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सामूहिक सुरक्षा एवं सामूहिक प्रतिरक्षा, प्रादेशिक संगठन, निरस्त्रीकरण, शक्ति संतुलन

सामूहिक सुरक्षा एवं सामूहिक प्रतिरक्षा, प्रादेशिक संगठन, निरस्त्रीकरण, शक्ति संतुलन

निम्नलिखित पर टिप्पणी:

  1. सामूहिक सुरक्षा तथा सामूहिक प्रतिरक्षा
  2. सामूहिक सुरक्षा तथा प्रादेशिक संगठन
  3. सामूहिक सुरक्षा तथा निरस्त्रीकरण
  4. सामूहिक सुरक्षा तथा शक्ति संतुलन

सामूहिक सुरक्षा एवं सामूहिक प्रतिरक्षा

सामूहिक सुरक्षा (Collective Security) तथा सामूहिक प्रतिरक्षा (Collective defence) दो ऐसे शब्द हैं जिन्हें कभी-कभी समानार्थक मान लिया जाता है, जबकि दोनों में पर्याप्त भेद है। यद्यपि यह सच है कि दोनों व्यवस्थाओं के अन्तर्गत सम्पन्न मैत्री सन्धियों में सम्मिलित देश आक्रमण की स्थिति में एक-दूसरे की सहायता करने का वचन देते हैं तथा दोनों में ही सामूहिक शब्द का प्रयोग भी हुआ है तथापि सामूहिक सुरक्षा व सामूहिक प्रतिरक्षा के प्रयोजन व अभिग्रह एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। जहाँ एक ओर सामूहिक सुरक्षा का लक्ष्य ‘कहीं भी किसी भी आक्रमणकर्ता पर चोट पहुंचाने’ से सम्बद्ध होता है वहीं सामूहिक मोर्चेबन्दी की सैनिक सन्धि किसी विशिष्ट शत्रु के विरुद्ध होती है किन्तु कुछ विशिष्ट राजनयिक कारणों से इसका उल्लेख सन्धि की संविदा में नही किया जाता है। उत्तरी अटलांटिक सन्धि संगठन (NATO), दक्षिणी पूर्वी एशिया सन्धि संगठन (SEATO), वारसा सन्धि व अन्य कई द्विपक्षीय सैनिक सन्थियाँ किसी न इसी सुनिश्चित शत्रु को ध्यान में रखकर ही की गयी है जबकि सामूहिक सुरक्षा इन सन्धियों अथवा व्यवस्थाओं से सर्वथा भिन्न होती है।

डॉ० महेन्द्र कुमार के शब्दों में, “सामूहिक सुरक्षा किसी सुनिश्चित विरोधी का मुकाबला करने की ताकत नहीं देती। वह ऐसे हर देश के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए होती है जो आक्रमण करे, चाहे वह देश किसी देश विशेष के साथ मैत्री सन्धि से जुड़ा देश हो या उसका मित्र हो अथवा उसका दुश्मन हो। इस प्रकार सामूहिक मोर्चेबन्दी के अन्तर्गत शान्ति भंजन का स्वरूप नियत होता है और सामूहिक सुरक्षा के अन्तर्गत अनियत। सामूहिक सुरक्षा किसी सम्भाव्य आक्रमण का विचार नहीं रखती बल्कि यह मानती है कि कोई भी राज्य आक्रामक बन सकता है।”

वस्तुतः, सामूहिक मोर्चेबन्दी की अवधारणा सामूहिक सुरक्षा के सिद्धान्त के प्रतिकूल है क्योंकि यह अन्ततः सैनिक गुटबन्दियों को प्रोत्साहन देकर विश्व में तनाव, प्रतिस्पर्धा व असुरक्षा के वातावरण का सृजन करती है।

सामूहिक सुरक्षा एवं प्रादेशिक संगठन

प्रायः यह स्वीकार किया जाता है कि सन्धियाँ एवं प्रादेशिक संगठन सामूहिक सुरक्षा के उद्देश्य से की जाती है जिनका उद्देश्य किसी प्रदेश अथवा क्षेत्र विशेष की सुरक्षा करना होता है किन्तु वास्तविकता कुछ और ही है। विश्व में जितने भी प्रादेशिक संगठन अथवा सन्धियाँ सम्पन्न हुई हैं, उनका मूलाधार गुटबन्दी, प्रतिस्पर्धा एवं पारस्परिक द्वेष जैसे कारक रहे हैं। इस प्रकार की गुटबंदियों पर आधारित प्रादेशिक संगठनों से सुरक्षा के स्थान पर युद्ध को प्रोत्साहन मिलता है। नाटो, सीटो, सेण्टो व वारसा जैसे सैन्य संगठनों के सन्दर्भ में इसे सरलता से समझा जा सकता है। सोवियत संघ व संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के मध्य चले शीत के परिणामस्वरूप गठित इन सैन्य संगठनों ने विश्व में शान्ति के सृजन के स्थान पर अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को उत्पन्न करके संयुक्त राष्ट्र संघ के मूल उद्देश्यों पर कुठाराघात किया है तथा सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा एवं भावनाओं को सर्वाधिक क्षति पहुंचाई है।

सामूहिक सुरक्षा एवं निरस्त्रीकरण

सामूहिक सुरक्षा एवं निरस्त्रीकरण दोनों का मूल उद्देश्य युद्ध की समस्याओं का समाधान निकालकर अन्ततः अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के वातावरण का सृजन ही है। सामूहिक सुरक्षा एवं निरस्त्रीकरण के पारस्परिक सम्बन्धों पर प्रकाश डालते हुए बी0 कोहेन ने बताया है कि, “मैं इस तथ्य पर जोर डालना चाहूँगा कि सामूहिक सुरक्षा के कार्यक्रम तथा निरस्त्रीकरण में घनिष्ठ सम्बन्ध है, दोनों प्रकृतिवश साथ-साथ चलते हैं। निरस्त्रीकरण के क्षेत्र में हम उस दिन की तलाश में हैं जब किसी राष्ट्र के पास शस्त्रधारी सेना अथवा ऐसे हथियार नहीं होंगे जो उसके पड़ोसी के लिए भय का कारण बन सकें। सामूहिक सुरक्षा के क्षेत्र में हम उस दिन की तलाश में हैं जबकि राष्ट्र अपनी सुरक्षा के लिए अपनी निजी सेनाओं पर इतने निर्भर नहीं रहेंगे जितने संयुक्त राष्ट्र पर। यदि राष्ट्रों को यह विश्वास दिलाया जा सके कि आक्रमण होने पर वे अकेले नहीं होंगे तो उन्हें प्रतिरक्षा के लिए कम हथियारों की आवश्यकता होगी। जैसे-जैसे निरस्त्रीकरण के क्षेत्र में प्रगति की जाती है वैसे-वैसे सामूहिक सुरक्षा की स्थापना का कार्य सरल होता जाता है। दोनों साथ-साथ चलते रहते हैं…निरस्त्रीकरण एवं सामूहिक सुरक्षा शान्ति के लिए दो महान् साहस हैं।’

सामूहिक सुरक्षा व शक्ति संतुलन

सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा को शक्ति संतुलन सिद्धान्त से श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि जहाँ एक ओर शक्ति संतुलन पद्धति में सभी राष्ट्र सन्धियों में बंधकर अपने राजनैतिक लक्ष्यों व अन्य महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु शक्ति का प्रयोग करते हैं वहीं सामूहिक सुरक्षा प्रणाली अन्तर्गत सामूहिक व सहयोगात्मक रूप से शान्ति की स्थापना तथा न्याय की सुरक्षा हेतु बल का प्रयोग किया जाता है। इसके बावजूद सामूहिक सुरक्षा व शक्ति संतुलन में कई समानतायें भी हैं। दोनों ही अवधारणाएं शान्ति के लिए युद्ध में विश्वास के साथ-साथ राज्यों के मध्य पारस्परिक सहयोग में विश्वास रखती हैं। इतना ही नहीं, दोनों ही व्यवस्थाएं अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति, सुरक्षा व स्थायित्व की स्थापना हेतु संकल्पबद्ध होने अतिरिक्त शक्ति नियंत्रित करने के साधन के रूप में मानी जाती हैं। इस संदर्भ में क्वींसी राइट ने कहा भी है कि, “शक्ति संतुलन तथा सामूहिक सुरक्षा के बीच सम्बन्ध एक ही साथ एक-दूसरे के पूरक तथा विरोधी रहे हैं तथा सामूहिक सुरक्षा को शक्ति संतुलन पर आधारित होना चाहिए।’

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