भारत में बहुस्तरीय नियोजन
भारत में बहुस्तरीय नियोजन
नियोजन की प्रक्रिया एक स्तरीय या बहुस्तरीय होती है। एक स्तरी नियोजन में सभी निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर लिए जाते हैं जिनके क्रियान्वयन के लिए ही निचले क्षेत्रीय स्तरों का सहारा लिया जाता है। भारत में ऐसे ही केंद्रीकृत नियोजन का प्रचलन है। इसके विपरीत बहुस्तरीय नियोजन में देश को विभिन्न स्तर की प्रादेशिक इकाइयों में बांटकर नियोजन की नीतियाँ तय की जाती हैं। ये सभी प्रादेशिक इकाइयाँ एक दूसरे की पूरक होती हैं। इस प्रकार के नियोजन में निचले स्तर का क्षेत्रीय नियोजन उच्च स्तरीय क्षेत्रीय नियोजन हेतु आधार प्रस्तुत करता है जबकि उच्चस्तरीय नियोजन निम्न स्तरीय नियोजन के लिए ढांचा तैयार करता है। इसमें जनता की सीधी भागीदारी होती है और योजना के लाभ सबसे निचले स्तर तक पहुँच जाते हैं।
भारत जैसे विशाल देश में बहुस्तरीय नियोजन की आवश्यकता के कई कारण हैं-
- भारत एक जनतांत्रिक और संघीय प्रणाली वाला देश है जिसमें राज्यों को कई क्षेत्रों में स्वायत्तता प्राप्त है। इन राज्यों की योजनाओं के क्रियान्वयन में प्रमुख भूमिका है। साथ ही विकास में इनकी जवाबदेही है।
- भारतीय समाज बहुभाषी, बहुधर्मी और बहुसांस्कृतिक है। अतएव क्षेत्र जनित सामाजिक-आर्थिक संरचना हेतु क्षेत्र जनित नियोजन ही सही विकल्प है, क्योंकि इसी माध्यम से जनता की क्षेत्रीय स्तर की समस्याओं का समाधान ढूँढ़ा जा सकता है।
- केंद्रीकृत नियोजन से क्षेत्रीय असमानता में वृद्धि हुई है और निचले स्तर की समस्याओं अनदेखी हुई है। बहुस्तरीय नियोजन से इनके समाधान के प्रयास किए जा सकते हैं।
- बहुस्तरीय नियोजन देश में गरीबी की समस्या के समाधान का एक साधन हो सकता है। जनता की सीधी भागीदारी से इस समस्या का आसानी से समाधान ढूँढ़ा जा सकता है।
बहुस्तरीय नियोजन के स्तर
भारत में बहुस्तरीय नियोजन के निम्न पाँच स्तरों को स्वीकार किया गया है-
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राष्ट्रीय स्तर (National Level)-
राष्ट्रीय स्तर पर योजना आयोग नियोजन का मुख्य अभिकरण है। प्रधानमंत्री इसका अध्यक्ष होता है। यह न केवल योजनाओं का निर्माण करता है वरन् केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के क्षेत्रकीय विकास कार्यों का समन्वयन करता है। इसके क्रियाकलापों की देख-रेख राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा की जाती है। आयोग तीन प्रकार की योजनाएँ तैयार करता है- (अ) 15-25 वर्षों हेतु भावी योजनाएँ, (ब) पंचवर्षीय योजनाएँ, एवं (स) वार्षिक योजनाएँ (पंचवर्षीय योजना के ढाँचा के अंतर्गत)। यह विभिन्न राज्यों को योजनाओं के निर्माण, देखरेख एवं मूल्यांकन हेतु दिशा निर्देश भी देता है।
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राज्य स्तर (State Level)-
राज्य स्तर पर भी नियोजन की क्रियाविधि राष्ट्रीय स्तर की तरह ही होती है। राज्य योजना बोर्ड राष्ट्रीय योजना आयोग की ही भाँति विभिन्न मंत्रालयों एवं जिलों की विकास योजनाओं का समन्वयन करता है। यह योजनाओं के निरूपण और संसाधनों के विनियोजन हेतु योजना आयोग से नियमित संपर्क में रहता है। चूँकि राज्य स्तर पर सभी तरह के आर्थिक और सामाजिक आँकड़े उपलब्ध हैं एवं सभी विकास योजनाओं का कार्यन्वयन राज्य स्तर पर ही होता है राज्य नियोजन बोर्ड की नियोजन में प्रमुख भूमिका है।
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जनपद स्तर (District Level)-
स्थानिक एवं प्रशासकीय विशेषताओं के कारण राज्य से नीचे जनपद की नियोजन में प्रमुख भूमिका है। ब्रिटिश शासन काल से ही जनपद स्तर पर सभी प्रकार की सूचनाओं और आँकड़ों के संग्रह की अच्छी व्यवस्था है। यही कारण है कि अच्छी खासी संख्या में विद्वानों का एक वर्ग जनपद को सूक्ष्मस्तरीय नियोजन का एक आदर्श एव व्यवहार्य इकाई मानता है। तृतीय योजना में इस पर जोर और 1993 में संविधान से मान्यता के उपरांत विभिन्न राज्य सरकारों ने इसे अपनाने का प्रयास किया है। जनपद स्तर पर नियोजन का पर्यवेक्षण जिला परिषद एवं उसके चेयरमैन द्वारा किया जाता है। इसके निरूपण एवं कार्यान्वयन का कार्य जिला नियोजन अधिकारी या जिलाधिकारी द्वारा किया जाता है।
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विकासखंड स्तर (Block Level)-
विकास खंड सूक्ष्म स्तरीय नियोजन की एक महत्वपूर्ण इकाई है। इन विकासखंडों का सृजन सामुदायिक विकास कार्यक्रम के अधीन विकास योजनाओं के पर्यवेक्षण हेतु प्रथम पंचवर्षीय योजना में किया गया था। प्रत्येक विकासखंड में लगभग 100 गाँव एवं 60,000 की जनसंख्या होती है जिसका प्रमुख विकास खंड अधिकारी होता है। विकासखंड के कार्यों की देखरेख हेतु विकासखंड समिति होती है जिसमें ब्लाक प्रमुख एवं चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं। पांचवीं योजना में रोजगार और ग्रामीण विकास पर जोर देने के लिए विकासखंड स्तर के नियोजन को वरीयता दी गई।
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पंचायत स्तर (Panchayat Level) –
1992 के संविधान संशोधन के द्वारा पंचायत (ग्राम सभा) को आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के 29 विषयों पर योजनाओं के निर्माण और कार्यान्वयन हेतु अधिकृत किया गया है। इन योजनाओं के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी ग्राम विकास अधिकारी (VDO) एवं सेक्रेटरी की होती है तथा इनकी देखरेख ग्रामसभा द्वारा की जाती है जिसका जवाहर रोजगार योजना आदि के लिए केंद्र से सीधे धन का आबंटन किया जाता है। इस समय देश में कुल 2.20 लाख ग्राम पंचायतें, 5,300 पंचायत समितियाँ और 400 जिला परिषदें हैं। इन पंचायतों को कृषि, ग्रामीण उद्योग, मातृ एवं शिशु कल्याण, ग्रामीण सड़कों, स्वच्छता, गरीबी निवारण आदि से संबंधित कार्यक्रमों की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
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