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अपरदन की विभिन्न दशाएँ एवं नदी का पुनर्युवन

अपरदन की विभिन्न दशाएँ एवं नदी का पुनर्युवन

अपरदन की विभिन्न दशाएँ

जल-प्रपात

अपरदन में भिन्नता के कारण कई प्रकार की परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। यदि कठोर तथा मुलायम शैलों की तहें एकान्तर से बिछी हुई रहती हैं तो घाटी में चट्टानी वेदिकाएँ बन जाती है। यदि कठोर तहें मुलायम तहों के साथ स्थित होकर नदी के बहाव की ओर तनिक झुकी हुई रहती हैं तो नदी की घाटी में प्रपातों की श्रृंखला बन जाती है। समतल मुलायम चट्टानी तहों के भीतर यदि कोई कड़ी शैल की तह ऊर्ध्वाधर खडी मिलती है तो घाटी में प्रपात बन जाते हैं। जब कठोर चट्टानी तहें मुलायम शैल की तहों के ऊपर अनुप्रस्थ स्थिति में रहती हैं तो भी नदी की घाटी में प्रपात बनाता है, किन्तु नीचे की मुलायम शैलों के टूटते रहने से ऊपरी कड़ी शैलें की टूट जाती हैं और प्रपात पीछे की ओर हटता जाता है। कालान्तर में ऐसे प्रपातों के समाप्त हो जाने की सम्भावना होती है।

विभिन्न जल प्रपात

जल प्रपातों की रचना का प्रमुख कारण नदी की घाटी में असमान, कठोर और मुलायम शैलों की उपस्थिति होती है। यदि घाटी में एक ही प्रकार की शैलें होती तो जल-प्रपात नहीं बनते है।

जल-प्रपात में जल ऊपर से नीचे गिरता है। जब नदी घाटी की मुलायम शैलें कट जाती हैं और कठोर शैलें रह जाती हैं तो नदी के मार्ग में जल-प्रपात बन जाते हैं। जब कठोर शैलों का अनुनति ढाल नदी के साथ होता है तो क्षत्रिका बन जाते हैं। नीचे नदी में बहुत से क्षत्रिका (Rapids) मिलते हैं। जब कठोर शैलों की तह मुलायम शैलों की तहों के मध्य लम्बवत् खड़ी रह जाती हैं तो जल प्रपात बन जाते हैं। इस दशा में उसका ढाल नदी के विपरीत रहता है, इस खड़े ढाल से पानी नीचे लुढ़कता है।

अवनमन कुण्ड का निर्माण

जब मुलायम शैलों की तहों के ऊपर कठोर शैलों की तहें अनुप्रस्थ स्थिति में रहती हैं तो मुलायम शैलें कट जाती हैं और इसमें एक अवनमन कुण्ड (Plunge pool) बन जाता है। इस कुण्ड का जल उछल-उछल कर मुलायम शैलों को भिगों देता है और कालान्तर में मुलायम शैलें गिरकर बह जाती हैं। इन शैलों के बह जाने पर ऊपर की शैलें अपने बोझ के कारण टूट कर गिर जाती हैं और जल-प्रपात पीछे को हटता जाता है। कालान्तर में कठोर शैलों के पूर्ण नष्ट हो जाने पर जल-प्रपात समाप्त हो जाता है। जब कठोर शैलें सीधी खड़ी रहती हैं तो वे टूटती नहीं और जल प्रपात स्थायी बनता है।

सोपानी प्रपात

जब सीढ़ीदार दीवार के किनारे कई प्रपातों में जल गिरता है तो उनकों सोपानी प्रयात (Cascades) कहते हैं। जब कठोर शैलों के ऊपर बहुत बड़ी जलराशि बहती है जिससे शैल ऊपर दिखाई नहीं देती तो इसको प्रपात कहते हैं। मध्य प्रदेश में जल-प्रपातों की भरमार है। नर्मदा नदी में रीवा से 266 किलोमीटर दूर अमरकंटक में ‘कपिलधारा’ नामक जल-प्रपात है। इस सुन्दर मनोमुग्धकारी प्रपात के सन्निकट कपिल मुनि का तपस्याश्रम था। नर्मदा में दूसरा प्रपात ‘दुग्धधारा’ है। विन्ध्य कगार के अन्दर पठार पर इसका निर्माण होता है।

नदी घाटी का मैदान

नदियाँ अपनी घाटी के निचले भाग एवं किनारों को काटने लगती हैं और परिवाहित पदार्थ का निक्षेपण भी करती हैं। इस निक्षेपण से बड़े-बड़े मैदान बन जाते हैं, यह नदी-घाटी का मैदानी क्षेत्र (Plain tract) कहलाता है। इस दशा में घाटी में अपरदन की अपेक्षा निक्षेपण अधिक होता है। घाटी की गहराई क्रमशः कम होती जाती है। नदी में बाढ़ की दशा उपस्थित हो जाती है। इसे नदी – घाटी की प्रवणता (Meandering) कहते हैं, क्योंकि तुर्की की मियाण्ड नदी में ऐसे ही मोड़ पाये जाते हैं। प्रारम्भि अवस्था में विसर्पी नदी की घाटी संकरी होती है तथा विसर्पण अविकसित अवस्था में होता है। इनमें जटिलता कम होती है। धीरे-धीरे घाटी भी चौड़ी हो जाती है और मोड़ भी जटिल हो जाते हैं।

नदी मोड एवं छाडन झील का निर्माण

नदी पथ में जलधारा घाटी के अवतल (Concave) किनारे से टकराती हैं। फलस्वरूप वह तट कट जाता है और नदी के प्रवाह में रुकावट भी होती है। अवरोध के कारण प्रवाह में मोड की प्रवृत्ति होती है। कटा के पदार्थ उत्तल (Convex) किनारे पर एकत्र होने लगते हैं। अवतल किनारा खड़ा प्रतीत होता है और उत्तल किनारे पर मन्द ढाल होता है। नदी की गहराई भी अवतल तट की ओर अधिक होती है और उत्तल तट की ओर गहराई भी धीरे-धीरे कम हो जाती है। इसी कारण खड़े तट निरन्तर कटते रहते है और कम ढालू तट पर निक्षेपण होता रहता है, जिससे नदी के प्रवाह में मोड बढ़ता है। इस प्रकार विसर्पण इतना बढ़ जाता है कि नदी की आकृति बिल्कुल वृत्ताकार हो जाती है। इस अवस्था में नदियाँ बाढ़ के समय अपने मार्ग को छोड़कर मोड़ के निकट के भाग को काटकर बहने लगती हैं। यह सीधा प्रवाह मार्ग बाढ़ के पश्चात् भी बना रह जाता है। ऐसी दशा में मोडदार भाग झील का रूप धारण कर लेता है जो छाडन (Oxbox lake) कहलाता है। गंगा नदी के मैदानी भाग में इस प्रकार की झीलें बहुत मिलती हैं।

बाढ़ के समय नदी का जल किनारों पर चढ़कर फैल जाता है। नदी के इस बेसिन को बाढ़ का मैदान कहते हैं। बाढ़ की स्थिति में नदी में जल तीव्र गति से प्रवाहित होता है, किन्तु बाढ़ के क्षेत्र में मन्द गति से बहता है। नदी के किनारों पर अवसाद के एकत्र होने से नदी तट बाढ़ के मैदान से ऊँचा हो जाता है। बाढ़ समाप्त हो जाने पर नदी-तल में निक्षेपण होता है और नदी-तल ऊँचा होता जाता है। इसके फलस्वरूप पहले की अपेक्षा कगारों के ऊँचा होने पर भी नदी-तल से उनकी ऊँचाई पूर्ववत् ही रह जाती है। यह प्रक्रिया बराबर होती रहती जिससे कालान्तर में नदी-तल बाढ़ के मैदान से भी ऊचा हो जाता है। ऐसी दशा में बाढ़ अधिक आता है। नदी द्वारा निर्मित बाँध सदृश किनारे तट-बाँध (Leveles) कहलाते हैं। हाँगहों, मिसीसीपी तथा पो नदियों में, इस प्रकार के तट-बाँध मिलते हैं।.

नदी का पुनर्युवन (Rejuvenation of Rivers)

एक अवस्था ऐसी आती है कि नदी-घाटी में परिवर्तन होने से नदी का उद्गम स्थल ऊँचा उठ जाता है और नदी पुनः तीव्र गति से बहने लगती है और अपनी तली को गहरा करना प्रारम्भ कर देती है। इसके निम्न कारण हो सकते हैं-

  1. भू-गर्भवर्ती शक्तियों द्वारा धरातल का उत्थापन,
  2. सागर के जल-तल का गिराव,
  3. अत्यधिक वर्षा, जल-भार में कमी तथा नदी के आयतन में वृद्धि ।

जब किसी आकस्मिक घंटना से नदी-तल का ढाल बिगड़ जाता है तो नदी की धारा तीव्र हो जाती है और नदी अपने पेटे तथा किनारे को काटना प्रारम्भ कर देती है और फिर नदी का चक्र प्रतिष्ठित हो जाता है, इसे नदी का पुनर्युवन (Dynamic Rejuvenation) कहते हैं। इस क्रिया से बाढ़ का मैदान नदी-तल से बहुत ऊँचा हो जाता है और नदी घाटी में सोपान

की आकृति उपस्थित हो जाती है। इस प्रकार के नदी चक्रों के कारण सीढ़ीनुमा घाटी बन जाती है जिसे नदी वेदिका (River Terrace) कहा जाता है।

विसर्पण की अवस्था में नदी के पुनर्युवन से नदी की घाटी के मोड गहरे बन जाते है, यद्धपि उनका टेढ़ा-मेढ़ा आकार पहले ही जैसा रहता है। इस प्रकार के संकरे-गहरे मोड़ों को गंभीरीभूत विसर्प कहते हैं। इनका झुकाव दीवार की भाँति निकले हुए स्थल से पृथक् होता है। ये स्थल बाद में कट जाते हैं। गोदावरी की परवर्ती वैतरणी नदी में यह मिलता है।

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