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भारत में सीमेंट उद्योग का वितरण (Cement Industry in India)

भारत में सीमेंट उद्योग

भारत में सीमेंट उद्योग

हमारे देश के निर्माण उद्योग में सीमेंट उद्योग पर्याप्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सभी प्रकार के व्यक्तिगत अथवा सार्वजनिक निर्माण यथा-सड़क, पुल, बाँध, वायुयान अड्डे, मकान, निर्माण से है।

मिलों के निर्माण में सीमेण्ट का उपयोग होता है। इस प्रकार इस उद्योग का संबंध प्रत्यक्षतः राष्ट्र सीमेंट तैयार करने के लिए कच्चे माल के रूप में चूने का प्रस्तर, जिप्सम एवं कोयले की आवश्यकता होती है। इसमें उपयोग होने वाले सभी पदार्थ भारी होते हैं। अतः सीमेंट उद्योग की स्थापना ऐसे केंद्रों पर ही संभव है जहाँ इनमें से अधिकांश पदार्थ, विशेषरूप से चुने का प्रस्तर पाया जाता है। साधारणतया एक टन सीमेंट तैयार करने के लिए 1.6 टन चूने का प्रस्तर, 0.38 टन जिप्सम तथा 3.8 टन कोयले की आवश्यकता होती है।

भारत में सीमेंट का प्रथम कारखाना सन् 1904 में मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में स्थापित किया गया था जो कि पूर्णतया सफल नहीं हो सका। परंतु 1912-13 में सीमेंट के कई कारखाने स्थापित किए गये। इस किए गए। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण इस उद्योग को पर्याप्त प्रोत्साहन मिला। इस प्रकार प्रथम पंचवर्षीय योजना से पूर्व देश में सीमेंट के 21 कारखाने थे जिनकी उत्पादन क्षमता 33 लाख टन थी जबकि वास्तविक उत्पादन 27 लाख टन ही था। प्रथम योजना तक उत्पादन बढ़कर 46, लाख टन एवं उत्पादन क्षमता 49 लाख टन हो गयी और सीमेंट के कारखानें की संख्या 27 हो गयी। द्वितीय योजना के अंत में उत्पादन 46 लाख टन से बढ़कर 78 लाख टन तथा तृतीय योजना के अंत में 120 लाख टन पहुँच गया। जबकि उत्पादन क्षमता 192 लाख टन एवं कारखानों की संख्या 54 हो गयी। इस समय देश में 102 सीमेंट के कारखाने हैं जिनकी क्षमता 710 करोड़ टन है।

सीमेंट के निर्माण में कच्चे माल के रूप में कोयला, डोलोमाइट, खड़िया मिट्टी, चूने का प्रस्तर, जिप्सम तथा धातुमल (Slag) का उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही विद्युत शक्ति तथा परिवहन के अच्छे साधनों की आवश्यकता होती है। चूने के प्रस्तर के स्थान पर सिक्का में समुद्री रेत, द्वारिका में अम्ल, कोट्टायम में कैल्शियम कौड़िया उपयोग में लाई जाती हैं।

उत्पादन एवं वितरण

पिछले वर्षों में देश के भीतर सीमेंट की माँग बहुत बढ़ गयी है। वर्तमान समय में हमारे यहाँ सीमेंट की माँग लगभग 800 लाख टन वार्षिक है। इसके लिए देश में बहुत से नवीन कारखानें स्थापित किये गये हैं तथापि घरेलू उत्पादन संपूर्ण माँग को पूरा करने में असमर्थ है। इस समय देश के समस्त कारखानों में कुल उत्पादन क्षमता 70 लाख टन है। देश के कुल कारखानों में से 8 कारखानें सहकाकरी क्षेत्र में हैं। 6 कारखाने सीमेंण्ट की चादर बनाने के लिए हैं। सीमेंट के कारखानों में पोर्टलैंड सीमेंट, सफेद सीमेंट, तेलकूप सीमेंट तथा जल निरोधक सीमेंट तैयार किए जा रहे हैं। सफेद सीमेंट ऐसा होता है जिस पर कोई भी रंग चढ़ सकता है। इसका निर्माण गुजरात के पोरबंदर, मध्य प्रदेश के कैमूर तथा केरल के कोट्टायम के कारखाने में होता है। तेलकूप सीमेंट का निर्माण कर्नाटक के शाहाबाद के कारखाने में किया जाता है। जल निरोधक सीमेंट का निर्माण एसोसियेटेड कंपनी एवं श्री दिग्विजय सीमेंट कंपनी द्वारा किया जा रहा है। यह सीमेंट लंबी अवधि तक आर्द्रता को सहन कर सकता है। वर्षा ऋतु में भी इसे बाहर भेजा जा सकता है। देश का सीमेंट का सबसे बड़ा कारखाना राजस्थान के सवाई माधोपुर में है।

अतः सीमेंट की बढ़ती हुई माँग की पूर्ति के लिए चूने के प्रस्तर के भंडारों का सर्वेक्षण करने, उनका अनुमान लगाने तथा जाँच करने, सीमेंट के कारखानों को स्थापित करने, और सीमेंट के निर्माण के लिए अनुषंगी तथा सहायक कार्यक्रमों को संचालित करकने के उद्देश्य से सरकारी संस्था ‘भारतीय सीमेंट निगम’ की स्थापना की गयी है। इस संस्था द्वारा दो सीमेंट के कारखाने स्थापित किए जा रहे हैं। इसी संस्था द्वारा निर्मित एक द्वितीय सीमेंट का कारखाना आसाम की मिकिर पहाड़ी में बोगाजान नामक स्थान पर उत्पादनरत है। अभी हाल में हिमांचल प्रदेश के राजवन, सिरमुर जिले में एक सीमेंट का कारखाना बनकर तैयार हुआ है। इसके अतिरिक्त मध्यप्रदेश के अलकतरा तथा आंध्र प्रदेश के गुण्टूर, तंदूर एवं अदीलाबाद में सीमेंट के कारखानों की स्थापना होने जा रही हैं। भारतीय सीमेंट निगम का सर्वेक्षण विभाग 18 स्थानों में लगभग एक अरब टन सीमेंट के भंडारों का पता लगाने में सफल हुआ है।

चतुर्थ एवं पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में 15 लाख टन के उत्पादन के अतिरिक्त ‘योजना आयोग’ ने ‘भारतीय सीमेंट निगम को 90 लाख टन अतिरिक्त सीमेंट के उत्पादन को बढ़ाने की सलाह दी है। इन सबके लिए 10 नवीन कारखाने खोले गए हैं जिनमें दो सार्वजनिक क्षेत्र में बारगढ़ (ओडिशा) तथा चेरापूँजी (मेघालय) एवं आठ व्यक्तिगत क्षेत्र कैमूर और जामुल (मध्य प्रदेश) मदुक्कराई एवं कादूर (तमिलनाडु), पोरबंदर एवं सिक्का (गुजरात), बंजारी (बिहार) एवं, चित्तौरगढ़ (राजस्थान) में हैं। इसके अतिरिक्त ‘भारतीय सीमेंट निगम’ 2 लाख टन वार्षिक क्षमता का एक कारखाना गुलबर्गा जिले के कुरकुण्टा (कर्नाटक) में स्थापित करने की योजना बना रहा है।

सीमेंट उद्योग की समस्याएँ

यह एक भारी पदार्थ है अतः इसके लिए परिवहन व्यय बहुत अधिक होता है। इसलिए सीमेंट के कारखाने से यातायात मार्गों को सम्बद्ध होना आवश्यक होता है। अर्थात् सीमेंट के कारखाने ऐसे केंद्र पर होना चाहिए जहाँ से देश के भीतरी बाजार का घनिष्ठ संबंध हो। यही नहीं, इसके लिए बिजली की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। इसलिए सस्ती दर पर बिजली की उपलब्धि आवश्यक होती है अथवा आसपास सस्ते दर पर कोयला मिलता हो।

इस समय देश में निर्माण कार्य व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक स्तर पर बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है, अतः देश का घरेलू उत्पादन माँग की आपूर्ति नहीं कर पा रहा है।

विदेशी व्यापार- वैसे पिछले वर्षों में उत्पादन में पर्याप्त प्रगति हुई है फलस्वरूप हाल ही के वर्षों में इसका निर्यात किया जाने लगा है। इसका निर्यात पूर्वी एशिया के देशों को किया जा रहा है। अभी भी सीमेंट तथा इसके निर्मित सामान का निर्यात श्रीलंका, म्याँमार, अफगानिस्तान तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों को हो रहा है।

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