(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

आर्थिक संवृद्धि एवं विकास (Economic Growth & Development)

आर्थिक संवृद्धि एवं विकास (Economic Growth & Development)

आर्थिक संवृद्धि एवं विकास

आर्थिक संवृद्धि का अर्थ

आर्थिक संवृद्धि का अर्थ राष्ट्रीय आय के विस्तार से है। आर्थिक संवृद्धि में केवल इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि क्या किसी कालावधि में इसके पहले की कालावधि की तुलना में मात्रा की दृष्टि से अधिक उत्पादन हो रहा है या नहीं। दूसरे शब्दों में आर्थिक संवृद्धि (Economic Growth) एक परिमाणात्मक संकल्पना (Quantitative Concept) है।

प्रो0 चार्ल्स किंडलबर्गर के अनुसार- “आर्थिक संवृद्धि का अर्थ अधिक उत्पादन से है।” इस तरह हम कह सकते हैं कि आर्थिक संवृद्धि एक संकुचित अवधारणा है जिसके अन्तर्गत केवल देखा जाता है कि देश के कुल उत्पादन या प्रति व्यक्ति उत्पादन में समय के साथ कितनी वृद्धि हुई।

आर्थिक संवृद्धि की संकल्पना

आज के दौर में सभी लोग आर्थिक संवृद्धि की बात करते हैं और इस प्रकार के वातावरण में अर्थशास्त्रियों द्वारा आर्थिक संवृद्धि के सिद्धान्त पर लगातार ध्यान देना और उनका विकास करना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। परन्तु विवेचना के बाद भी आर्थिक संवृद्धि की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं बन पाई है।

विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक संवृद्धि का अर्थ अलग-अलग लगाया. है। कुछ अर्थशास्त्रियों की परिभाषा में मूलभूत अन्तर है जबकि कुछ की परिभाषा में सतही अन्तर है। अर्थशास्त्रियों का एक ऐसा भी वर्ग है जो आर्थिक संवृद्धि की निश्चित परिभाषा देने की आवश्यकता ही नहीं समझता। इस वर्ग के अनुसार आर्थिक संवृद्धि का अर्थ अपने आप से स्पष्ट है और आर्थिक संवृद्धि को आसानी से राष्ट्रीय आय सम्बन्धी समग्र राशियों के रूप में मापा जा सकता है।

आर्थिक संवृद्धि को हम एक ऐसी वृद्धि के रूप में परिभाषित कर सकते हैं जो अत्यन्त निम्न जीवन स्तर में फँसी हुई किसी अल्पविकसित अर्थव्यवस्था को अल्पावधि में ही ऊँचे जीवनस्तर पर पहुँचा सके।

जो देश पहले से विकसित हैं, उनमें इसका अर्थ होगा कि विद्यमान संवृद्धि दरों को बनाए रखना। यदि ऐतिहासिक रूप से देखा जाय तो तेज आर्थिक संवृद्धि के साथ-साथ औद्योगीकरण की प्रक्रिया भी जुड़ी है। परन्तु यदि सही रूप में देखा जाय तो आर्थिक क्रियाओं का अधिकाधिक वाणिज्यीकरण (Commercialisation) ही आर्थिक संवृद्धि का सूचक है। यद्यपि आर्थिक संवृद्धि की यह संकल्पना सही है, फिर भी बिल्कुल सुनिश्चित संकल्पना नहीं है और न ही इसका माप सम्भव है। इस सबके बावजूद हम औद्योगिक संरचना में परिवर्तन को आर्थिक संवृद्धि का एक सूचक (Indicator) मान सकते हैं और आर्थिक संवृद्धि को मापने वाले अन्य मापदण्डों के साथ-साथ इस पर भी विचार कर सकते हैं।

आर्थिक विकास का अर्थ

आर्थिक विकास शब्द का उपयोग एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के मात्रात्मक मापों की व्याख्या करने के लिये नहीं बल्कि उन आर्थिक, सामाजिक तथा अन्य परिवर्तनों को व्यक्त करने के लिये किया जाता है, जो संवृद्धि उत्पन्न करते हैं। इसके लिये उत्पादन की तकनीकी में सामाजिक दृष्टिकोण में तथा संस्थाओं में परिवर्तन की आवश्यकता होती है। आर्थिक विकास (Economic Development) एक व्यापक संकल्पना है क्योंकि इसके अन्तर्गत आय तथा गैर आय दोनों को सम्मिलित करते हैं।

आर्थिक विकास की विशेषताएँ

आर्थिक विकास की विशेषताएं निम्नलिखित हैं.

  1. एक प्रक्रिया –

    आर्थिक विकास एक प्रक्रिया है। प्रक्रिया का अर्थ अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक तथा संस्थागत बदलाव से है। इन परिवर्तनों के कारण ही अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों की पूर्ति तथा वस्तुओं की माँग संरचना में बदलाव आते हैं।

साधनों की पूर्ति में परिवर्तन से आशय जनसंख्या, उत्पादन साधन, पूँजी उत्पादन तकनीक व अन्य संस्थागत परिवर्तनों से है। इसी प्रकार वस्तु सम्बन्धी मांग में परिवर्तन से अर्थ जनता की आय की रुचियों में परिवर्तन से है। जैसे- जैसे किसी देश की आर्थिक विकास की प्रक्रिया आगे बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे माँग एवं पूर्ति के स्वरूप में अनेक प्रकार के बदलाव होते जाते हैं। एक परिवर्तन दूसरे परिवर्तन को जन्म देता है तथा एक आर्थिक प्रक्रिया दूसरी क्रिया को गतिशील बनाती है।

  1. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि –

    आर्थिक विकास का प्रमुख उद्देश्य प्रतिव्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि है। प्रति व्यक्ति आय का अनुमान करने के लिए हम राष्ट्रीय आय में कुल जनसंख्या से भाग देकर प्राप्त करते हैं।

प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) = राष्ट्रीय आय (National Income) / कुल जनसंख्या (Total Population)

मात्र राष्ट्रीय आय में होने वाली वृद्धि आर्थिक विकास का प्रतीक नहीं है। इसका कारण यह है कि यदि जनसंख्या में होने वाली वृद्धि दर राष्ट्रीय आय में होने वाली वृद्धि दर की तुलना में अधिक होगी तो प्रतिव्यक्ति आय बढ़ने के स्थान पर कम हो जाएगी। अतः आर्थिक विकास का अनुमान प्रतिव्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि के आधार पर लगाया जा सकता है।

  1. दीर्घकालीन सतत् वृद्धि –

    आर्थिक विकास की विशेषता के अन्तर्गत एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि शुद्ध आय में निरंतर वृद्धि होनी चाहिए। अल्पकाल में आर्थिक क्रिया के एकाएक बढ़ जाने से उदाहरणतः अच्छी फसल अथवा ऐसी ही दूसरी अल्पकालिक परिस्थिति के कारण प्रति व्यक्ति आय में होने वाली अस्थायी वृद्धि को आर्थिक विकास के अन्तर्गत नहीं रखना चाहिए।

  2. तकनीकी अवधारणा –

    विकास एक तकनीकी अवधारणा है जिसका अर्थ उत्पादन तकनीकी में सुधार से है। यह सुधार प्रशिक्षित एवं कुशल श्रम के रूप में, नवीन खोजों एवं अनुसंधानों के रूप में, जीवन स्तर में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के रूप में हो सकता है।

  3. उच्च जीवन स्तर की प्राप्ति –

    आर्थिक विकास का अभिप्राय एक अच्छे जीवन तथा उच्च जीवन स्तर को प्राप्त करने से है, अर्थात् आर्थिक विकास का सम्बन्ध मानव विकास और मानव कल्याण से है।

  4. सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिवर्तन –

    आर्थिक विकास में न केवल आर्थिक परिवर्तनों का समावेश होता है बल्कि इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, संस्थागत बदलाव भी सम्मिलित किये जाते हैं।

महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: wandofknowledge.com केवल शिक्षा और ज्ञान के उद्देश्य से बनाया गया है। किसी भी प्रश्न के लिए, अस्वीकरण से अनुरोध है कि कृपया हमसे संपर्क करें। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। हम नकल को प्रोत्साहन नहीं देते हैं। अगर किसी भी तरह से यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है, तो कृपया हमें wandofknowledge539@gmail.com पर मेल करें।

About the author

Wand of Knowledge Team

Leave a Comment

error: Content is protected !!