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भारत में पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण के उपाय

भारत में पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण के उपाय

भारत में पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण के उपाय

(Measures for Protection and Conservation of Environment in India)

भारत भूमि में अनेक प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों का भण्डार हैं। नई-नई जानकारी एवं वैज्ञानिक शोध के द्वारा अनेक संसाधनों तथा उनके भण्डारों की खोज के साथ साथ संसाधनों को अधिक उपयोगी बनाने का प्रयास भी किया जा रहा है। तेल खनिजों की कमी के कारण सौर ऊर्जा के अधिक उपयोग हेतु शोध हो रहे है। इसलिए पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण हेतु निम्नलिखित उपाय किये जा रहे हैं –

  1. पर्यावरणीय जागरुकता (Environmental Consciousness)-

    पर्यावरण बोध पर्यावरण को पहचानने से आता है। देश में प्राचीन ऋषियों-मुनियों, मनीषियों तथा सन्यासियों को पीपल, बरगद, तुलसी, नीम, आम, केला, कुश आदि वनस्पतियों के गुणों की जानकारी थी। वे इनकी पूजा करते थे। लेकिन आज के युग में मानव प्राणी ‘तरू देवो भव’ मानव जन्म से पर्यावरण के तत्वों के सम्पर्क में आ जाता है। वह ग्रीष्म-शीत, वायु, जल, वनस्पति, वर्षा, भूकम्प, सूखा पशु-पक्षियों आदि अनेक प्राकृतिक तत्वों से परिचित होता है। प्राकृतिक तत्वों की तुलना में मानव अधिक चलायमान होता है। मानव अल्पकालीन लाभों तथा तीव्र प्रगति हेतु प्रकृति का अत्यधिक दोहन करने लगता है। जब वह पर्यावरण की अनदेखी करता है तो अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है। इसलिए मानव को जागरूक करने की आवश्यकता पर्यावरण का प्रमुख आयाम हैं।

  2. रासायनिक पदार्थों का उपयोग कम करना (Decrease in use of Chemical Substances)-

    कृषि में रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कम करने, रोकने तथा नियंत्रित करने का प्रयास किया जाना चाहिये। कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का अधिक मात्रा में उपयोग होता है। ये रासायनिक पदार्थ कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ मिट्टी एवं झीलों, तालाबों, नदियों, समुद्रों व भूमिगत जल को भी दूषित करते हैं।

  3. वैधानिक उपाय (Legal Measures)-

    वैधानिक नियमों व कानूनों का कड़ाई से पालन हो, तभी पर्यावरणीय नियोजन प्रभावी होगा। देश में अब हरे-भरे वृक्षों को कटाने पर प्रतिबन्ध लगाया गया है। पर्यावरण प्रबन्धन हेतु कुछ वैधानिक उपाय भी किए जाने चाहिए। देश में जल, वन अथवा वन्य जीवों की सुरक्षा हेतु कठोर नियम व कानून बनाए गए हैं। नियमों व कानूनों को बनाने के बाद भी भारत में वन-विनाश एवं जल प्रदूषण पूर्णरूप से रोका नहीं जा सका है।

  4. शोध तथा अनुसन्धान (Research and Investigation) –

    पर्यावरण प्रबन्धन के उचित संचालन हेतु पर्यावरणीय अनुसंधान जरूरी है। प्राकृतिक आपदाओं, बाढ़, अकाल, भूकम्प, तूफान, सूखा, महामारी आदि घटनाओं तथा वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, नाभकीय प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि समस्याओं को दूर करने हेतु लगातार शोध तथा अनुसंधान पर जोर देना भी पर्यावरण प्रबन्धन का आवश्यक अंग होना चाहिए।

  5. जनसंख्या विस्फोट पर नियंत्रण (Control Over Population Explosion)-

    तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या व भौतिक सुख-साधनों को पाने की इच्छा प्रकृति को नुकसान तथा पंगु बनाती जा रही है। सीमित संसाधनों पर असीमित जनसंख्या दबाव के कारण गरीबी, अशिक्षा, व असन्तोष आदि बढ़ता जा रहा है। मनुष्य भोजन, वस्त्र, आवास व अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की प्राप्ति हेतु संसाधनों का असंतुलित तथा अवैज्ञानिक शोषण शुरू कर देता है, जिससे पारिस्थितिक असंतुलन की समस्या उत्पन्न हो रही है। अतः पर्यावरण को बचाए रखने हेतु जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण अति आवश्यक है।

  6. प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण (Protection of National Resources)-

    पर्यावरण की सुरक्षा में संसाधनों के संरक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। प्राकृतिक पर्यावरण के विभिन्न घटकों जैसे – वायु, जल मिट्टी, खनिज, ऊर्जा, जीव-जन्तुओं आदि के संरक्षण से पर्यावरण में संतुलन बनाए रखा जा सकता है।

  7. प्रौद्योगिकी में सुधार (Improvement in Technology)-

    जलवायु व मौसम सम्बन्धी तत्वों की पूर्व सूचना अथवा भविष्यवाणी करके सम्भावित खतरों से बचा जा सकता है। यह तब संभव होगा जब नई तकनीक को अपनाने के साथ-साथ पुरानी तकनीक में संशोधन किया जाए। उत्पादक तकनीक में सुधार तथा संरक्षण, सुरक्षा तथा पारिस्थितिकी तकनीकों का विकास करने से तकनीक में सुधार किया जा सकता है, जो पर्यावरण नियोजन में सहायक हो सकता हैं। सुरक्षित तथा प्रदूषण रहित पर्यावरण का निर्माण करने हेतु पर्यावरण सुधार सम्बन्धी प्रौद्योगिकी में समानता बनाए रखना आवश्यक है। सीवर उपचार तथा धुआँरहित मोटर वाहनों की निर्माण सम्बन्धी प्रौद्यौगिकी के प्रयोग द्वारा जल तथा वायु को शुद्ध किया जा सकता है। पेट्रोल से सीसा अलग करके वायु प्रदूषण के खतरे को भी कम किया जा सकता है।

  8. पर्यावरणीय शिक्षा तथा प्रशिक्षण (Environmental Education and Training)-

    पर्यावरण नियोजन का एक महत्वपूर्ण आयाम पर्यावरणीय शिक्षा एवं प्रशिक्षण से सम्बद्ध है। पर्यावरणीय शिक्षा और प्रशिक्षण जन-चेतना जगाने में सहायक होता है। जल प्रबन्धन, प्रदूषण निदान, वृक्षारोपण, यातायात नियंत्रण, मल-मूत्र उपचार, अपशिष्टों का शोधन, सूचना सहायता आदि जैसे कार्य इसके प्रमुख हैं।

  9. शीत भण्डारण के विकल्पों की खोज (Tracing of the Alternatives of Cold Storage)-

    फ्रेओन तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन (शीतलन प्रणाली में प्रयुक्त गैस) के विकल्पों की खोज आवश्यक है। विकल्प के रूप में बायोएक्ट इ, सी 7, एच. एफ.सी-134 ए गैस का उपयोग करना चाहिए।

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