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भारत-पाक सम्बन्ध (1991-98) का स्वरूप

भारत-पाक सम्बन्ध (1991-98) का स्वरूप

जून 1991 में जब भारत में पुनः कांग्रेस (आई) की सरकार बनी तथा श्री पी० वी० नरसिम्हा राव प्रधानमन्त्री बने तो एक बार फिर से भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों को सामान्य बनाने पर बल दिया गया। इसके लिये दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों की छः बार अलग-अलग स्थानों पर तथा अलग-अलग अवसरों पर बैठकें हुईं परन्तु कोई विशेष सफलता प्राप्त न की जा सकी। 30 जून, 1992 को अपने एक वर्ष के कार्यकाल के पूरा हो जाने के बाद की गई प्रैस कान्फ्रेंस में बोलते हुए प्रधानमन्त्री श्री नरसिम्हा राव ने विशेषरूप से कहा कि, “यद्यपि अपने पड़ोसियों के साथ मधुर सम्बन्ध स्थापित करने में हमारी गहरी दिलचस्पी रंग ला रही है, तथापि पाकिस्तान के साथ हमारा अनुभव निराशाजनक है।” हम यही कथन और भी अधिक बलपूर्वक 1991-98 तक के वर्षों के लिये भी दोहरा सकते हैं। पाकिस्तान द्वारा कश्मीर के उग्रवादियों को समर्थन तथा उन्हें दी जा रही सहायता के साथ-साथ 6 दिसम्बर, 1992 को अयोध्या की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के समय पाकिस्तानी शासकों के भारत विरोधी प्रचार, पाकिस्तान के अड़ियल तथा भारत विरोधी रुख ने उत्तर-शीत युद्ध काल में भारत-पाक के मध्य सम्भावित सहयोग तथा मित्रता की समस्त प्रक्रिया व्यर्थ कर दी। पाकिस्तान के भारत विरोधी स्वभाव एवं प्रचार में कोई कमी नहीं आई।

भारतीय नेताओं के साथ अपनी बैठकों में पाकिस्तानी अधिकारियों ने नम्रतापूर्वक बातचीत तो की परन्तु उनके शांतिपूर्वक बात करने की धारणा गलत सिद्ध हो जाती रही। दोनों ‘देशों के प्रधानमन्त्रियों में बातचीत के कई दौर तथा फिर सचिव स्तर की बातचीत के भी कई दौर इसी ढंग के बने रहे। हरारे में कामनवैल्थ शिखर सम्मेलन में दोनों प्रधानमन्त्रियों ने भविष्य में परिवक्व राजनीतिक सम्बन्धों तथा समझबूझ के साथ काम करना स्वीकार किया। परन्तु नवाज शरीफ की पाकिस्तान वापसी पर पाक सेना ने भारत के कारगिल सैक्टर की एक बाहरी चौकी पर आक्रमण कर दिया। उनकी सरकार ने कश्मीरियों द्वारा वास्तविक नियन्त्रण रेखा पार करने का समर्थन किया तथा पाकिस्तान के क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड (Cricket Control Board) ने भारत में होने वाली पाँच दिवसीय क्रिकेट मैचों की श्रृंखला को अनिश्चित काल के लिए रद्द कर दिया। 1991 से 1998 तक के भारत-पाक सम्बन्ध ऐसे ही चलते रहे। 6 दिसम्बर, 1992 की अयोध्या दुर्घटना के बात से पाकिस्तान विवादास्पद ढांचे के गिराए जाने को लेकर मुस्लिम देशों को अपने पीछे लगाने में जुटा रहा। यह भारत को ‘हिन्दू भारत‘ के रूप में पेश करके उसे एक मुसलमान विरोधी, विशेषतया कश्मीरी मुसलमानों के दमनकर्ता देश के रूप में प्रस्तुत करता रहा। यह भारत को हमेशा से ही एक ऐसे देश की तरह पेश करता रहा जहाँ मुसलमानों के मानवीय अधिकारों का पूरी तरह से हनन हो रहा था। पाकिस्तान की आन्तरिक कठिनाइयाँ, पाकिस्तान की राजनीति में उत्पन्न तीव्र विरोधात्मक संघर्ष तथा पाकिस्तान में विद्यमान राजनीतिक अस्थिरता, पाकिस्तानी शासकों को इस बात के लिए बाध्य करती रहीं कि वे अपने देश में अपनी लोकप्रियता को बनाए रखने के लिए भारत से घृणा या भारत को कुचलने की बात करते हुए भारत-विरोधी रुख को बनाए रखें।

सचिव स्तर पर भारत-पाकिस्तान वार्तालाप के तीन दौर भी हुए तथा संयुक्त कार्य समूहों की स्थापना की निर्णय भी हुए परन्तु वास्तविक प्रगति कम ही हुई। 1997 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के अधिवेशन में प्रधानमन्त्री श्री नवाज शरीफ ने कश्मीर के मुददे को खूब उछाला तथा भारत की आलोचना भी की। श्री गुजराल के साथ बातचीत भी की तथा विश्व मंच पर भारत के प्रति कटु शब्दों का प्रयोग भी किया। फिर पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में उत्पन्न कुछ घटनाओं ने तथा भारत में भी श्री गुजराल की सरकार को 28 नवम्बर, 1997 को त्यागपत्र देना पड़ा तथा राजनीतिक उथल-पुथल के ऐसे वातावरण ने भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों में सुधारों की सम्भावना को धूमिल ही बनाए रखा। 15 जनवरी, 1998 को भारत, बंगलादेश तथा पाकिस्तान के प्रधानमन्त्रियों की एक आर्थिक शिखर बैठक ढाका में हुई तथा इस अवसर पर श्री गुजराल तथा श्री नवाज शरीफ के मध्य वार्तालाप भी हुआ। लेकिन दोनों में सम्बन्धों को अधिक समीप लाने में वास्तविक सफलता कम ही प्राप्त हुई। मार्च 1998 में भारत में बी० जे० पी० गठबन्धन सरकार की स्थापना हुई तथा प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान तथा अन्य पड़ौसियों के साथ द्विपक्षीय आधार पर अच्छे सम्बन्ध स्थापित करने की नीति अपनाई लेकिन भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों में पहले से विद्यमान तत्त्व बने रहे तथा इन्होंने दोनों देशों के सम्बन्धों को सीमित बनाए रखा । वास्तव में 1991-98 के दौरान भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों में कोई भी उल्लेखनीय प्रगति न हो सकी।

1997 को नई आशा की एक किरण उस समय दिखाई दी थी जब पाकिस्तान में श्री नवाज शरीफ के नेतृत्व में पाकिस्तान मुस्लिम लीग की सरकार बनी तो इसने भारत के साथ सम्बन्धों को सुधारने की नीति पर चलने की घोषणा की। ऐसी परिवर्तित नीति के पीछे कुछ स्पष्ट कारण थे-

  1. पाकिस्तान की बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था,
  2. पाकिस्तान का राजनीतिक वातावरण,
  3. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में उभर रहा आतंकवाद,
  4. भारतीय जम्मू तथा कश्मीर में लोकसभा तथा राज्य विधान सभा चुनावों का सफल संगठन,
  5. भारत को NPT तथा CTET के पक्ष में प्रभावित करके अपने ऊपर अमरीकी दबाव को कम करना,
  6. भारत के साथ सम्बन्धों में सुधारों को दिखाकर अमरीका को शस्त्र आपूर्ति के लिये प्रभावित करना,
  7. संयुक्त मोर्चा सरकार की नीति, विशेषकर Gujral Doctrine के आधार पर भारत से सम्बन्धों के क्षेत्र में सुविधाएँ प्राप्त करना।

उधर भारत में श्री आई० के० गुजराल को कि जून 1996 में बनी संयुक्त मोर्चा सरकार में विदेशी मन्त्री बने तथा फिर अप्रैल 1997 में बनी दूसरी संयुक्त मोर्चा सरकार के प्रधानमन्त्री बने तथा इसके साथ-साथ विदेश भाग के कर्णधार भी बने रहे। उन्होंने भी भारत के सभी पड़ौसियों के साथ सम्बन्धों में सुधारों के लिये Gujral Doctrine को अपनाया। उन्होंने पाकिस्तान के साथ सम्बन्धों में सुधार के लिये अच्छे प्रयास आरम्भ किये। इनके फलस्वरूप भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों में उच्चस्तरीय वार्तालाप का वातावरण बना। दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों, विदेश मन्त्रियों तथा विदेश सचिवों में प्रत्यक्ष द्विपक्षीय वार्तालाप की प्रक्रिया आरम्भ हुई। भारत ने पाकिस्तान से यात्रा पर आने के इच्छुक लोगों के लिये वीज़ा व्यवस्था को अधिक नरम, सरल एवं कम खर्चीली बना दिया। मई 1997 में सार्क शिखर सम्मेलन के अवसर पर प्रधानमन्त्री श्री गुजराल ने पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री श्री नवाज शरीफ से लाभदायक बातचीत की। इसके लिये अपने-अपने विदेश सचिवों को सभी मुद्दों को सूचिबद्ध करने तथा उनके सम्बन्ध में संयुक्त कार्य समूहों (Joint Working Groups) की रचना के लिये निर्देश दिये; इससे दोनों देशों में सम्बन्धों के सामान्यीकरण की प्रक्रिया का आरम्भ हुआ। दोनों देशों में संकटकालीन संचार व्यवस्था (Hot Line) स्थापित की गई तथा इससे भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों को सकारात्मक दिशा मिली।

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अक्तूबर 1997 में प्रधानमन्त्री श्री गुजराल तथा प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ के मध्य चोगम 1997 की बैठक के दौरान एक अच्छी मुलाकात हुई परन्तु द्विपक्षीय सम्बन्धों की दिशा में कोई प्रगति न हो सकी। पाकिस्तान ने यह मत प्रकट किया कि संयुक्त कार्य समूह के सामने प्रमुख मुद्दा कश्मीर था जबकि भारत ने यह कहा कि यह अन्य मुददों के साथ एक मुद्दा था। पाकिस्तान ने चौगम में कश्मीर मुद्दा उठाने का असफल प्रयास किया। नवम्बर 1997 में पाकिस्तान ने द्विपक्षीय वार्तालाप आरम्भ न करने का निर्णय लिया तथा इसके लिये भारत के “कठोर रवैये” (Rigid Stand) को उत्तरदायी ठहराया। भारत ने पाकिस्तान के निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण माना। इस तरह मार्च 1997 में द्विपक्षीय वार्तालाप आरम्भ करने की प्रक्रिया दिसम्बर 1997 तक पहुँचते-पहुँचते स्थगित हो गई।

इसके पश्चात् भारत तथा पाकिस्तान दोनों के आंतरिक राजनीतिक वातावरणों में काफी उथल-पुथल आ गई और दोनों देश परस्पर सम्बन्धों में सुधारों के प्रयासों को ढीला रहने देने पर विवश हो गये।

लेकिन 15 जनवरी, 1998 के दिन भारत, पाकिस्तान तथा बंगलादेश के प्रधानमन्त्रियों की एक व्यापारिक (आर्थिक) शिखर बैठक हुई जिसमें भारत ने दक्षिण एशियाई आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिये पूँजी निवेश की सीमा को दो गुणा बढ़ाने, तथा बंगलादेश तथा अन्य अत्यंत कम विकसित देशों में आयात की जाने वाली वस्तुओं पर से मात्रात्मक प्रतिबन्धों को समाप्त करने तथा पाकिस्तान को जाने वाली मालगाड़ियों की संख्या 15 से 30 तक करने की महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ कीं। भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस को एक सप्ताह में छः बार करने का भी प्रस्ताव किया गया। लोगों के साथ सम्बन्धों को विकसित करने की प्रक्रिया को व्यावहारिक रूप में सम्बन्धों में निकटता लाने का एक उत्तम साधन माना गया। श्री गुजराल ने यह भी कहा कि पाकिस्तान को भारत के साथ व्यापार अपने अपेक्षित उत्तरदायित्वों तथा मान्यताओं के आधार पर विकसित करना चाहिए । पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री ने यह कहा कि उनका देश भारत से 60 से 90 माल गाड़ियाँ मँगवा सकता है। उन्होंने SAPTA के प्रति वचनबद्धता को दोहराया परन्तु साथ ही यह भी कहा कि व्यापार के उदारीकरण के द्वारा सभी सार्क सदस्यों के हितों की रक्षा होनी चाहिए।

इस सम्मेलन में काफी बड़ी-बड़ी बातें तो हुईं परन्तु वास्तविक मुद्दों पर प्रगति कम ही हुई। भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों के विस्तार की गति धीमी तथा उलझावपूर्ण ही बनी रही है।

भारत में 12वीं लोकसभा के चुनावों के बाद मार्च 1998 में प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहरी वाजपेयी के नेतृत्व में बी० जे० पी०-गठबन्धन सरकार का निर्माण हुआ। इस सरकार ने पाकिस्तान के साथ आपसी वार्तालापों द्वारा आपसी सम्बन्धों को विकसित करने की स्पष्ट पेशकश की। पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री श्री नवाज शरीफ ने इस पेशकश को सकारात्मक तो बतलाया परन्तु नई सरकार से वार्तालाप के शुरू करने में कोई विशेष चिलचस्पी नहीं ली।

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