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अधिसूचित एवं नगर क्षेत्र समितियाँ

अधिसूचित एवं नगर क्षेत्र समितियाँ

अधिसूचित क्षेत्र समितियाँ एवं नगर क्षेत्र समितियाँ

(Notified Area Committees & Town Area Committees)

नगरीय स्थानीय स्वशासन में जहाँ नगरपालिकाओं की व्यवस्था नहीं हो पाती है वहाँ ‘अधिसूचित क्षेत्र समिति’ एवं ‘नगर क्षेत्र समिति’ बनाई जाती है।

अधिसूचित क्षेत्र समितियाँ

कुछ बड़े कस्बों और उन नगरों में, जहाँ नगरपालिकाएँ स्थापित नहीं की जा सकतीं, अधिसूचित क्षेत्र समितियाँ स्थानीय प्रबन्ध का कार्य करती हैं। अधिसूचित क्षेत्र समिति का निर्माण नए विकासशील नगर के लिए किया जाता है। समिति के निर्माण की सूचना राज्य सरकार द्वारा सरकारी गजट में अधिसूचित कर दी जाती है, इसलिए इसको ‘अधिसूचित क्षेत्र समिति’ कहते हैं। यह समिति राज्य नगरपालिका अधिनियम द्वारा निर्धारित ढाँचे के अन्तर्गत कार्य करती है, किन्तु इन पर अधिनियम के केवल वे प्रावधान ही लागू होते हैं जो गजट में अधिसूचित कर दिये जाते हैं। सरकार को अधिकार है कि वह समिति को ऐसी शक्तियाँ सौंपे जिनका प्रयोग किसी अन्य अधिनियम के अन्तर्गत किया जा सकता हो। अधिसूचित क्षेत्र समितियों के सदस्य निर्वाचित और मनोनीत दोनों प्रकार के होते हैं। प्रायः राज्य सरकार ही उसके सदस्यों तथा अध्यक्ष को नामित या मनोनीत करती है, इस प्रकार यह पूर्णतः एक सीमित संस्था होती है। इन समितियों के कार्य, अधिकार, आय स्रोत आदि लगभग उसी प्रकार के होते हैं जैसे नगरपालिकाओं के। बिहार, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में अधिसूचित क्षेत्र समितियाँ विद्यमान हैं। प्रायः इनकी संख्या घटती-बढ़ती रहती है।

र-क्षेत्र समितियाँ

छोटी जनसंख्या के शहरी क्षेत्रों में अर्थात् छोटे कस्बों में नगर क्षेत्र समितियाँ स्थापित की जाती हैं। भारत में असम, केरल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदश, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर आदि राज्यों में नगर क्षेत्र समितियाँ हैं। नगर क्षेत्र समितियों का सबसे अधिक प्रचलन उत्तर प्रदेश में है। इन समितियों का शासन राज्य सरकार द्वारा पारित पृथक् अधिनियमों के अन्तर्गत चलता है। जिलाधीश को नगर क्षेत्र समिति के सम्बन्ध में नियन्त्रण की पर्याप्त शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। इनके सदस्यों की संख्या प्रायः कम होती है। इन समितियों के कार्य-क्षेत्र और आय स्रोत नगरपालिकाओं की तुलना में सीमित होते हैं। इन्हें एक प्रकार से छोटी नगरपालिका कहा जा सकता है।

इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट, पोर्ट ट्रस्ट एवं छावनी बोर्ड

(Improvement Trust, Port Trust and Cantonment Boards)

इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट

बड़े नगरों की सफाई और अन्य व्यवस्थाओं के लिए नगरपालिका के साथ-साथ इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट स्थापित किए गए हैं। इनके कार्य नगरपालिकाओं के कार्यों से कुछ भिन्न होते हैं। ये ट्रस्ट इमारतों को अव्यवस्थित रूप से बनने से रोककर, नगर का व्यवस्थित रूप से विकास करते हैं। नगरों में खुले स्थानों, पार्कों, चौड़ी सड़कों, बाजारों, सार्वजनिक शौचालयों आदि की व्यवस्था करना इन ट्रस्टों का काम है। इन ट्रस्टों में कुछ सदस्य निर्वाचित और कुछ मनोनीत होते हैं। जिन नगरों में ये ट्रस्ट नहीं होते, उनके द्वारा किए जाने वाला कार्य नगरपालिकाएँ ही करती हैं।

पोर्ट ट्रस्ट

बड़े-बड़े बन्दरगाहों यथा कलकत्ता, मुम्बई, चेन्नई, विशाखापट्टनम, कोचीन आदि स्थानों पर स्थानीय संस्थाओं के रूप में पोर्ट ट्रस्ट हैं। इसके सदस्य वाणिज्य और व्यापार संस्थाओं द्वारा चुने जाते हैं। सरकार भी सदस्य मनोनीत करती है। इनका संविधान भारत सरकार के बनाए कानूनों पर आधारित होता है। इनका सभापति कोई सरकारी आदमी होता है। इनके मुख्य कार्य हैं बन्दरगाह से सम्बद्ध मामलों का प्रबन्ध, बन्दरगाह की रक्षा, माल का प्रबन्ध, सामान उतारना एवं चढ़ाना, यात्रियों को सुविधाएँ प्रदान करना आदि।

छावनी बोर्ड

छावनी क्षेत्रों में छावनी बोर्ड स्थापित किए गए हैं। इनका उद्देश्य इन क्षेत्रों के निवासियों को नागरिक सुविधाएँ और कल्याण सेवाएँ प्रदान करना है। सम्बद्ध कमान के जनरल आफिसर इन-चीफ और केन्द्रीय सरकार की देख-रेख और नियन्त्रण में ये बोर्ड स्वायत्तशासी निकाय के रूप में कार्य करते हैं। इन बोर्डों में निर्वाचित और नामजद सदस्यों की संख्या, जो 1 से लेकर 7 तक होती है, समान रखी जाती है तथापि कानूनी प्रावधानों के अनुसार नामजद सदस्यों की संख्या निर्वाचित सदस्यों की संख्या से एक अधिक हो सकती है। इन बोर्डो को कर लगाने का अधिकार है जो इनके राजस्व का मुख्य स्त्रोत है। बोर्डों के द्वारा तैयार किए गए बजट अनुमानों की जाँच-पड़ताल और उनकी स्वीकृति सम्बद्ध कमान के जनरल आफिसर कमान्डिंग-इन-चीफ द्वारा होती है।

छावनी बोर्ड तीन श्रेणियों में संगठित हैं-
  1. प्रथम श्रेणी की छावनियाँ

    इनकी असैनिक जनसंख्या 10,000 से अधिक है। ये संख्या में 30 हैं।

  2. द्वितीय श्रेणी की छावनियाँ

    इनकी असैनिक जनसंख्या 2500 और 10,000 के बीच है। ये संख्या में 19 हैं।

  3. तृतीय श्रेणी की छावनियाँ

    इनकी असैनिक जनसंख्या 2500 से कम है। ये संख्या में 13 हैं।

कार्यों की दृष्टि से छावनी बोर्ड नगरपालिका जैसा ही होता है, जिन्हें इन्हें कुछ अतिरिक्त शक्तियाँ भी प्रदान की जाती हैं। छावनी क्षेत्र में सफाई और दुराचार सम्बन्धित कार्यों पर बल दिया जाता है।

छावनी बोर्ड के कार्य अनिवार्य एवं ऐच्छिक दोनों प्रकृति के हैं। श्रीराम माहेश्वरी ने छावनी बोर्ड के अनिवार्य कार्यों का उल्लेख निम्नानुसार किया है-

  • मार्गों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों में प्रकाश की व्यवस्था।
  • मार्गों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर छिड़काव ।
  • मार्गों, नालियों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों की सफाई।
  • घृणात्मक तथा खतरनाक व्यवसायों, उद्यमों एवं परिपाटियों का नियमन ।
  • लोक-सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा सुविधा के आधार पर मार्गों तथा अन्य स्थानों से अवरोधकों एवं प्रक्षेपों को हटाना।
  • खतरनाक इमारतों एवं स्थानों को सुरक्षित बनाना अथवा हटाना।
  • मृतक-क्रिया के स्थलों का अनुरक्षण एवं नियमन ।
  • मार्गों, पुलियों, हाटों, कट्टीखानों, जल निकास व्यवस्था, नालियों का निर्माण तथा मल निस्तारण की व्यवस्था तथा अनुरक्षण।
  • सड़कों के किनारे वृक्ष लगवाना एवं उनका अनुरक्षण करना।
  • शुद्ध पेयजल की व्यवस्था।
  • जन्म एवं मरण का पंजीकरण।
  • सार्वजनिक टीकों की व्यवस्था तथा सार्वजनिक चिकित्सालयों की स्थापना।
  • प्राथमिक पाठशालाओं की स्थापना ।
  • अग्नि से बचाव।

छावनी बोर्ड के ऐच्छिक कार्य इस प्रकार हैं-

  1. सार्वजनिक उपयोगिता की चीजों, तालाबों तथा कुँओं का निर्माण।
  2. अस्वास्थ्यकर स्थानों को निवास योग्य बनाना।
  3. जनगणना करना।
  4. सर्वेक्षण करना।
  5. बिजली का प्रबन्ध करना।
  6. सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का प्रबन्ध ।

छावनी बोर्डों के प्रशासन का रूप यद्यपि बुनियादी तौर पर सैनिक ही बना हुआ है अर्थात् निर्वाचित तत्वों को शक्तिशाली बनाने के लिए अनेक परिवर्तन कर दिए गए हैं, जैसे-

  • प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी के छावनी बोर्डों में निर्वाचित और मनोनीत सदस्यों की संख्या बराबर कर दी गई है,
  • द्वितीय श्रेणी के छावनी बोर्डों में प्रायः एक निर्वाचित और एक मनोनीत सदस्य होता है,
  • भवन-कर निर्धारण समिति में निर्वाचित सदस्यों का बहुमत रखा गया है,
  • इमारतों और सीमा दीवारों पर नियन्त्रण रखने एवं लाइसेन्स के सम्बन्ध में असैनिक क्षेत्र समिति के अधिकारों में वृद्धि की गई है आदि।

नगरीय शासन व्यवस्था में छावनी बोर्डों की उपस्थिति लोकतान्त्रिक व्यवस्था से मेल नहीं खाती है। इसे एक लोकतान्त्रिक देश में स्थानीय स्तर पर सैनिक शासन का ही प्रच्छन्न रूप कहा जा सकता है। इसके अतिरिक्त अधिकृत छावनियाँ बड़े नगरों के निकट स्थित हैं और इतने निकट स्थानीय शासन के दो रूपों का चलना उचित प्रतीत नहीं होता है।

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