कोपेन का जलवायु वर्गीकरण
कोपेन का जलवायु वर्गीकरण
प्रसिद्ध जर्मन भूगोलविद् ब्लादीमीर कोपेन ने सन् 1918 सन् 1931 ई. एवं अंतिम रूप से सन् 1936 ई. में विश्व को जलवायु प्रदेशों में विभक्त करने का प्रयास किया और बतलाया कि, “प्राकृतिक वनस्पति समग्र जलवा का सर्वोत्तम अभिव्यक्तिकरण मानी जाती है।” कोपेन के विचार से वनस्पति का उगना एवं विकसित होना केवल वर्षा की मात्रा पर ही नहीं वरन् वर्षा की प्रभावशीलता पर निर्भर होता है। इस प्रकार, उन्होंने विश्व की जलवायु का वर्गीकरण वनस्पतियों के वितरण के आधार पर किया है।
कोपेन ने सर्वप्रथम विश्व में पायी जाने वाली जलवायु को A, B, C, D एवं E पाँच वर्गों में विभक्त किया जिन्हें पुनः 11 मुख्य तथा 24 गौण भागों में विभक्त किया। अंग्रेजों के बड़े अक्षरों द्वारा विभक्त पाँचों प्रकारों का अभिप्राय निम्नवत् है-
A = उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु जिसमें शीतकाल नहीं होता है।
B = शुष्क जलवायु (Dry climate)
C = मध्य अक्षांशीय समशीतोष्ण जलवायु (Mid Latitude Uniform Temperate climate)
D = शीत शीतोष्ण जलवायु (Cold Temperate climate)
E = ध्रुवीय जलवायु (Polar Climate)
उपरोक्त जलवायु की विशेषताओं को स्पष्ट करने के लिए कोपेन महोदय ने अंग्रेजी के निम्नलिखित अक्षरों का प्रयोग करने के उन्हें उपवर्गों में विभक्त किया है-
W = मरूप्रदेशीय जलवायु
S = स्टेपी जलवायु
W= शीतकाल शुष्क
w’ = शरदकाल में अधिक वर्षा
w” = वर्ष में दो बार अधिकतम एवं दो बार न्यूनतम वर्षा
s = ग्रीष्मकाल शुष्क
f= वर्ष पर्यंत वर्षा
m = मानसून प्रधान वर्षा
इस प्रकार, कोपेन के अनुसार विश्व में निम्नलिखित प्रकार की जलवायु पायी जाती है-
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उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु (A)
इस जलवायु में ठंडे माह का तापमान 18 सेंटीग्रेड या 69.4 फा. से अधिक पाया जाता है। इस जलवायु में शीत ऋतु नहीं होती हे। वार्षिक वर्षा अधिक एवं वाष्पोत्सर्जन से अधिक होती है। वर्षा के आधार पर इसे निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा गया है-
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उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु (Af)-
इस प्रकार की जलवायु में सर्वाधिक शुष्क माह में भी 6 सेमी. से अधिक वर्षा होती है। वर्षा वर्ष भर होती है और तापांतर न्यून होता है।
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उष्ण कटिबंधीय आर्द्र तथा शुष्क जलवायु (Aw)-
इस प्रकार की जलवायु शीतकाल में वर्षा नहीं होता है। किसी एक माह में 6 सेमी. से कम वर्षा होती है। तापमान वर्ष भर ऊँचा रहता है।
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उष्ण कटिबंधीय मानसूनी जलवायु (Am)-
उपर्युक्त दोनों प्रकार की जलवायु के मध्य की दशाओं वाली जलवायु है उष्ण और आर्द्र। शुष्क ऋतु लघु अवधि वाली। वर्ष में दो बार उच्च एवं दो बार न्यून ताप पाया जाता है। ग्रीष्मकाल में अधिक वर्षा होती है। वार्षिक वर्षा अधिक होती है।
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शुष्क जलवायु (B) :
इस प्रकार की जलवायु में वार्षिक वर्षा की मात्रा में वाष्याकरण आधार पर इस जलवायु को दो उपवर्गो तथा प्रत्येक उपवर्ग को तापमान के आधार पर पुनः को अधिक होता है फलस्वरूप अतिरिक्त नमी की कमी पायी जाती है। अधिकतम वर्षा के महानों के दो उपवर्गों तथा प्रत्येक उपवर्ग को तापमान के आधार पर पुनः दो दो उपवर्गों में बाँटा है। इस प्रकार, शुष्क जलवायु (B) को निम्नलिखित चार उपवर्गों में बाँटा गया है-
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उष्ण कटिबंधीय स्टेपी जलवायु (DPAP)-
इस प्रकार के जलवायु में औसत वार्षिक तापमान 18 से. से ऊँचा पाया जाता है।
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मध्य अक्षांशीय शीतयुक्त स्टेपी जलवायु (Bsk)-
इस प्रकार की जलवायु में वार्षिक औसत तापमान 18 से. से नीचा पाया जाता है। यहाँ शीतकाल अधिक ठंडा, वर्षा कम तथा वर्षा का कुछ भाग हिम के रूप में और वार्षिक तापांतर अधिक पाया जाता है।
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निम्न अक्षांशीय गर्म मरूस्थलीय जलवायु (BWk)-
इस जलवायु में वार्षिक औसत तापमान 18 से. से कम वर्ष का प्रतयेक माह शुष्क, औसत वार्षिक वर्षा अत्यधिक कम, वाष्पीकरण औसत वार्षिक वर्षा से लगभग 20 गुना अधिक, वार्षिक तापांतर भी अधिक पाया जाता है।
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मध्य अक्षांशीय शीत मरूस्थलीय जलवायु (BWK)-
इस जलवायु में औसत वार्षिक तापमान 18 से. से कम रहता है। यहाँ शीत ऋतु ठंडी और ग्रीष्म ऋतु अत्यधिक गर्म तथा वर्षा की मात्रा अनिश्चित होती है।
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मध्य अक्षांशीय अथवा मध्य तापीय जलवायु (C) :
इस प्रकार की जलवायु में सर्वाधिक ठंडे माह का तापमान 18 से. या 64.4 फा. से कम किंतु -3 से. या 26.6 फा. से अधिक पाया जाता है। इसके अतिरिक्त कम-से-कम एक महा का तापमान 10 से. या 50 फा० से अधिक रहता है। इस प्रकार जलवायु को वर्षा के मौसमकी वितरण के आधार पर निम्नलिखित तीन उपवर्गों में बाँटा गया है-
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पश्चिम यूरोप तुल्य जलवायु (f)-
इस जलवायु में प्रत्येक ऋतु में वर्षा होती है। ग्रीष्म ऋतु के शुष्क माह में भी वर्षा 3 सेमी. से अधिक होती है। सर्वाधिक गर्म माह में तापमान 20 से. या 71.6° फा. से अधिक पाया जाता है।
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चीन तुल्य जलवायु (w.)-
ग्रीष्मकाल के सर्वाधिक वर्षा वाले माह में शीतकाल के शुष्कतम महीने की वर्षा से 10 गुनी वर्षा होती है।
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भूमध्य सागरीय जलवायु (Cw)-
ग्रीष्मकाल शुष्क, शीतकाल के सर्वाधिक वर्षा वाले माह में ग्रीष्मकाल के शुष्कतम माह की अपेक्षा तीन गुनी वर्षा होती है। ग्रीष्मकाल के सर्वाधिक शुष्क माह में वर्षा 3 सेमी. से कम होती है।
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शीत शीतोष्ण या उच्च अक्षांशीय या सूक्ष्म तापीये जलवायु (D) :
यह जलवायु मुख्य रूप से उत्तरी गोलार्द्ध में पायी जाती है। यहाँ सर्वाधिक ठंडे माह का तापमान 8 से. से कम तथा सर्वाधिक गर्म माह का तापमान औसतन 13° से. के आसपास पाया जाता है। वर्ष के कुछ महीनों में धरातल हिमाच्छादित रहते हैं।
इस जलवायु को निम्नलिखित दो वर्गों एवं आठ उपवर्गों में विभक्त किया जाता है-
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शुष्क शीतकाल रहित ठंडी जलवायु (Df)-
इस जलवायु में प्रत्येक माह आर्द्र रहता है। इस जलवायु को 4 उपवर्गों में बाँटा गया है- Dfa-ग्रीष्म ऋतु गर्म एवं लंबी, शीतकाल अत्यधिक ठंडा शुष्क काल अनुपस्थित, शीत ऋतु की अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु अधिक आर्द्र, वर्षा हिम की तुलना में जल के रूप में अधिक Dfb-शीत ऋतु अत्यधिक ठंडी, कम-से-कम तीन माह का तापमान हिमांक से नीचे, ग्रीष्म ऋतु कम गर्म और छोटी, हिम के रूप में वर्षा अधिक, वर्ष का प्रत्येक माह आर्द्र, Dfc- शीतकाल अत्यधिक लंबा, ग्रीष्मकाल छोटा, औसत वार्षिक तापमान7° से लेकर शून्य डिग्री सेण्टीग्रेड तर्क, लगभग छह माह तापमान हिमांक से नीचे, वर्षा का अधिकांश हिम के रूप में, प्रत्येक माह आर्द्र, Did- उप ध्रुवीय जलवायु, ग्रीष्मकाल छोटा तथापि ठंडा, शीतकाल अत्यधिक ठंडा, वर्षा हिम के रूप में।
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शुष्क शीतकाल सहित ठंडी जलवायु (Dw)-
इस जलवायु में शीतकाल शुष्क रहता है। इसके चार उप विभाग अग्रलिखित हैं- Dwa ग्रीष्म कऋतु अत्यधिक गर्म और आर्द्र, शीतकाल ठंडा एवं शुष्क Dwb ग्रीष्मकाल अपेक्षाकृत कम गर्म, शीतकाल शुष्क एवं ठंडी, वर्षा ग्रीष्म ऋतु में, वर्षा हिम के रूप में कम Dwd-ग्रीष्मकाल छोटा किंतु गर्म, शीतकाल अत्यधिक ठंडा परंतु शुष्क, वर्ष में लगभग 6 माह तापमान हिमांक से नीचे, Dwd- ग्रीष्मकाल अपेक्षाकृत अधिक ठंडा, वर्ष के 6 माह से अधिक औसत तापमान हिमांक से नीचे पाया जाता है।
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ध्रुवीय जलवायु (E) :
इस जलवायु में वर्ष के सर्वाधिक गर्म माह में भी तापमान 10 सेंटीग्रेड से नीचा पाया जाता है। इस जलवायु में वर्षा का अधिकांश हिम के रूप में प्राप्त होता है। इस प्रकार की जलवायु पर्वतों के ऊपरी भागों में भी पायी जाती है। इस जलवायु को शून्य डिग्री की समताप रेखा के आधार पर इसे दो उपवर्गों में बाँटा गया है-
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टुण्ड्रा जलवायु (ET)-
इस जलवायु के प्रत्येक माह में वर्षा हिम के रूप में होती है। सर्वाधिक गर्म माह का औसत तापमान 10 सेण्टीग्रेड से कम रहता है।
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हिमाच्छादित जलवायु (EF)-
इस जलवायु में तापमान वर्षभर हिमांक से नीचे रहता है।
आलोचना
कोपेन द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त वर्गीकरण कभी भी सर्वमान्य नहीं रहा है। इनके द्वारा प्रस्तुत जलवायु के वर्गीकरण की आलोचना अनेक आधारों पर की गयी है जिसनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं-
- कोपेन ने संपूर्ण भूमंडल को कुछ विशेष प्रदेशों के तापमान और वर्षा की मात्रा के आधार पर जलवायु प्रदेशों में विभक्त किया है जो कि तर्कसंगत नहीं है।
- कोपेन ने अपने वर्गीकरण में पवन परिसंचरण, उच्चावच, समुद्री धाराओं आदि तत्वों पर कोई ध्यान नहीं दिया है।
- कोपेन ने जलवायु प्रदेशों के नामकरण में काल्पनिक प्रतीक शब्दों का उपयोग किया है जिससे यह वर्गीकरण जटिल हो गया है।
- कोपेन के वर्गीकरण में पगेट साउण्ड की वनस्पतियों की भूमध्य सागरीय (Cs) जलवायु में रखा है जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है।
- उन्होंने विभिन्न प्रकार की जलवायु को स्पष्ट सीमाओं द्वारा बाँटा है जो कि वास्तविक से परे है क्योंकि इस प्रकार की जलवायु का परिवर्तन दूसरे प्रकार कीजलवायु में धीरे-धीरे होता है।
महत्वपूर्ण लिंक
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