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महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन को प्रारम्भ करने के कारण

असहयोग आन्दोलन की उत्पत्ति के कारण 

भारतीयों ने अंग्रेजी सरकार की महायुद्ध में बड़ी सहायता की थी। भारत के नवयुवकों में बहुत अधिक संख्या में अपने आपको सेना में भर्ती किया और विभिन्न प्रदेशों में जाकर अंग्रेजी सेना के साथ-साथ अदम्य उत्साह, साहस तथा वीरता के साथ शत्रुओं की सेनाओं का डटकर सामना किया। इस सहायता के साथ-साथ भारतीयों ने अंग्रेजों की धन से भी बहुत अधिक सहायता की। भारतीयों ने अंग्रेजों को तन मन और धन से सहायता प्रदान की परिस्थितियों से बाध्य होकर महात्मा गाँधी को असहयोग आन्दोलन की घोषणा करनी पड़ी।

असहयोग आन्दोलन के कारण

महात्मा गाँधी को परिस्थितियों से बाध्य होकर असहयोग की शरण लेनी पड़ी। उसके मुख्य कारणों का वर्णन निम्न पंक्तियों में किया जायेगा-

  1. प्रथम महायुद्ध

    युद्ध राष्ट्रीयता के विकास में बड़ा सहायक होता है। प्रथम-महायुद्ध द्वारा भी विभिन्न राष्ट्रों में एक भावना का तीव्र गति से विकास हुआ। इस महायुद्ध आत्म निर्णय के सिद्धान्त का प्रतिपादन हुआ जिसके आधार पर यूरोप में कुछ नवीन राज्यों के स्थापना की गई। इसी सिद्धान्त से प्रभावित होकर चीन और मध्य-पूर्व के राज्यों में राष्ट्रीयता की भावना का प्रादुर्भाव होना आरम्भ हुआ। इस प्रभाव से भारत भी नहीं बच सका, जिसने राष्ट्रीय आन्दोलन को अपूर्व शक्ति प्रदान की। युद्ध के उपरान्त भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का स्वर बदल गया और उसने एक नई शिक्षा को अपनाया। उसकी नीति तथा कार्यक्रम में एकदम परिवर्तन हो गया।

  2. जनता की आर्थिक शोचनीय दशा

    युद्ध काल में अंग्रजों की नीति के कारण भारती जनता की आर्थिक दशा बड़ा शोचनीय हो गई। (i) आवश्यक वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि समस्त वस्तुओं की कमी हो जाने के कारण उनके मूल्य में वृद्धि हो गई, जिसने जनता की कमर तोड़ दी। दुकानदार वस्तुओं के अभाव के कारण बहुत अधिक मुनाफा ले रहे थे सरकार ने दामों को निश्चित करने की ओर तनिक भी प्रयत्न नहीं किया। (ii) सरकार द्वारा जनता से अत्यधिक धन वसूल करना- इसके साथ-साथ सरकार द्वारा जनता से अत्यधिक धन वसूल करना – इसके साथ-साथ सरकार द्वारा जनता से अत्यधिक धन वसूल किया गया। जनता अपने कष्टों से इतनी अधिक दुःखी हो गई कि उसको बाध्य होकर सरकार नीति का विरोध करना पड़ा। उसने अपने विरोध का प्रदर्शन हड़ताल द्वारा किया। किसी-किसी स्थान पर बलवे भी हो गये तथा भूखी जनता ने बाजार लूट लिये। बिहार में चम्पारन जिले में अंग्रेजों का वहाँ के किसानों के साथ बड़ा ही अनुचित व्यवहार था। महात्मा गाँधी को वहाँ अपने सत्याग्रह का प्रथम प्रदर्शन करने का अवसर प्राप्त हुआ। इसमें महात्मा गाँधी को पर्याप्त सफलता प्राप्त हुई। महात्मा गाँधी गुजरात के खेड़ा गाँव में एक आन्दोलन किया, जहाँ उनको पर्याप्त सफलता मिली। महात्मा गाँधी के प्रयत्न से अहमदाबाद के मजदूरों के वेतन में भी वृद्धि हुई।

  3. प्लेग और इनफ्लुएंजा के परिणाम

    प्लेग और एनफ्लुएंजा के कारण भी भारत की जनता को कष्ट उठाना पड़ा। जनता तो पहले से ही अपनी शोचनीय आर्थिक दशा से परेशान थी। बहुत से व्यक्तियों को इनके कारण अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। सरकार ने इनकी रोकथाम के लिए जो प्रयत्न किये वे पर्याप्त नहीं थे, जिनसे भारतीयों को कोई सन्तोष नहीं हुआ।

  4. अकाल

    सन् 1917 ई. में पर्याप्त वर्षा न होने के कारण समस्त देश में अकाल व्याप्त हो गया। सरकार ने अकाल से पीड़ित व्यक्तियों के दुःखों को दूर करने के लिए विशेष प्रयत्न नहीं किया जनता पहले से ही दुःखी थी इससे वह और भी अधिक दुःखी हो गई और पर्याप्त व्यक्ति इस अकाल के ग्रास बन गये। जनता में अंग्रेजी सरकार के प्रति तीव्रगति से असन्तोष की भावना फैलने लगी।

  5. सरकार का दमन चक्र

    प्रथम महायुद्ध के मध्यम में जहाँ एक ओर सरकार भारत की जनता से सहायता प्राप्त करने का प्रयत्न कर रही थी, उसकी सेवाओं की वह प्रशंसा कर रही थी तथा उसका राजनीतिक सुधारों के आश्वासन दे रही थी, वहाँ वह राष्ट्रीय आन्दोलन को कुचलने की ओर प्रयत्नशील थी। उसके मुख्य कार्य इस प्रकार थे – (i) इस सरकार ने प्रेस एक्ट और मेडोसन एक्ट का राष्ट्रीय आन्दोलन का दमन करने के लिये बहुत अधिक प्रयोग किया। इस समय बंगाल और पंजाब की दशा विशेष रूप से खराब थी। (ii) वहाँ क्रान्तिकारियों का दृढ़ संगङ्गन था और सरकार ने उनका दमन करने में किसी प्रकार की कसर नहीं छोड़ी। (iii) सरकार ने गृह शासन आन्दोलन के विरुद्ध जो नीति अपनाई उससे भी बड़ा असन्तोष उत्पन्न हुआ। इसी आधार पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग में समझौता हुआ कि दोनों संस्थायें मिलकर राजनीतिक अधिकारों को प्राप्त के लिये प्रयत्नशील होगी। पंजाब में ‘सर माइकल ओ’ डायर ने दमन चक्र बड़ी तेजी और कठोरता से चलाया जिससे वहाँ की जनता का अत्यधिक कष्टों का सामना करना पड़ा। वे इतने भयंकर थे कि युद्ध की समाप्ति पर भी उनकी याद जनता के हृदय में कसकती रही।

  6. सेना में भर्ती करने के लिये दुराग्रहपूर्ण साधनों का प्रयोग

    सरकार की ओर से सेना में भर्ती करने के लिये जिन दुराग्रहपूर्ण साधनों का प्रयोग किया गया उनके द्वारा भी जनता में बड़ा असन्तोष फैला। वे वास्तव में बड़े दोषपूर्ण और असन्तोषजनक थे। इन साधनों की स्मृतियाँ कटुता उत्पन्न कर रही थी। गाँव-गाँव घूमकर मनुष्यों को बाध्य कर सेना में भर्ती किया गया।

  7. छटनी की नीति

    युद्ध के समय से व्यक्तियों को नागरिकों तथा सैनिक सेनाओं में भर्ती किया गया। किन्तु युद्ध के उपरान्त बहुत अधिक मात्रा में लोगों को उनके पदों से अलग कर दिया गया। इस प्रकार बहुत से लोग बेकार हो गये और उनको बड़ी कठिनता से अपना जीवन व्यतीत करना पड़ा। उनकी दयनीय दशा देखकर अन्य व्यक्तियों में भी असन्तोष की भावना बलवती हुई। जनता में यह भावना उत्पन्न हो गई कि सरकार स्वार्थी है और अपना काम निकल जाने पर वह उनका तनिक भी ध्यान नहीं रखती।

  8. मांटफोर्ड सुधार

    भारत की जनता को बहुत आशा थी कि युद्ध की समाप्ति पर तो उनकी युद्ध के समय की सेवाओं के बदले में उनको अंग्रेजी सरकार से बहुत कुछ प्राप्त होग, किन्तु मांटफोर्ड सुधार योजना ने उनकी सेवाओं पर पानी फेर दिया। वह योजना जुलाई 1918 ई. में प्रकाशित हुई। इस योजना में भारत के वास्तविक रूप में किसी प्रकार का परिवर्तन करने का कहीं सुझाव नहीं था। इसके अनुसार केन्द्र में सरकार पूर्व के समान अनुत्तरदायी रही और प्रान्तों में भी उत्तरदायित्वपूर्ण शासन की स्थापना नहीं की गई। गृह सरकार का भारत सरकार पर पूर्ण नियन्त्रण रहा। इस योजना में स्थानीय स्वराजय के क्षेत्र में कुछ आशाजनक सुझाव अवश्य थे और उनमें व्यवस्थापिका सभा के आकार तथा कार्यक्रम पर भी विशेष महत्व दिया गया। इससे शिक्षित वर्ग में बड़ा असन्तोष उत्पन्न हुआ। इसके सम्बन्ध में श्रीमती ऐनीबेसेन्ट ने कहा था कि जहाँ ऐसे सुधारों को देना इंगलैण्ड के अनुसार दृष्टिकोण का सूचक था, वहाँ इनका स्वीकार करना भारत के लिय अपनाजनक था। तिलक ने इनका असंतोषप्रद ही नहीं, वरन् निराशाजनक भी कहा। इसका प्रमुख कारण यह था कि मांटफोर्ड सुधार कांग्रेस लीग प्रस्तावों से भी दूर थे।

  9. खिलाफल का प्रश्न

    सरकार ने युद्ध के बीच में भारत के मुसलमानों को यह आश्वासन दिया था कि न तो टर्की साम्राज्य का विघटन किया जायेगा और न खिलाफल का अन्त। भारत के मुसलमानों ने इसका आश्वासन के प्राप्त होने पर अंग्रेजों की युद्ध में बहुत सहायता की युद्ध की। समाप्ति पर उनका ज्ञात हो गया कि अंग्रेजों ने उनका धोखा देकर उनका समर्थन प्राप्त किया, क्योंकि अंग्रेज टर्की साम्राज्य का विघटन तथा खिलाफत का अन्त करने के लिए कटिबद्ध थे। सीवर्स की सन्धि ने भारत मे मुसलमानों की आँखे खोल दी और उनको अंग्रेजों की चाल का पता चल गया। अंग्रेजों की इस नीति के कारण भारत में मुसलमानों और मौलवियों ने जनता को अंग्रेजों के विरुद्ध भड़काना आरम्भ किया। मोहम्मद उल हसन के नेतृत्व में ‘जमीअत उल उल्माए हिन्द’ की स्थापना की गयी, जिसने मुसलमानों की विचारधारा को परिवर्तित करने के कार्य में बड़ा महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया।

  10. रौलट एक्ट

    क्रान्तिकारी आन्दोलन का दमन करने के अभिप्राय से भारत सुरक्षा अधिनियम पारित किया गया। उसकी धाराओं द्वारा क्रान्तिकारी आन्दोलन का दमन करने का प्रयास किया गया। यह अधिनियम केवल महायुद्ध के लिये ही निर्मित किया गया था, किन्तु युद्ध के उपरानत भी सरकार को इसी प्रकार के अधिनियम की आवश्यकता थी, क्योंकि आन्दोलन का पूर्णतया अन्त नहीं पाया था। अत: भारत सरकार ने जस्टिस सर सिडनी रौलट की अध्यक्षता में एक कमेटी का निर्णय इस उद्देश्य से किया कि वह भारत सकार को बतलाये कि भारत में किस सीमा तक क्रान्तिकारी आन्दोलन का विस्तार और किन उपायों द्वारा उनका अन्त किया जाना सम्भव है। इस सरकार को यह भय था कि कहीं रूस अफगानिस्तान की ओर से भारत पर आक्रमण न कर दे। अप्रैल 1918 ई. में इस कमेटी की रिपोर्ट प्रकाशित हुई। इसी कमेटी ने यह निर्णय किया कि क्रान्तिकारी अपराधों का दमन करने के लिये साधारण फौजदारी कानून अपूर्ण है और देश में शान्ति की स्थापना के लिए उसने दो अधिनियम बनाने की सरकार से सिफारिश की। अतः सरकार ने दो दो विधेयकों का मसविदा इस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर बनाया इसके विरूद्ध सारे देश ने अपनी आवाज उठायी, यहाँ तक कि उदारवादी नेताओं की ओर से की उनका विरोध किया गया सरकार ने जनता की इच्छा की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। सरकार ने इसमें में से एक को फरवरी 1919 ई. में अधिनियम का रूप प्रदान किया, जो आतंकवादों और अपराध अधिनियम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके अनुसार मजिस्ट्रेटों को यह अधिकार प्राप्त हुआ कि वे संदिग्ध क्रान्तिकारियों को थोड़ी बहुत जांच-पड़ताल के उपरान्त नजरबन्दी का आदेश जारी कर सकते हैं। इस प्रकार इससे सरकार को जनता की स्वतंत्रता का अपहरण करना, संदिग्ध व्यक्तियों को बन्दीगृहों में डालने का अधिकार प्राप्त हो गया। इसकी अवधि तीन वर्ष तक निश्चित की गयी थी। इस अविध में इसका प्रयोग पर्याप्त मात्रा में किया गया। इसके द्वारा महात्मा गाँधी को अपना सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ करने की प्रेरणा प्राप्त हुई।

18 मार्च 1919 ई. को रौलट एक्ट प्राप्त हुआ, इसके द्वारा भारत सरकार को राजनीतिक आन्दोलन तथा राज्य के विरूद्ध किसी अन्य कार्य को बन्दी करने का अधिकार प्राप्त हुआ। इससे सरकार को बिना मुकदमा चलाये किसी व्यक्ति को बन्दी करने का अधिकार प्राप्त हुआ। इससे इण्डियन इविडेन्स एक्ट की उस धारा को समाप्त कर दिया, जिसके अनुसार पुलिस अधिकारियों के सामने दी गयी गवाही सच्चाई की गवाही नहीं मानी जा सकती।

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