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अमीर वर्ग की संरचना, गठन एवं स्वरूप

अमीर वर्ग की संरचना एवं उसका स्वरूप

सल्तनत काल में अमीर वर्ग की राजनीति में सक्रिय भूमिका रही है और उस वर्ग ने सत्ता के कार्यों में आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप भी किया हैं वस्तुतः भारत में अमीर वर्ग का प्रादुर्भाव तुर्की की विजय यात्रा के साथ ही प्रारम्भ हुआ। अमीर वर्ग की नींव जातीयता तथा धर्म पर टिकी थी। इस वर्ग का स्वरूप तथा संगठन समय-समय पर आवश्यकतानुसार परिवर्तित होता रहा। इतिहास साक्षी है कि इस वर्ग के व्यक्ति अपनी सेवा सुल्तान एवं अमीरों के गुलाम के रूप में करते थे और शासकीय अनुकम्पा से वह विभिन्न पदों पर निष्ठापूर्वक कार्य करते हुए अमीर का पद ग्रहण करने में सफलीभूत हो जाते थे। ‘अमीर’ शब्द का ‘आशय’ एक उच्च सैनिक अथवा शासक के पद से था। ‘अमीर’ शब्द का प्रयोग शासक वर्ग के रूप में भी किया जाता था। खान, मलिक तथा अमीर ही ऐसी श्रेणियाँ थीं, जिनके शासक वर्ग में समाविष्ट किया जाता था। ये ही अधिकारी सुलतान तक पहुँच रखते थे। यह पद सामाजिक प्रतिष्ठा व प्रशासनिक अधिकारों का द्योतक था।

अमीर वर्ग का गठन

सल्तनतकालीन अमीर वर्ग का गठन स्थानीय तथा नवागन्तुक अमीरों ने किया था। अमीर वर्ग के संगठन एवं स्वरूप का अध्ययन करने वाले भारतीय इतिहासकारों में कुंवर मुहम्मद अशरफ का महत्वपूर्ण स्थान है। यद्यपि तुर्क अमीर वर्ग दो भागों में बँटा हुआ था। प्रथम उलेमा तथा द्वितीय उमरा, लेकिन इन दो वर्गों के अतिरिक्त कुछ ऐसे वर्ग भी थे जो समाज में किसी प्रकार का महत्व नहीं रखते थे। दिल्ली सल्तनत का अमीर वर्ग अत्यधिक शक्ति सम्पन्न था। क्योंकि भारत में तुर्की की विजय का पूर्ण श्रेय अमीरों को ही जाता था। तुर्क अमीरों ने अपना जीवन सुल्तान के गुलाम के रूप में प्रारंभ किया और अपनी स्वामिभक्ति एवं योग्यता से अमीर पद प्राप्त किया। अमीर का पद वंशानुगत नहीं था। इसको सुल्तान कभी छीन तथा कम से अधिक कर सकता था। अमीर पद की स्थिति के सम्बन्ध में अशरफ का विचार था कि “इसी तरह अमीर वर्ग का स्थान वेतनभोगी नौकरशाही के समकक्ष था, जिसका सर्वशक्तिशाली सुल्तान की अनुपस्थिति में कोई अलग से अस्तित्व नहीं था।”

सल्तनतकालीन अमीर वर्ग

भारतीय इतिहासकार मुहम्मद अशरफ ने यद्यपि अमीर वर्ग का उलेमा वर्ग को महत्वपूर्ण भाग माना है लेकिन कार्य पद्धति के कारण इस वर्ग को अमीर वर्ग के रूप में मानना उचित नहीं है क्योंकि उलेमाओं का राजनीति में हिस्सा लेना, प्रधान अधिकार न होकर गौण अधिकर था। अमीर वर्ग शक्तिशाली वर्ग को अपना समर्थन देता था। इस सम्बन्ध में मुहम्मद हबीब ने लिखा है कि “प्रारम्भिक चरण में तुर्क व गुलाम शासक वर्ग एक सामुदायिक परिवार के रूप में था।” सल्तनतकालीन अमीर वर्ग के अधिकांश सदस्यों को तुर्क सरदार मुहम्मद गौरी का समर्थन प्राप्त था। इसी कारण इन अमीरों ने हिन्दुस्तान के सर्वाधिक उपजाऊ प्रदेश प्राप्त किये। ‘कंकुबाद’ के शासनकाल में तुर्क अमीर वर्ग की महत्वपूर्ण विशेषता जातीय संरचना थी। खिलजीकालीन अमीरों की नियुक्ति दूरस्थ देशों में की जाती थी।

  1. अमीर वर्ग का महत्व

    ताजिक अमीरों का महत्व इल्बरी तुर्क एवं अमीर वर्ग के पश्चात् विशेषज्ञ रूप से था। इस वर्ग के लोग महत्वपूर्ण पदों पर आसीन थे। मंगोलों के आक्रमण के समय कुलीन वंश के अधिकतर सरदार भारत में आकर निवास करने लगे। इल्तुतमिश तथा उसके उत्तराधिकारियों द्वारा इन सरदारों का सम्मान किया गया। इल्तुतमिश के समय में प्रमुख अमीरों में ख्वारिज्म का शहजादा, मलिक फिरोजशाह, तुर्किस्तान के शहजादे मलिक अलाउद्दीन जानी आदि का महत्वपूर्ण स्थान था। इन अमीरों को इल्तुतमिश के उत्तराधिकारियों ने पूर्ण रूप से महत्व एवं सम्मान दिया था। सुल्तान नासिरुद्दीन के समय में तो ये ताजिक अमीर उच्च पदों पर प्रतिष्ठा के साथ विराजमान थे।

  2. पेशकशी अमीरों का महत्व

    इस वर्ग के अमीरों की संख्या कैकुबाद के शासन काल में अत्यधिक थी। ये अमीर दरबार में उपस्थित रहा करते थे। मुक्ती रायदानूज जो कि लखनौती का मुक्ति था ने बलबन की सहायता की थी। इसके बदले में बलबन ने अपने दरबार में उसको सम्मानित किया किन्तु उस काल के इतिहास के अध्ययन से विदित होता है कि इनका प्रभाव बलबन के दरबार में काफी कम था।

  3. ऐबीसी निवासी अमीर वर्ग

    अमीरों में इस वर्ग का काफी महत्वपूर्ण स्थान था। अवध के मुपती मलिक काम्याज को लखनौती के अमीरों को दण्डित करने का कार्य सौंपा गया। सिन्ध एवं देवरस के मुपती को इल्तुतमिश ने अपनी सेवा में नियुक्त किया। वास्तव में यह अमीर वर्ग रजिया के प्रभुत्व में आ गया था।

  4. इल्बरी तुर्क के शासन काल में महत्व

    नव मुस्लिम धर्म परिवर्तित मंगालों का भी इल्बरी शासन काल में महत्वपूर्ण स्थान था। इस शासन काल में इनका प्रभाव अत्यन्त बढ़ गया। कैकुबाद ने मंगोल मुसलमानों को महत्वपूर्ण पद प्रदान किये। इल्बरी अमीर मंगोलों के साथ भेदभाव बरतते थे।

  5. अफगानी अमीर उनका महत्व

    इतिहास बताता है कि मुहम्मद गोरी की सेनाओं में अफगानियों की संख्या 12 हजार थी। इस दल का नेता मलिक महमूद लोदी था। इस सम्बन्ध में नैमत उल्लाह का विचार था कि “मुहम्मद गोरी ने स्यालकोट की नींव डालने के पश्चात् इसे बसाने का कार्य मलिक शाह को सौंपा था। मुहम्मद गोरी ने मलिक महमूद को अपने दरबार में काफी प्रतिष्ठित किया। बलबन का अफगानों में काफी विश्वास था। इसलिए उसने अपनी सेना में 3000 अफगानियों की नियुक्ति की। यद्यपि 13वीं शताब्दी में शाही शासक दरबार में तुर्की अमीरों तथा गैर तुर्की अमीरों का समावेश हो गया था, लेकिन तुर्क अमीरों ने शासक वर्ग में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया हुआ था।

खिलजी कालीन अमीर वर्ग

खिलजी शासन काल में अमीर वर्ग का गठन जातीयता के आधार पर कम हुआ। जलालुद्दीन ने बलबन के समय के अमीरों के प्रति तुष्टीकरण की नीति को अपनाया लेकिन जब महत्वपूर्ण पदों पर बैठाने की बात आयी तो उसने इन पदों को खिलजियों में ही वितरित किये। यद्यपि इल्बरी के अमीरों ने विद्रोह का झण्डा उठाया, परन्तु कुशल नेतृत्व के कारण इनका विद्रोह सफल नहीं हो सका।

  1. नव मुसलमानों को आश्रय

    नव मुसलमानों को जलालुद्दीन के शासन काल में आश्रय प्राप्त हुआ। बलबनकालीन मुसलमानों के पदों को यथावत रखा गया। जलालुद्दीन ने शासन काल के दूसरे वर्ग में इनको शासन में शामिल किया। अब्दुल्ला जो चंगेज खाँ का पौत्र था, ने हिन्दुस्तान विजय की ओर कूच किया, लेकिन जलालुद्दीन ने अब्दुल्ला के साथ समझौता कर लिया और उसके सरदार के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। जलालुद्दीन ने मुसलमानों का वेतन निश्चित किया तथा इनाम के रूप में उसने उन्हें गाँव भी प्रदान किये।

  2. गुटबन्दी समाप्त होना

    अलाउद्दीन खिलजी ने अमीर वर्ग की गुटबन्दी को पूर्णतः समाप्त कर दिया, क्योंकि उसको गुटबन्दी की व्यवस्था की कमजोरी का पता चल गया था, अलाउद्दीन ने अमीरों के इल्बरी गुट को पूर्णतः कुचल दिया और खिलजी गुट को भी समाप्त कर दिया। अलाउद्दीन के शासन काल में ऐसे हिन्दू पनप रहे थे, जिन्होंने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया था। इस्लाम में परिवर्तित हिन्दुओं का जीवन गुलामी की स्थिति से प्रारम्भ हुआ। खिलजी गुट पर नियन्त्रण रखने के लिये उसने अमीरों के इस गुट को प्रोत्साहित किया।

  3. विदेशी अमीर वर्ग

    सुप्रसिद्ध इतिहासकार बरनी ( Barni) ने जलालुद्दीन के काल के कुछ विदेशी अमीरों के नाम बताये हैं लेकिन उनका यह मत संदेहास्पद लगता है कि इस वर्ग ने किसी गुट का निर्माण किया हो। विदेशी अमीर वर्ग इस स्वामिभक्त अमीर वर्ग से अधिक ऊँचे नहीं उठ सकते थे। स्वामिभक्त अमीर वर्ग ने काफी महत्वपूर्ण साधन एकत्र कर लिये थे।

  4. अफगानी अमीर वर्ग

    इल्बरी शासन काल के अमीर वर्ग ने खिलजी काल में काफी उन्नति की। इस इल्बरी बर्क को अलाउद्दीन ने काफी प्रोत्साहित भी किया। इस दल का प्रमुख नेता इख्तियारुद्दीन-थल-अफगान था। मुबारकशाह ने इसको दरबार में प्रतिष्ठित स्थान दिया। अलाउद्दीन के शासन काल में इस वर्ग का अब्दुल करीम शेरवानी अपनी विद्वता के लिये बहुत प्रसिद्ध था।

तुलगक कालीन अमीर वर्ग

अमीर वर्ग के गठन में अब जातीयता का सिद्धान्त पूर्ण रूप से समाप्त हो गया था, क्योंकि तुगलक काल में ऐसे बहुत से शक्तिशाली तत्व थे, जो किसी वर्ग विशेष को प्रोत्साहन नहीं देते थे, इसलिये खिलजी अमीर वर्ग पर निर्भर थे, क्योंकि उनको सत्ता में लाने के लिये खिलजीकालीन अमीरवर्ग ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। मुहम्मद तुगलक ने हिन्दू, मंगोल, अरब तथा खुरासिनों को महत्वपूर्ण स्थान दिया, लेकिन ये उदार नीति के कारण संगठित नहीं हो पाये। उलेमा वर्ग ने अपने निर्णय को सर्वोच्च रखा। मुहम्मद तुगलक की मृत्यु के समय उसका अमीर वर्ग स्वयं संगठित हो गया था और उसने फिरोज तुगलक को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

  1. बहुजातीय अमीर वर्ग

    फिरोज तुगलक के शासन काल में बहुजातीय अमीर वर्ग को काफी प्रोत्साहन मिला। ये अमीर वर्ग सैनिक कर्तव्यों को स्वामी-भक्ति से निभाते थे और सुचारु रूप से कार्य करते थे। इन अमीर वर्गो में व्यक्ति से राज्य को अधिक महत्व था। अतः इस अमीर वर्ग में जातीयता की संकीर्ण भावना का नामोनिशान नहीं था। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जातीयता के सिद्धान्त का स्थान स्वामिभक्ति ो ग्रहण कर लिया था। किन्तु एक बात उल्लेखनीय यह है कि स्वामिभक्ति के अनुबन्ध के प्रभाव में यह अमीर वर्ग व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का शिकार हो गया। सल्तनकालीन अमीर वर्ग के गठन का जातीय सिद्धान्त पूर्ण रूप से नष्ट हो गया और इसकी जगह अब वंशानुगत सिद्धान्त को शासकों का प्रोत्साहन मिला।

  2. अमीरों का बंशानुगत सिद्धान्त

    वंशानुगत का सिद्धान्त भारत के लिए कोई नया नहीं था और जातीयता के कारण यह सिद्धान्त मुस्लिम पद्धति के सिद्धान्त के अन्तर्गत स्वीकृत सिद्धान्त से काफी सुदृढ़ था। इतिहासकार इल्तुतमिश के शासन काल में, “सशक्त की सफलता” के सिद्धान्त को सिद्ध करने के लिए जिस सिद्धान्त का प्रयोग करते हैं वह सिद्धान्त वंशानुगत तत्व को प्रमुख स्थान देता है लेकिन इल्तुतमिश के उत्तराधिकारियों ने वंशानुगत सिद्धान्त को स्वीकृति नहीं दी। वंशानुगत सिद्धान्त को बलबन के शासन काल में काफी प्रोत्साहन मिला और बलबन स्वयं को, ‘परासियाब’ का वंशज बताता था। इस सम्बन्ध में एस० बी. पी. निगम ने लिखा है कि “वह स्वयं निम्न वंश से सम्बन्ध रखता था, अतः उसने इस सिद्धान्त को अद्वितीय महत्व प्रदान किया, जिससे वह अमीरों के मध्य अपने को उच्च वंश का होने के तत्य के प्रति विश्वास पैदा कर सकें’ बलबन के पुत्र कैकुबाद ने वंशानुगत सिद्धान्त को कोई महत्व नहीं दिया। इसलिए जो सदस्य बलवन के काल में अमीर नहीं बन पाये थे सब कैकुबाद के शासन काल में अमीर बन गये।

  3. खिलजी एवं तुगलक शासन में समानता

    खिलजी तथा तुगलक दोनों वंशों के शासक किसी के गुलाम नहीं थे, इसलिए उच्च पदों पर नियुक्ति के लिए वंशानुगत एवं योग्यता को ही आधार बनाया। साथ ही साथ यह भी देखने को मिलता है कि गुलाम वंश के एक शताब्दी के शासन में, वंशानुगत अमीर वर्ग का निर्माण हो चुका था। प्रायः देखा गया कि यह अमीर वर्ग आर्थिक लाभ के लिए सर्वदा प्रयत्नशील रहा करता था। यह अमीर वर्ग अपनी स्थिति बनाये रखने के लिए शासक की अनुकम्पा पर निर्भर रहता था। शासक वर्ग की अनुकम्पा को पाने के लिए इन अमीरों में आपसी संघर्ष भी होते थे। इस सम्बन्ध में बरना ने लिखा है कि “फिरोज तुगलक के शासन काल में बहुत से पुराने अमीरों एवं उनके पुत्रों को इक्ता एवं उच्च पद प्राप्त हुए।” वंशानुगत सिद्धान्त को तुगलकों के शासन काल में काफी प्रोत्साहन मिला तथा यह अमीर वर्ग एक विशिष्ट वर्ग के रूप में जाना जाने लगा।

  4. गुलाम प्रथा की प्रगति

    वंशानुगत सिद्धान्त के प्रोत्साहन का यह अर्थ नहीं कि सुलतानों द्वारा गुलामों को अमीर बनने की प्रथा पूर्ण रूप से समाप्त हो गयी। बशीर सुलतानी, किवाम-उल-मुल्क, मलिक मकबूल आदि अमीर सुलतानों की अनुकम्पा से ही बने। इन अमीरी की नियुक्ति यह स्पष्ट करती थी कि “नवीन एवं निम्न स्तरीय तत्वों का अमीर वर्ग में शामिल होना स्वाभाविक था। एक बार एकाधिकारवादी नौकरशाही में शामिल होने के पश्चात् अमीरों के वंशजों का अमीर वर्ग में वंशानुगत आधार बन जाता था।”

उपरोक्त विवरण यह स्पष्ट करता है कि सल्तनत काल में अमीर वर्ग की रचना एवं पुर्नरचना होती रही। इस अमीर वर्ग के संगठन के निर्माण में सुलतान की अनुकम्पा तथा वंशानुगत अमीरों का प्रभाव रहा। व्यापारी, पेशकशी, जमींदार तथा राय आदि विद्वान लोगों का एक बड़ा वर्ग अमीरों की श्रेणी में शामिल नहीं था। यद्यपि इन लोगों को दरबार में कोई महत्वपूर्ण पद प्राप्त नहीं था, लेकिन इन व्यक्तियों ने अपनी विद्वता तथा धनाढ्यता के आधार पर समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर रखा था। इन धनाढ्य व्यापारियों को इनकी उपलब्धियों के बावजूद भी राज दरबार में कोई महत्वपूर्ण पद प्राप्त नहीं था, फिर भी यह वर्ग कुलीन वर्ग में विशेष स्थान प्राप्त किये हुए था। धनाढ्य वर्ग सदैव अमीर तथा सुलतान का पक्ष प्राप्त करने के लिये लालायित रहता था। इस सम्बन्ध में जियाउद्दीन बरनी ने एक ऐसे शाह का वर्णन किया है, जो साहूकारी से धनाढ्य बन गया था। और उसकी आसामियों में राजधानी के उमरा भी शामिल थे। यद्यपि कुछ ऐसे ब्राह्मणों एवं ठाकुरों जो धनाढ्य थे, ने अमीर वर्ग का रहन-सहन अपना लिया था, लेकिन इनको अमीर वर्ग की श्रेणी में रखना उचित नहीं है।

राजस्व के सिद्धान्त को अलाउद्दीन ने नियमित स्वरूप प्रदान किया तथा राजस्व से प्रात आय को अमीर वर्ग में वितरित भी कर दिया था। इक्ता के स्वरूप एवं संगठन का सीधा सम्बन्ध अमीर वर्ग के संगठन की रचना से था। अलाउद्दीन ने क्षेत्रीय इकाइयों को इक्ता तथा उसको प्राप्त करने वालों को “मुक्ता” या “इक्तादार” कहकर पुकारा था। सल्तनत काल के पहले चरण में अमीर वर्ग की संरचना नोमद तुर्की मूल के दासों तथा उन दासों के परिवारों तक सीमित थी। इसी को जियाउद्दीन बरनी ने इल्तुमिश के 40 अमीरों का नाम दिया है।

परन्तु अलाउद्दीन की राजशाही निरंकुशता के अन्तर्गत अमीर वर्ग की संरचना के स्वरूप में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए, जैसे-अमीर वर्ग की समाप्ति। अमीर वर्ग के पतन के साथ ही भारतीय गुलाम, नवोदित भारतीय तुर्क तथा अन्य विदेशी आगन्तुकों ने राजदरबार से महत्वपूर्ण प्रधान पद हथिया लिये। बरनी ने अलाउद्दीन खिलजी के समय के दो दशकों में अमीरों के तीन वर्गों के एक के बाद दूसरे के सत्ता में आने का विस्तृत विवरण दिया है। इससे भी अधिक भावुक प्रवृत्ति के दर्शन मुहम्मद तुगलक के शासक काल में देखने को मिलते हैं। बहुत तुगलकों के शासन काल में भी बहुत बड़ी संख्या में विदेशियों को राजकीय तत्व में उच्च स्थान प्रदान किये गये थे। वास्तव में पुराने अमीर वर्ग के अस्तित्व का समाप्त करना ही इस कार्य का प्रमुख उद्देश्य था।

अमीर वर्ग के किसी भी सदस्य का किसी भी क्षेत्र विशेष पर अपना व्यक्तिगत दावा या अधिकार सुल्तान की इच्छा पर ही निर्भर करता था। सुल्तान ने इस तरह के अधिकारों को अपने पास केन्द्रित कर रखा था और इसका कारण असीमित शक्ति को अपने पास रखना था और इसके लिए शोषण की नवीन पद्धति को स्थापित करना अति आवश्यक था। फिरोज तुगलक के शासन काल में इस तरह की बातें प्रचलित रहीं। फिरोज तुगलक ने सरकारी पदों की नियुक्ति के लिए वंशनुगत नीति अपनाने की घोषणा की। उसके समय में विशेष्ज्ञ कर बड़ी संख्या में गुलामों की भर्ती करने की नीति के करसा समस्त नये तत्वों को अमीर वर्ग से पृथक् रखा गया था। लोदी वंश के शासन काल में अमीर वर्ग के लोगों के अधिकारों को पूर्णतः सुरक्षित करने की दिशा में सर्वाधिक प्रगति हुई। अफगान प्रजतीय मुखियाओं ने इस काल में अमीर वर्ग का निर्माण किया, जिसका सम्बन्धित क्षेत्र पर वंशानुगत अधिकार था। अमीर वर्ग का अपने सम्बन्धित क्षेत्र पर वंशानुगत अधिकार राजपूतकालीन शासन नीति की याद दिलाता है।

सल्तनत कालीन अमीर वर्ग सल्तनत काल के पहले के अमीर वर्ग की अपेक्षा अपने स्वरूप में नागरिक था। प्रायः सभी अमीर स्थायी तौर पर दिल्ली में अथवा राज्य के बड़े नगरों में निवास करते थे जो कि उनके इक्ताओं से दूर होता था। अतः यह भी स्वाभाविक बन जाता था कि वे अपना समस्त भू-राजस्व नकदी के रूप में वसूल कर लें। अलाउद्दीन ने वस्तु के रूप में राजस्व का आदेश देने के साथ-साथ यह व्यवस्था भी की थी कि राजस्व के रूप में प्राप्त अनाज को निश्चित मूल्यों पर खलिहान से ही महाजन को बेच दिया जाये। ग्रामीण क्षेत्रों से राजस्व व्यवस्था की कार्य-पद्धति के अन्तर्गत बड़ी मात्रा में उत्पादनों का निकास होता था। इसे व्यावहारिक रूप प्रदान करने हेतु अनाज के व्यापारियों की एक पंचायत सी बन गयी थी, जो कि मध्यकाल के अर्थ-तन्त्र के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करती थी।

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