सैनिक मशीनों के पुों की आपूर्ति की समस्या रूसी रूबल तथा रुपये की विनिमय दर के निर्धारण की समस्या, व्यापार सम्बन्ध पुनः स्थापित करने की समस्या तथा भूतपूर्व सोवियत संघ के गणतन्त्रों के साथ सम्बन्धों से सम्बन्धित गम्भीर मुद्दों पर असहमतियों को दूर करने की समस्या थी। ऐसी कठिनाइयों पर नियंत्रण पाने के लिए भारत ने तात्कालिक कदम उठाये।

भारत-रूस सम्बन्धों का आरम्भ

1992 के आरम्भ में भारत तथा रूस ने आर्थिक सम्बन्धों को पुनः स्थापित करने के लिए दृढ़ कदम उठाये जो कि भू0 पू0 सोवियत संघ में अप्रत्याशित राजनीतिक उथल-पुथल तथा विघटन के कारण टूट गये थे। विशेषतया आर्थिक क्षेत्र में भारत-रूस सम्बन्धों को तर्क-संगत बनाने के लिए दृढ़ प्रयत्न किये गये। रुपया-व्यापार (भारतीय मुद्रा का विनिमय इकाई के रूप में प्रयोग) को समाप्त करने तथा कठोर मुद्रा का प्रयोग करने का निर्णय लिया गया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि पुरानी रुपया-रूबल समानता के निर्धारण तथा पुनः निर्धारण की समस्या से छुटकारा पाया जा सके। यह निर्णय इसलिए भी आवश्यक था क्योंकि दोनों ही देश मंडीकृत आर्थिक व्यवस्था के रास्ते पर चल पड़े थे, जिसमें दोनों पर विदेशी मुद्रा की आवश्यकता अधिक आ पड़ी थी। भारत-रूस व्यापार सरकारी एकाधिकार से भी मुक्त किया गया था। दोनों ही देशों ने निजी कम्पनियों को वस्तुओं को खरीदने तथा बेचने के लिए एक-दूसरे के देश के बाजार में प्रवेश करने की अनुमति दी थी। इस निर्णय से भारत तथा रूस के बीच आयात-निर्यात सम्बन्धों को बल मिला। इसके अतिरिक्त अपनी दिल्ली की यात्रा के दौरान रूस के विदेश मंत्री गेनेडी बरबुलिस ने यह वायदा किया कि रूस भारत को सुरक्षा कार्यों के लिए प्रयुक्त होने वाली मशीनों के पुर्जी की निर्विघ् आपूर्ति करता रहेगा।

क्रायोजेनिक इंजनों की आपूर्ति का मुद्दा

जनवरी 1991 में भारत तथा भू0 पू0 सोवियत संघ ने सोवियत अन्तरिक्ष संस्था ग्लावकोसमोस द्वारा भारत को क्रायोजेनिक राकेट इंजनों की आपूर्ति के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। भारत ने इन इंजनों का प्रयोग अन्तरिक्ष में उपग्रह छोड़ने के लिए करना था। रूस ने इस समझौते को बनाये रख कर लोगों को बताया था। मि0 एवनम ने भी भारत के साथ व्यापार को सामान्य करने की अपनी प्रकार की इच्छा प्रकट की थी और भारतीय राजदूत को यह विश्वास दिलाया था कि इस वर्ष के अन्त तक रूस, पिछले महीने के समझौते के अनुसार भेजे जाने वाले 10 लाख टन कच्चे तेल के अतिरिक्त 20 लाख टन और कच्चा तेल भेजेगा। रूस ने 1993 में भी 30 लाख टन तेल भारत भेजने का निर्णय किया था। उन्होंने क्रायोजेनिक इंजन भारत को बेचने के समझौते को पूरा करने की अपनी सरकार की वचनबद्धता की पुष्टि की और कहा था कि इस मामले में रूसी सरकार को अपनी संसद् का पूर्ण समर्थन प्राप्त था, लेकिन बाद में अमरीकी दबाव में आकर रूस ने यह करार स्थगित कर दिया।

मि० गोन्सालविस ने भी कहा कि रूसी नेताओं ने उन्हें विश्वास दिलाया था कि रूस के दीर्घकालीन सामरिक हित भारत के साथ अच्छे सम्बन्ध स्थापित करने में ही समाहित थे। एशिया, विशेषतया भारत, चीन, दक्षिण कोरिया तथा टी के पक्ष में रूस की विदेश नीति में थोड़े से झुकाव की ओर इंगित करते हुए सेवामुक्त हो रहे राजदूत ने कहा कि दोनों देशों के बीच प्रतिरक्षा सम्बन्ध सामान्य सम्बन्धों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते रहेंगे क्योंकि दोनों को यह विश्वास था कि दोनों देश मिलकर विश्व के नाजुक क्षेत्रों तथा केन्द्रीय एशिया तथा पश्चिमी एशिया में प्रमुख भूमिका निभा सकते थे।

यह स्पष्ट करते हुए कि भारत तथा रूस के सम्बन्ध अपनी उड़ान सीमा तक पहुंच चुके थे तथा अनिश्चितता का दौर समाप्त होचुका था, मि0 गोन्सालविस ने कहा था कि दोनों देशों के बीच आने वाले समय में प्रतिरक्षा तथा ऊर्जा के क्षेत्र में और इसके साथ-साथ दीर्घकालीन योजनाओं के क्षेत्र में सहयोग बना रहेगा। रूस व्यापार तथा सुरक्षा योजनाओं को वित्तीय सहायता देता रहेगा। उन्होंने कहा, “प्रतिरक्षा के लिए वित्तीय सहायता एक बड़ा कदम है, ऐसी सहायता किसी अन्य को नहीं दी जा रही।” रूस ने इसके कुछ समय बाद ही भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री शरद पवार की मास्को की यात्रा के दौरान यह बात स्वीकार कर ली।

भारत-रूस सम्बन्धों में एक नया अध्याय, 1993

रूसी राष्ट्रपति येल्तसिन की भारत यात्रा 1993 जनवरी 1993 के अन्तिम सप्ताह में भारत तथा रूस ने 1991-92 की अनिश्चितताओं तथा उथल-पुथल से छुटकारा पाने में सफलता प्राप्त की तथा द्विपक्षीय सम्बन्धों में मैत्री, शांति तथा परस्पर लाभप्रद व्यापार को बढ़ाने के लिए एक नये युग में प्रवेश किया। सम्बन्धों में यह नया मोड़ रूस के राष्ट्रपति मि0 येल्तसिन की 3 दिन की भारत यात्रा के दौरान आया। दोनों ही देश कई गम्भीर समस्याओं को सुलझाने में सफल हुए। इसके अतिरिक्त उन्होंने शांति तथा मैत्री की एक नई संधि की तथा कई अन्य समझौते भी किए। दोनों ही देश सोवियत संघ के विघटन तथा उसके बाद रूस के उत्तराधिकारी राज्य के रूप में उभर कर सामने आने के समय तथा बाद में अपने सम्बन्धों के बीच उत्पन्न खाई को भरने में सफल हुए।

रुपया-रूबल समस्या का समाधान

भारत तथा रूस 15 वर्ष पुराने रुपया-रूबल विनिमय दर गतिरोध को दूर कर सके तथा उन्होंने एक त्रिबिन्दु पैकेज पर समझौता किया ताकि रूस भारत को निर्विघ्न प्रतिरक्षा मशीनों के पुर्जी की आपूर्ति बनाये रख सके। ‘एक निर्णायक तथा स्पष्टवादी’ राजनीतिक समझौते में राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन तथा प्रधानमंत्री पी0 वी0 नरसिम्हा राव ने निर्णय किया कि भारत के कर्जे का पुनः अनुमान लगाने के लिए एक जनवरी 1990 वाली विनिमय दर ही लागू की जायेगी तथा सारा पैकेज पिछले वर्ष अप्रैल से लागू किया जायेगा। विदेशी मामलों के मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि इस प्रकार भारत को पूर्व सोवियत संघ के कर्ज़ों को वापस करते समय 39 प्रतिशत विशुद्ध लाभ होगा जो रूस के अनुमानानुसार सन् 2010 तक 10 अरब डालर देय होगा, जबकि तकनीकी ब्यौरा तैयार किया जा रहा था, भारत को अपना ऋण 40 वर्षों के बीच अदा करना होगा। विनिमय दर 1 जनवरी, 1990 के अनुसार 16 रुपये प्रति रूबल तय की गई थी।

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प्रतिरक्षा तथा व्यापार क्षेत्रों में भारत-रूस संबंध

भारत की स्थल, जल तथा नौसेना द्वारा रक्षा कार्यों में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख रूसी सैनिक साजो-सामान, मशीनों के कलपुर्जो, प्रतिरक्षा के उपकरणों, उत्पादन सहायता, हथियारों के आधुनिकीकरण की सेवाओं की आपूर्ति को निर्विघ्न बनाये रखने के लिए दोनों देशों ने एक विस्तृत समझौता किया। यह लम्बा-चौड़ा समझौता साउथ ब्लॉक में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों तथा अनेक प्रतिनिधियों के बीच 75 मिनट की बातचीत के बाद किया गया।

मि० येल्तसिन ने यह भी घोषणा की कि रूस कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में भारत का समर्थन करेगा। जब श्री राव ने रूस के राष्ट्रपति को बताया कि कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है, तो श्री येल्तसिन ने भारत की एकता तथा भूक्षेत्रीय अखण्डता के लिए अपने देश के समर्थन की भी घोषणा की।

भारत तथा रूस ने धार्मिक कट्टरवाद द्वारा पेश उन खतरों के बारे में भी विचार-विमर्श किया, जिनके कारण विश्व के विभिन्न भागों में हिंसा तथा आतंकवाद फैला हुआ था। पाकिस्तान का हवाला देते हुए, प्रधानमंत्री ने सीमा पार के राज्य द्वारा प्रायोजित आतंकवाद की धमकी और खतरे का भी जिक्र किया।

इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने यह भी स्वीकार किया कि उनके बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाया जायेगा तथा यह व्यापार 1993 तक 2.5 अरब डालर तथा 1994 तक 3.5 अरब डालर तक पहुंच सकता था।

राष्ट्रपति येल्तसिन ने भारत के व्यापारियों को रूस की मंडियों में छा जाने के लिए आमंत्रित किया क्योंकि अब दोनों देशों के बीच की अधिकतर आर्थिक तथा व्यापार सम्बन्धी समस्यायें सुलझा ली गई थीं।

शीत युद्ध के समाप्त होने के साथ, मि० येल्तसिन ने बताया, रूस अब राजनीतिक या आर्थिक गुटों की नीति का पालन नहीं करेगा। इसके स्थान पर वह स्वतन्त्र विदेश नीति अपनाएगा। इसमें गुट बनाने की अपेक्षा द्विपक्षीय आधारों पर सम्बन्धों की स्थापना पर बल दिया जायेगा। उन्होंने कहा कि हम “राजनीतिक षड्यंत्रों के लिए आभरत का प्रयोग नहीं करेंगे।

भारत तथा रूस दोनों ने यह स्वीकार किया कि वे सब प्रकार के आतंकवाद, संगठित अपराध तथा अवैध शस्त्र व्यापार का सामना करने के लिए अपनी कार्यवाहियों को समन्वित करेंगे तथा सूचना तथा अनुभवों का आदान-प्रदान करेंगे। भारतीय गृह मंत्रालय तथा रूसी संघ के सुरक्षा मंत्रालय के बीच 29 जनवरी, 1993 को इस आशय का एक समझौता भी किया गया था।

समझौते के अनुसार दोनों देश अवैध अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक कार्यवाहियों तथा तस्करी पर नियंत्रण करने के लिए सूचना का आदान-प्रदान करेंगे तथा अपराध करने वाले संदिग्ध व्यक्तियों, जिन की जांच-पड़ताल दोनों देशों के अधिकार क्षेत्र में होगी, को खोजने के लिए एक-दूसरे की सहायता करेंगे। वे अपने राजनयिकों तथा वाणिज्य दूतों तथा उनके स्टाफ की तथा ऐसे व्यक्ति जिसे दोनों देशों ने विशिष्ट सुरक्षा प्रदान कर रखी हो, की सुरक्षा को निश्चित बनाने के लिए एक-दूसरे की सहायता करेंगे तथा आपस में ताल-मेल स्थापित करेंगे।

भारत तथा रूस दोनों ने ही परस्पर हितों के क्षेत्र में संयुक्त वैज्ञानिक अनुसंधान तथा प्रकाशन सामग्री तथा अनुसंधान के परिणामों व वैज्ञानिक तथा तकनीकी सूचना और दूसरी सामग्री के आदान-प्रदान करने के बारे में समझौता किया। समझौते के अनुसार, कोई भी सूचनाएं तथा सामग्री, जो दोनों देशों के जानने योग्य होंगी तथा उनके सहयोग की सीमा तथा विषय-वस्तु में होगी, गुप्त होगी तथा जो समझौता करने वाले देशों की अनुमति या ऐसी सूचना देने वाले देश की प्रार्थना पर ही या सहमति के साथ ही किसी भी अन्य देश को दी जाएंगी। यदि यह सूचना किसी तीसरे देश को देनी आवश्यक होगी तो सूचना देने वाले देश की लिखित अनुमति आवश्यक होगी। प्रभावशाली संचार व्यवस्था पर समझौते के अन्तर्गत समन्वय एवं सहयोग कायम रखने के लिए दोनों देश पारस्परिकता के आधार पर एक प्रतिनिधि सम्पर्क अधिकारी नियुक्त करेंगे।

मित्रता तथा सहयोग की नई सन्धि, आने वाले 20 वर्षों में भारत-रूस सम्बन्धों का निर्धारण करने के लिए की गई। इसके अनुसार यह निर्धारित किया गया कि भारत तथा रूस, कोई भी ऐसा कार्य नहीं करेंगे जो एक-दूसरे के सुरक्षा हितों को बुरी तरह प्रभावित करे।

सन्धि के अनुसार दोनों देश व्यापक तबाही करने वाले शस्त्रों को समाप्त करने तथा परमाणु निःशस्त्रीकरण की प्रक्रिया का समर्थन करने की आवश्यकता पर भी सहमत हुए। इसके साथ ही दोनों देशों ने कम से कम ऐसी आवश्यक प्रतिरक्षा सामर्थ्य रखने की आवश्यकता पर भी बल दिया जोकि इस क्षेत्र तथा विश्व में सुरक्षा तथा स्थायित्व को सुदृढ़ करेगी।

यह सन्धि जो रूस के 1991 में स्वतन्त्र गणतन्त्र बनने के बाद भारत-रूस सम्बन्धों को निर्देशित करने वाला एक पहला प्रमुख दस्तावेज था, दोनों देशों की संसदों द्वारा पुष्टि के बाद 20 वर्षों तक वैध रहनी थी।

इस सन्धि, जिसमें सुरक्षा धारा नहीं थी, ने 1971 की भारत-सोवियत सन्थि का स्थान ले लिया। यह सन्धि एक प्रस्तावना से शुरू हुई, जिसमें 1971 की सन्थि का जिक्र था और जिसके अन्तर्गत यह लिखा गया था कि भारत तथा भू० पू० सोवियत संघ किसी भी आक्रमण के समय एक-दूसरे के साथ परामर्श करेंगे तथा एक-दूसरे की सहायता करेंगे।

भारत के प्रधानमंत्री की रूस यात्रा, 1994

भारत-रूस सम्बन्धों को एक स्वस्थ तथा अच्छी दिशा देने के लिए भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव ने जून 1994 में रूस की एक यात्रा की। इस यात्रा के दौरान 9 समझौते तथा दो महत्वपूर्ण घोषणाएं की गई। दोनों देशों ने धार्मिक उग्रवाद के द्वारा राज्य की बहुलता पर आधारित एकता को तोड़ने के प्रयासों की निन्दा की। दोनों ने उग्र-राष्ट्रवाद तथा धार्मिक कट्टरवादी संकीर्णता की शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष करने का प्रण किया। सम्पूर्ण विश्व में परमाणु शस्त्रों की समाप्ति के उद्देश्य में फिर से विश्वास प्रकट किया गया।

दोनों देशों के नेताओं ने अपने द्विपक्षीय सम्बन्धों को बेहतर बनाने का निर्णय लिया। जो 9 समझौते किये गये उनका सम्बन्ध सुरक्षा सहयोग में वृद्धि, 830 मिलियन डालर के सुरक्षा ऋण के कार्यक्रम में वृद्धि, रूस में बने सैनिक हवाई जहाजों के रख-रखाव के लिए संयुक्त उपक्रमों का संगठन, शांतिपूर्ण अंतरिक्ष अनुसन्धान, विज्ञान तथा तकनालॉजी सहयोग, सूचनाओं के आदान-प्रदान, पर्यावरण की सुरक्षा, मौसम विज्ञान, प्रमाणीकरण आदि विषयों से था। क्रायोजेनिक इंजन सौदे के सम्बन्ध में जो खटाई उत्पन्न हुई थी, उसे दूर करने का प्रयास किया गया।

रूसी प्रधानमंत्री की भारत यात्रा

दिसम्बर 1994 में रूसी प्रधानमंत्री श्री विक्टर ने भारत की यात्रा की तथा भारत-रूस सम्बन्धों को दृढ़ बनाने का यत्न किया। द्विपक्षीय सम्बन्धों को विकसित करने के लिए दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों विशेषकर प्रतिरक्षा, तकनालाजी तथा अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्रों में सहयोग के लिए 8 समझौते किये। भारत-रूस सहयोग तथा मित्रता को भविष्य के लिए एक ठोस आधार प्रदान करने के लिए दोनों देशों ने यह समझौते किये। रूस ने भारत को यह आश्वासन दिया कि वह पाकिस्तान को शस्त्र आपूर्ति की इच्छा नहीं रखता। उसने यह मत भी दिया कि पाकिस्तान दूसरे देशों में सक्रिय आतंकवादियों तथा विद्रोहियों को शरण तथा सहायता देने वाला देश रहा है। रूसी प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का समर्थन भी किया। इस यात्रा के बाद जुलाई, 1995 में भारत तथा रूस ने यह निर्णय लिया कि कुंडाकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र के निर्माण को शीघ्रता से पूर्ण किया जायेगा।

भारत-रूस सम्बन्धों की पूर्ण समीक्षा उस समय की गई जब भारत के विदेश मंत्री ने अगस्त, 1995 में रूस की यात्रा की तथा रूसी विदेश मंत्री तथा अन्य अधिकारियों से बातचीत की। इस यात्रा में दोनों देशों के सम्बन्ध और दृढ़ हुए। विदेश मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने यह कहा कि यद्यपि NPT, CTBT तथा कुछ अन्य विषयों पर भारत तथा रूस में मतभेद थे तथापि दोनों देश आपसी सम्बन्धों और सहयोग को बढ़ाने के लिए दृढ़ निश्चय किये हुए हैं और भारत-रूस मित्रता एवं सहयोग आने वाले समय में तीव्रता से विकसित होगा।

मार्च 1996 में भारत रूस ने नई दिल्ली तथा मास्को के बीच लगातार सीधे संचार सम्पर्क तथा शैक्षणिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक विनियमों के लिए दो समझौते किये। भारत यात्रा पर आये रूसी विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि रूस, कश्मीर परभारत के इस पक्ष को मानता है कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा था जिसका हल शिमला समझौते के अन्तर्गत होना था। 1991-98 के मध्य भारत ने रूस से सैनिक साज-सामान तथा हथियारों की खरीद के लिए तथा भारतीय सेना के पास विद्यमान रूसी विमानों के आधुनिकीकरण के लिए कई समझौते किये तथा भारत-रूस मित्रता तथा सहयोग की प्रक्रिया एक स्वस्थ रूप में आरम्भ हो गई तथा दोनों देशों ने यह पहचान लिया कि भविष्य में अधिक सहयोगात्मक सम्बन्धों की स्थापना दोनों देशों के हितों की सुरक्षा के लिए आवश्यक थी।

भारत-रूस सम्बन्ध, 1996-2000

जून 1996 में भारत में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी तथा श्री एच0 डी0 देवगौड़ा प्रधानमंत्री तथा श्री आई0 के0 गुजराल विदेश मंत्री बने। इस सरकार ने भारत-रूस मित्रता तथा सहयोग को बढ़ाने के लिए काफी तीव्र प्रयास किये। 30 नमब्बर, 1996 को दोनों देशों 108 बिलियन मूल्य का समझौता किया जिसके अन्तर्गत रूस ने अति आधुनिक SU 30 MKS विमानों की दो स्क्वॉड्रन भारत को बेच दी। 1990 में सम्पन्न मिग-29 समझौते के बाद यह एक सबसे बड़ा समझौता था तथा इसने प्रतिरक्षा के क्षेत्र में भारत-रूस सम्बन्धों को एक दृढ़ और विस्तृत आधारशिला प्रदान की।

मार्च 1997 में भारतीय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय मंडल रूस की यात्रा पर गया। प्रधानमंत्री श्री देवगौड़ा तथा रूसी राष्ट्रपति श्री येल्तसिन के बीच प्रत्यक्ष वार्तालाप हुआ और यह बात दोहराई गई कि दोनों देश आपसी सहयोग को बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प थे। रूसी राष्ट्रपति ने यह घोषणा की कि रूस पाकिस्तान को शस्त्र आपूर्ति नहीं करेगा तथा उसने उक्रेन को टैंकों के पुर्जो की आपूर्ति रोक दी थी क्योंकि उक्रेन पाकिस्तान को टैंक बेचने का प्रयास कर रहा था। रूस ने यह भी स्वीकार किया कि वह भारत के दो हल्के पानी वाले परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की आपूर्ति करेगा तथा अमरीकी विरोध की परवाह नहीं करेगा। दोनों नेताओं ने भारत-रूस सम्बन्धों की प्रगति पर सन्तोष प्रकट किया तथा इन्हें और तीव्रता से आगे बढ़ाने का निश्चय प्रकट किया। रूस के नेता ने यह कहा कि मास्को यह मानता है कि भारत एशिया के स्थायित्व का एक कारक है तथा महाद्वीप में वह केन्द्रीय भूमिका निभाता है। मास्को भारत के साथ निकटतम सम्बन्ध बनाने के लिए वचनबद्ध है। श्री देवगौड़ा ने भी कहा कि भारत-रूस मित्रता ठोस आधार पर खड़ी है। दोनों देशों ने दोहरे करों की रोक, कस्टम सम्बन्धों में सहयोग तथा सांस्कृतिक और खेल सम्बन्धों में विकास के लिए कई समझौते किये। दोनों देशों ने आपसी हितों के विषयों के साथ-साथ सभी प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों एवं समस्याओं पर विचारों का आदान-प्रदान किया। इसी समय यह बात भी सामने आई कि भारत रूस से लगभग 10 बिलियन डालर का सैनिक साजो-सामान खरीदने को उत्सुक था तथा दोनों देश सामरिक महत्व के सम्बन्ध स्थापित करने के इच्छुक थे। दोनों देशों में वार्षिक शिखर वार्ताएं करने का भी निर्णय लिया गया। यह स्वीकार किया गया कि आपसी द्विपक्षीय संबंधों को सामरिक भागीदारी के स्तर तक ले जाना है। इसका अर्थ यह लिया गया कि आपसी सम्बन्धों के सभी क्षेत्रों –आर्थिक, राजनीतिक तथा प्रतिरक्षा में सहयोग बढ़ाना, अधिक निकट द्विपक्षीय मेलजोल स्थापित करना तथा आपसी रुचि के विषयों क्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय, पर एक समान दृष्टिकोण अपनाना। रूस द्वारा नाटो के विस्तार की आलोचना का भारत ने समर्थन किया तथा रूस ने यह माना कि भारत तथा पाकिस्तान को आपसी समस्याओं को द्विपक्षीय स्तर पर शिमला समझौते में विद्यमान दिशाबोध के आधार पर हल करना होगा।

अक्टूबर 1996 में भारत तथा रूस ने एक प्रतिरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करके अपने द्विपक्षीय सम्बन्धों को अधिक निकटता प्रदान की। दोनों देशों भारत तथा भू0 पू0 सोवियत संघ के मध्य विद्यमान सम्बन्धों के स्तर पर वर्तमान सम्बन्धों को ले जाने का निर्णय भी किया गया तथा भारत-रूस सम्बन्ध 1996-97 के समय उचित एवं आवश्यक रूप में विकसित होते रहे।

1996-99 के दौरान दोनों देशों में एक बार फिर से उच्च स्तरीय सम्बन्ध स्थापित हुए। SU30 MKS तथा परमाणु संयंत्र समझौतों तथा आपसी यायाओं के आदान-प्रदान द्वारा इस सोच को व्यावहारिक रूप दिया गया। भारत-रूस सम्बन्ध एक बार फिर तीव्रता से आगे बढ़े तथा उच्च स्तरीय सहयोगी तथा मित्रतापूर्ण बने रहे। 1998 के आरम्भ में रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने भारत की यात्रा करनी थी परन्तु भारतीय लोकसभा के चुनावों की प्रक्रिया आरम्भ हो जाने के कारण यह यात्रा स्थगित करनी पड़ी।

मार्च 1998 में भारत में श्री वाजपेयी के नेतृत्व में बी0 जे0 पी0 गठबन्धन सरकार का गठन हुआ तथा इस सरकार ने भी रूस के साथ सभी क्षत्रों में सहयोग तथा मित्रता को और दृढ़ बनाने की नीति का अनुसरण और भी तेजी से किये जाने की घोषणा की।

मई 1998 में जब भारत ने पाँच परमाणु विस्फोट किये तो रूस के नेताओं ने कहा कि इससे वे निराश हुए थे। लेकिन रूस ने भारत के विरुद्ध न तो आर्थिक प्रतिबंध लगाए तथा न ही इस बात पर सहमति प्रकट की कि जी-8 देशों को मिल कर ऐसा करना चाहिए। हाँ जून 1998 में जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत तथा पाकिस्तान के परमाणु परीक्षणों की आलोचना की तो रूस ने भी इस पर सहमति व्यक्त की परन्तु इसके साथ ही रूस ने भारत के साथ द्विपक्षीय सम्बन्धों के सभी क्षेत्रों में प्रगति करने के प्रयास जारी रखे। दोनों देशों ने जून 1998 में प्रतिरक्षा के क्षेत्र में सहयोग की समीक्षा के लिए उच्च स्तरीय बैठक की तथा रूस ने भारत को प्रतिरक्षा सामान बेचने की अपनी नीति को स्पष्ट रूप में घोषित किया। भारतीय परमाणु विस्फोटों द्वारा उत्पन्न स्थिति के बाद भी दोनों देशों ने आपसी हितों के हित में कार्य जारी रखा तथा भारत-रूस सहयोग ने अपनी विकास गति बनाई रखी। जून 1998 में श्री ब्रजेश मिश्र की रूस यात्रा के बाद यह आशा दृढ़ रूप में उभर कर सामने आई कि शीघ्र ही भारत तथा रूस में सामरिक महत्व के सम्बन्धों का व्यवस्थित विकास होगा। रूस ने भारत को दो परमाणु ऊर्जा संयंत्र बेचने के अपने निर्णय को बनाये रखा तथा भारत-रूस सम्बन्ध पहले की तरह ही विकसित होते रहे।

दिसम्बर 1998 में रूस के प्रधानमंत्री श्री प्रिमकाव ने दो दिन के लिए भारत की यात्रा की तथा भारत-रूस सम्बन्धों के क्षेत्र में अधिक मित्रता एवं सहयोग के लिए वार्तालाप भी किया तथा कई समझौतों पर हस्ताक्षर भी किये। पी-5 देशों में से रूसी प्रधानमंत्री वह पहला नेता था जिसने पोखरन II परमाणु विस्फोटों तथा उस पर तीव्र विश्व प्रतिक्रिया के बाद के वातावरण में उभर रही अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में आर्थिक और राजनीतिक सम्बन्धों में स्थिरता लाने के लिए एक पहल की। रूस तथा भारत ने यह घोषणा की कि 1999 में अगली शिखर वार्ता में एक सामरिक भागीदारी की घोषणा करेंगे जो कि भारत-रूस भागीदारी को निर्देशित करेगी तथा इसमें उन्नति करेगी। दोनों देशों ने, अमरीकी दबाव की परवाह न करते हुए, एक दीर्घकालीन सन् 2010 तक का सैनिक-तकनीकी सहयोग समझौता किया। आर्थिक, औद्योगिक तथा राजनीतिक सहयोग के क्षेत्रों को अधिक विकसित करने के लिए भी समझौते किये गये। रूस ने भारत के इस दावे का समर्थन किया कि इसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बना दिया जाना चाहिए। रूसी विमानवाहक युद्धपोत एडमिरल ‘गोशकोव’ की भारत द्वारा खरीदने की सम्भावना के मुद्दे पर भी एक याद-पत्र पर हस्ताक्षर किये गये।

इस यात्रा ने भारत-रूस सम्बन्धों को अधिक गति एवं गरिमा प्रदान की। प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी द्वारा प्रयुक्त शब्दों से यह बात स्पष्ट दिखाई दी—“रूस के साथ सम्बन्धों के प्रति एक राष्ट्रीय सहमति पाई जाती है तथा भारत के सभी राजनीतिक दल इसका समर्थन करते हैं। हमें प्रसन्नता है कि रूस के सम्बन्ध में भी ऐसा ही कहा जासकता है।” अप्रैल 1999 में भारतीय संसदीय मंडल ने रूस की यात्रा की तथा दोनों देशों के बीच आपसी समझ को और भी विकसित किया। 29 अक्टूबर, 1999 को भारत तथा रूस ने इलेक्ट्रॉनिक्स कम्प्यूटर तथा सूचना तकनोलॉजी के क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए एक आचरण पत्र पर हस्ताक्षर किये। 22 मार्च, 1999 को भारत और रूस ने आपसी सैनिक सहयोग बढ़ाने के सम्बन्ध में एक समझौता किया। इस द्वारा सन् 2010 तक रूस द्वारा भारत को उच्च स्तर के शस्त्रों की आपूर्ति की सम्भावना के सम्बन्ध में एक समझौता किया गया। अप्रैल 1999 में रूस ने भारत को SU-30 MKS लड़ाकू हवाई जहाजों की दूसरी खेप भेजी। भारत-पाक कारगिल युद्ध के सम्बन्ध में रूस ने स्पष्ट रूप से पाकिस्तान को दोषी माना तथा भारतीय सैनिक कार्यवाही को आवश्यक माना।

रूस ने भारत को CTET पर हस्ताक्षर करने की सलाह तो दी परन्तु इसके लिए भारत पर दबाव न डालने की नीति अपनाये रखी। रूस ने यह भी विचार दिया कि भारत-रूस सामरिक सम्बन्धों को विकसित करना चाहिए तथा यह भी कहा कि भारत-रूस-चीन को परिवर्तित विश्व व्यवस्था में सामरिक सहयोग बढ़ाना चाहिए। परन्तु ऐसे कथन अस्पष्टता के आवरण में ढके रहे। मई 1999 में भारत के विदेश मंत्री श्री जसवन्त सिंह ने रूस का दौरा किया तथा इसके दौरान दोनों देशों के सम्बन्धों को और भी दृढ़ बनाने का सफल प्रयास किया गया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता के लिए भारत के दावे का रूस ने समर्थन किया। बाद में पैरिस में विदेश मंत्री श्री जसवन्त सिंह ने कहा कि आगामी कुछ महीनों में भारत तथा रूस एक सामरिक सम्बन्ध समझौता करेंगे। जुलाई 1999 में भारत तथा रूस ने एक आर्थिक आचार समझौते पर हस्ताक्षर किये ताकि रुपया-रूबल कर्ज निधि का भारत में चल रहे कुछ प्रोजेक्टों पर निवेश किया जा सके। दोनों देशों ने नागरिक उड्डयन क्षेत्र में हल्के तथा मध्य श्रेणी के यात्री हवाई जहाजों के निर्माण में आपसी सहयोग को बढ़ाने के सैद्धांतिक रूप में स्वीकार किया। रूस ने भारतीय इस्पात तथा लोहा कम्पनियों के आधुनिकीकरण तथा कोडाकुंडम (तमिलनाडु) में 2000 मेगावाट के परमाणु संयंत्र विकास में निवेश करने की इच्छा प्रदर्शित की। भारतीय मिग-21 हवाई लड़ाकू जहाजों के आधुनिकीकरण के प्रोग्राम अधीन रूस ने एक अति आधुनिक राडार युक्त हवा सेओ हवा में मार करने वाली मिसाइल का अगस्त 1999 में परीक्षण किया।

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