असहयोग आन्दोलन का मूल्यांकन
असहयोग आन्दोलन का मूल्यांकन
आन्दोलन प्रारम्भ करने के समय महात्मा गाँधी ने देशवासियों को यह आश्वासन दिया था कि उनको उनके कार्यक्रम के अनुसार आचरण करने पर एक वर्ष के भीतर स्वराज्य प्राप्त हो जायेगा, किन्तु ऐसा न हो पाया और आन्दोलन चलाने वाला तथा उसको प्रोत्साहन प्रदान करने वाला स्वयं बन्दीगृह की सलाखों के भीतर बन्द कर दिया गया और इसी कारण यह कहा जाता है कि आन्दोलन अपने उद्देश्य की प्राप्ति में असफल रहा। यह सत्य है कि आन्दोलन असफल रहा और उसको स्थगित कर दिया गया, जब वह उच्चतम पराकाष्ठ पर था आन्दोलन की समाप्ति पर देश में निराशा का वातावरण छा गया और मनुष्यों की समझ में नहीं आया कि इस दिशा में क्या करना चाहिये? महात्मा गाँधी ने उनके सामने एक कार्यक्रम अवश्य प्रस्तुत कर दिया था। किन्तु उपर्युक्त वर्णन से यह समझना भूल होगी कि आन्दोलन पूर्णतया असफल रहा आन्दोलन को अन्य दिशाओं में पर्याप्त सफलता प्राप्त हुई जैसा कि सुभाषचन्द्र बोस ने कहा कि 1919 के वर्ष ने देश को निःसन्देह एक सुव्यस्थित पार्टी संगठन प्रदान किया, इससे पूर्व कांग्रेस एक वैधानिक दल था और वह मुख्यतः एक बात करने वाली संस्था थी। महात्मा गाँधी ने इसको नया विधान ही नहीं दिया, अपितु उसे एक क्रान्तिकारी संगठन में परिवर्तित कर दिया। देश के एक कोने से दूसरे कोने तक एक जैसे नारे लगाये जाने लगे और एक जैसी नीति और एक जैसी विचारधारा सर्वत्र दृष्टिगोचर होने लगी। अंग्रेजी भाषा का महत्व जाता रहा और कांग्रेस ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार कर लिया। खादी सब कांग्रेसियों की नियमित पोशाक बन गई। इस आन्दोलन से देश को बहुत अधिक लाभ हुआ, जिसका वर्णन निम्न पंक्तियों में किया जायेगा।
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राष्ट्रीयता की भावना का प्रचार–
आन्दोलन ने भारतवासियों में राष्ट्रीयता की भावना का प्रचार किया। इस आन्दोलन का प्रभाव समस्त देश पर पड़ा और विभिन्न प्रान्तों के निवासियों ने अपने आपको कांग्रेस के झण्डे के नीचे एकत्रित तथा संगठित किया।
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कांग्रेस की नीति में परिवर्तन–
इसके पूर्व तक कांग्रेस की नीति वैधानिक साधनों द्वारा अपने उद्देश्य की प्राप्ति करना था, किन्तु अब से उसने सक्रिय आन्दोलन की नीति को अपनाया उसने सरकारी कानूनों की अवज्ञा करने का निश्चय किया।
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स्वदेशी वस्तुओं से प्रेम–
इस आन्दोलन ने भारतवासियों में स्वदेशी वस्तुओं के प्रति प्रेम जागृत किया। उन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और विभिन्न स्थानों पर उनकी होली जलाई खद्दर का विशेष रूप से प्रचार होना आरम्भ हुआ जिसके कारण विदेशी मिलों को बहुत अधिक क्षति उठानी पड़ी और भारत में कुटीर उद्योग-धन्धों को बड़ा प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। उनमें नवजीवन का संचार हुआ।
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सरकार की जड़ों को हिलाना–
इस आन्दोलन द्वारा सरकार की जड़ें हिल गईं और उन्होंने उदारवादियों के साथ सहयोग कर नई सुधार योजनाओं को उचित रूप से कार्यान्वित करने का प्रयास किया।
इस प्रकार यह अवश्य स्वीकार करना होगा कि इस आन्दोलन का बहुत अधिक महत्व है। जनता में बड़ी जागृति हुई और स्वराज्य का सन्देश समस्त भारतवासियों को ज्ञात हो गया और उसकी गूंज भारत के कोने-कोने में आने लगी।
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