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राज्य सचिवालय (State Secretariat)

राज्य सचिवालय

राज्य सचिवालय का संगठन

(Organisation of Secretariat)

राज्य सचिवालय का जो संगठन उपलब्ध होता है यह बहुत कुछ ब्रिटिश प्रशासन की विरासत है। राज्यपाल, मुख्यमन्त्री के परामर्श के आधार पर विभागों का निर्माण करता है और इन विभागों द्वारा राज्य शासन का संचालन किया जाता है। सचिवालय मुख्य रूप से मुख्यमन्त्री एवं उसकी मन्त्रिपरिषद् का कार्यालय है। अतः यह राज्य सरकार का शीर्षस्थ कार्यालय होने के कारण समस्त शक्तियों का केन्द्र बिन्दु है।

सचिवालयीय विभागों की संख्या प्रत्येक राज्य में भिन्न-भिन्न है। यह संख्या 11 से लेकर 35 तक है। अधिकांश राज्यों के सचिवालय में साधारणतः निम्न विभाग हैं-सामान्य प्रशासन, गृह, राजस्व, खाद्य और कृषि, योजना, पंचायती राज, वित्त, विधि, सार्वजनिक निर्माण, स्वास्थ्य, शिक्षा, उद्योग, शक्ति और सिंचाई, सहकारिता, यातायात, स्थानीय शासन, कारागृह श्रम और रोजगार, आबकारी और कर।

इस प्रकार राज्य सचिवालय विभिन्न विभागों में वर्गीकृत रहता है। प्रत्येक विभाग के शीर्ष पर सचिव रहता है। यह आवश्यक नहीं कि एक सचिव एक ही मन्त्री के अधीन कार्य करे, वह एक से अधिक मन्त्रियों के प्रति भी उत्तरदायी हो सकता है। यहाँ पर उल्लेखनीय है कि सचिव किसी मन्त्री विशेष का नहीं वरन् सरकार का सचिव होता है। राज्य सचिवालय के शीर्ष पर ‘मुख्य सचिव’ रहता है। यह सचिवालय के उचित एवं कुशल संचालन के लिए उत्तरदायी होता है। वह मुख्यमंत्री का प्रमुख परामर्शदाता एवं राज्य सचिवालय का ‘प्रधान’ होता है। इस रूप में वह मन्त्रियों द्वारा दिये गये परामर्श से प्रशासनिक विभागों का अवलोकन करता है, निर्धारित प्रशासनिक मापदण्डों तथा प्रक्रियाओं का अतिक्रमण या अनियमितता होने से रोकता है तथा नागरिक सेवा के आचरण और ईमानदारी का उच्च स्तर निर्धारित करता है। वह राज्य की सिविल सेवाओं का भी अध्यक्ष होता है। आधुनिक प्रशासन की चुनौतियों को देखते हुए यह अनिर्वाय है कि मुख्य सचिव पर्याप्त अनुभवी और योग्य व्यक्ति होना चाहिए।

यदि सचिवालय का प्रशासनिक अध्यक्ष मुख्य सचिव होता है तो प्रत्येक विभाग का प्रशासनिक अध्यक्ष ‘शासन सचिव’ (Secretary to Government) होता है। यह प्रायः अखिल भारतीय सेवा(I.A.S.) का वरिष्ठ और अनुभवी सदस्य होता है। वह मन्त्री विशेष का ही सचिव नहीं होता, बल्कि उसे ‘शासन सचिव’ कहा जाता है जो सम्पूर्ण सरकार के लिए उस विभाग का प्रशासनिक अध्यक्ष माना जाता है। सचिव के अधीन कतिपय राज्यों में अतिरिक्त सचित्र’ तथा किसी-किसी में ‘विशिष्ट सचिव’ होते हैं। एक विभाग के ही विशेष अनुभाग का स्वतन्त्र चार्ज, सचिव के सामान्य नियन्त्रण में रहते हुए, इन्हें दे दिया जाता है। इसके नीचे एक या अधिक ‘उप-सचिव’ होते हैं। बड़े विभागों में एक से अधिक और छोटे में एक उप-सचिव नियुक्त किया जाता है। ‘उप-सचिव’ विभाग के कामकाज के संचालन में सचिव की व्यावहारिक तौर पर सर्वाधिक मदद करता है। उप-सचिव के नीचे सहायक सचिव होता है। ‘सहायक सचिव’ भी विभाग की आवश्यकतानुसार एक या अधिक हो सकते हैं।

सचिव स्तरीय अधिकारी वर्ग की इस श्रृंखला की मदद हेतु सेक्शन ऑफीसर (अनुभाग अधिकारी), सहायक, अवर और प्रवर लिपिक, टंकणकर्ता, चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी आदि होते हैं। इनकी संख्या प्रत्येक विभाग में उसकी आन्तरिक संरचना की आवश्यकता के अनुसार होती है।

सचिवालय में सामान्य प्रशासन विभाग के अधीन एक सामान्य पुस्तकालय होता है। इसके अतिरिक्त विधि विभाग का अपना पृथक् पुस्तकालय होता है। सचिवालय का एक रिकार्ड सैक्शन भी होता है। यह दो प्रमुख शाखाओं में विभाजित है-नवीनतम रिकार्ड और ऐतिहासिक रिकार्ड और प्रकाशन । ऐतिहासिक रिकार्ड गोपनीय नहीं होते इसलिए सचिवालय में अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं को उपलब्ध कराये जा सकते हैं।

राज्य सचिवालय के कार्य

(Functions of Secretariat)

सचिवालय राज्य प्रशासन के पर्यवेक्षण, निर्देशन और नियन्त्रण का कार्य करता है। सरकारी नीति रचना हेतु आवश्यक सामग्री एकत्रित करना और उसका विश्लेषण कर मन्त्रिपरिषद् के सम्मुख प्रस्तुत करना सचिवालय का कर्त्तव्य है। राज्य सरकार की विभिन्न नीतियों और कार्यक्रमों की क्रियान्विति की देख-रेख करना तथा समय-समय पर सरकारी कार्यक्रमों का सही-सही मूल्यांकन करना भी सचिवालय का उत्तरदायित्व है। साधारणतः राज्य-सचिवालय द्वारा निम्नलिखित कार्य किये जाते हैं-

  1. नीति निर्माण एवं नियोजन

    मन्त्रियों सहित सचिवालय के सभी अधिकारी राज्य के शासन और प्रशासन को चलाने के लिए नीतियों का निरूपण करते हैं। सभी पक्षों एवं विषय के विविध आयामों पर विचार करने के बाद उस मामले में अन्तिम रूप से नीतिगत निर्णय लेने का कार्य सचिवालय ही करता है। सचिवालय निर्धारित नीतियों को सही रूप में क्षेत्रीय कार्यालयों को संप्रेषित करता है। राज्य के योजनाबद्ध विकास हेतु राष्ट्रीय योजना आयोग द्वारा योजनाओं को अन्तिम रूप देने के पूर्व राज्य सचिवालय राज्य की योजना का निर्माण करता है। राज्य के विकास हेतु प्राथमिकताओं का निर्धारण, साधन के स्रोतों का आकलन एवं एकत्रण तथा योजना आयोग से उसकी मंजूरी कराने तक की भूमिका राज्य के अधिकारियों द्वारा ही निभायी जाती है।

  2. सचिवीय सहायता

    राज्य सचिवालय राज्य मन्त्रिमण्डल तथा उसकी विभिन्न समितियों को उनके नित्य-प्रति के कार्यों से सम्बन्धित सभी विषयों पर सचिवीय सहायता प्रदान करने, उनकी बैठकों की कार्य-सूची (Agenda) बनाने तथा उनमें की गयी कार्यवाहियों का आलेखन आदि करने के लिए उत्तरदायी है।

  3. सूचना केन्द्र के रूप में

    सचिवालय विभिन्न सरकारी संस्थाओं से सम्बन्धित आवश्यक सूचनाएँ मन्त्रिमण्डल तथा उसकी विभिन्न समितियों एवं राज्यपाल को प्रेषित करता रहता है। इसी प्रकार मन्त्रिमण्डलों की बैठकों में लिये जाने वाले निर्णयों की सूचना भी यह सम्बन्धित विभागों तक पहुँचता है। प्रमुख विषयों पर मन्त्रिमण्डल द्वारा लिये गये निर्णयों को यह मासिक प्रतिवेदन के रूप में तैयार करता है और विभिन्न विभागों और संस्थाओं को प्रेषित करता रहता है।

  4. समन्वयात्मक कार्य

    राज्य स्तर पर सचिवालय राज्य प्रशासन की एक समन्वयकारी संस्था है। राज्य सरकार का मुख्य सचिव विभिन्न सचिव समितियों (Committees of Secretaries) का अध्यक्ष होने के कारण विभागों में समन्वय स्थापित करने में पर्याप्त रूप से प्रभावी रहता है।

  5. परामर्शदात्री कार्य

    राज्य सचिवालय में कार्यरत सभी शासन सचिव अपने-अपने मन्त्रियों के लिए प्रमुख परामर्शदाता होते हैं। मुख्य सचिव मुख्यमन्त्री का प्रमुख परामर्शदाता और निकटतम सहयोगी होता है। इसी तरह अन्य शासन सचिव भी शासकीय मामलों में सभी आवश्यक सूचनाओं एवं तथ्यों के प्रकाश में मन्त्रियों एवं मुख्यमन्त्री को यदि, वे चाहें, तो उपयुक्त परामर्श उपलब्ध कराते हैं। इस परामर्श की नीतियों के निरूपण एवं निष्पादन की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण मदद मिलती है।

  6. मन्त्रिमण्डल से सम्बन्धित विविध कार्य

    मन्त्रिमण्डल के समक्ष आने वाले सभी विषयों के सम्बन्ध में सचिवालय को मन्त्रिमण्डल की सहायता तथा आवश्यक कार्यवाही करनी पड़ती है। इनमें से कतिपय प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

    • व्यवस्थापन सम्बन्धी मामले, जिनमें अध्यादेश जारी करना भी सम्मिलित है;
    • राज्यपाल द्वारा समय-समय पर विधानसभा में दिये जाने वाले अभिभाषणों तथा संदेशों को तैयार करना;
    • विधानसभा के अधिवेशनों को आरम्भ करने, स्थगित करने तथा भंग करने एवं विधानसभा को ही भंग करने सम्बन्धी प्रस्तावों पर विचार करना;
    • किन्हीं विशेष घटनाओं पर सार्वजनिक समितियों के गठन तथा इन समितियों द्वारा दिये जाने वाले प्रतिवेदनों पर कार्यवाही किये जाने सम्बन्धी कार्य;
    • सरकार के समक्ष वित्तीय साधनों से सम्बन्धित कठिनाइयाँ तथा इन कठिनाइयों को दूर करने सम्बन्धी सुझाव;
    • विभिन्न मन्त्रियों द्वारा निर्णय हेतु प्रस्तुत प्रस्तावों अथवा निर्देशों को प्राप्त करने सम्बन्धी आवेदनों पर कार्यवाही;
    • मन्त्रिमण्डल द्वारा लिये गये पूर्व निर्णयों को परिवर्तित अथवा संशोधित करने हेतु प्रस्ताव;
    • मन्त्रियों के पारस्परिक विवादों को सुलझाने सम्बन्धी प्रस्ताव;
    • किसी मन्त्री अथवा प्रशासक के बीच उठने वाले विवाद;
    • वे सभी मामले, जो राज्यपाल अथवा मुख्यमन्त्री, मन्त्रिमण्डल के समक्ष विचार-विमर्श हेतु प्रस्तुत करना चाहें;
    • सरकार द्वारा चलाये गये किसी अभियोग को वापस लेने सम्बन्धी प्रस्ताव।

उपर्युक्त सभी मामलों में सचिवालय मन्त्रिमण्डल को विशिष्ट परामर्श प्रदान करता है तथा अन्य आवश्यक कार्यवाही हेतु मार्ग प्रशस्त करता है।

  1. प्रशासकीय नेतृत्व

    सचिवालय ही वह नाभि केन्द्र है जहाँ से राज्य के प्रशासन तन्त्र को प्रशासकीय नेतृत्व प्राप्त होता है। मुख्य सचिव की क्षमता, प्रशासकीय दक्षता, कुशलता और प्रभावी प्रशासकीय नेतृत्व की क्षमता पर सम्पूर्ण राज्य प्रशासन की कुशलता निर्भर करती है। सभी शासकीय विभागों के शीर्षस्थ अधिकारी शासन सचिव भी सचिवालय के अभिन्न अंग होते हैं और मन्त्री के प्रमुख परामर्शदाता होने के नाते वे विभाग की नीतियों को अन्तिम रूप देने में प्रशासकीय नेतृत्व प्रदान करते हैं। विभाग के अध्यक्ष और अधीनस्थ अधिकारियों को जब कभी भी नीतियों के निष्पादन में कोई कठिनाई अनुभव होती है, दिशा-निर्देश और मार्गदर्शन के लिए वे सचिवालय के अधिकारियों की ओर ही देखते हैं।

  2. वित्तीय एवं बजट सम्बन्धी कार्य

    राज्य की आर्थिक एवं वित्तीय दशा को सुदृढ़ बनाये रखने का दायित्व भी सचिवालय का ही है। सभी प्रशासकीय विभाग अपना बजट बनाकर वित्त विभाग को भेजते हैं और वित्त विभाग राज्य के व्यापक वित्तीय हितों में समन्वय एवं सन्तुलन स्थापित करते हुए राज्य के बजट को अन्तिम रूप देता है। बजट निर्धारणों के अनुसार खर्चे की प्रगति का मूल्यांकन करने का कार्य सचिवालय द्वारा सम्पन्न किया जाता है।

  3. सांख्यिकीय प्रशासन

    राज्य सरकार की सांख्यिकी नीति बनाने तथा उसे निष्पादित करने एवं विभिन्न सांख्यिकी संस्थाओं के मध्य समन्वय बनाये रखने की दृष्टि से सचिवालय की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है।

  4. कार्मिक प्रबन्ध

    राज्य की लोक सेवा की भर्ती, नियुक्ति, वर्गीकरण, पदोन्नति, वेतन, सेवा शर्ते, अनुशासनात्मक कार्यवाहियों आदि के बारे में नीति और नियमों का निर्धारण करता है। यह सर्वविदित है कि राज्य में सभी प्रमुख प्रशासकीय पदों पर नियुक्तियों, पदोन्नतियों एवं स्थानान्तरण के मामले राज्य सचिवालय में राज्य के मुख्यमंत्री एवं मन्त्रिपरिषद् द्वारा निर्णीत किये जाते हैं।

  5. संघीय सरकार एवं केन्द्रीय अभिकरणों से सम्पर्क

    भारत में संघीय शासन प्रणाली है, इसलिए राज्यों के लिए आवश्यक है कि केन्द्र सरकार से निरन्तर सम्पर्क बनाये रखे, केन्द्रीय निर्देशों का राज्यों में पालन करवाये। राज्य सचिवालय केन्द्र सरकार से निरन्तर सम्पर्क बनाये रखता है। केन्द्र सरकार के अतिरिक्त अन्य केन्द्रीय निकायों जैसे योजना आयोग, वित्त आयोग, केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड, निर्वाचन आयोग आदि से राज्य हित के मामलों पर वह सम्पर्क बनाये रखता है।

विभागाध्यक्ष के कार्य एवं दायित्व

सचिवालय के प्रत्येक विभाग के विभागाध्यक्ष के प्रमुख कार्य एवं दायित्व निम्नलिखित हैं-

  1. विभागीय बजट का निर्माण एवं बजट के प्रथम ड्राफ्ट का क्रियान्वयन ।
  2. मन्त्रालय को तकनीकी सलाह देने सम्बन्धी कार्य।
  3. विभाग के कार्य की तकनीक को सुधारने हेतु शोध एवं अनुभवात्मक कार्यक्रमों का निर्धारण तथा क्रियान्वयन ।
  4. विभागीय जिला स्टॉफ के कार्यों का निरीक्षण।
  5. सहायक अधिकारियों की नियुक्तियाँ, पद निर्धारण, स्थानान्तरण एवं पदोन्नति के बारे में नियम बनाना।
  6. सरकार द्वारा बाह्य संस्थाओं में कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए सलाह देना।

राज्य सचिवालय की कार्य प्रणाली

(Working Process in the State Secretariat)

राज्य सचिवालय के विभिन्न स्तरों के पदाधिकारी अपने पद की महत्ता के अनुसार कार्य सम्पन्न करते हैं। शासन सचिव सम्पूर्ण विभाग और अधीनस्थ स्टॉफ पर सामान्य नियन्त्रण एवं अधीक्षण रखता है। उप-सचिव उसकी सहायता करते हैं तथा अपर सचिव द्वारा यह देखा जाता है कि किसी प्रस्तुत मामले से सम्बन्धित सभी तथ्य संलग्न किये गये अथवा नहीं। अनुभाग का अधीक्षक यह व्यवस्था करता है कि अनुभाग में आने वाले सभी कागज पत्रों पर उचित कार्यवाही की जाये। अधीक्षक की देखरेख में ही कार्यलय प्रक्रिया तथा फाइल बनाने आदि कार्यों से परिचित रहता है, इसलिए अपने सहायकों को आवश्यक निर्देश प्रदान कर सकता है। वह निर्णय के ‘क्या’ पर प्रभाव नहीं डालता वरन् ‘कैसे’ का सुझाव देता है। निर्णय लेना उच्च अधिकारियों का कार्य है।

सचिवालय की कार्य-प्रक्रिया ‘सेक्रेटेरियेट मेनुअल’ में उल्लिखित होती है। किसी राज्य सचिवालय में अपनायी गयी फाइल व्यवस्था अत्यन्त सरल होती है। उदाहरण के लिए राजस्थान सचिवालय में फाइल के दो भाग किये जाते हैं-टिप्पणियाँ एवं पत्र व्यवहार। टिप्पणी वाले भाग में सम्बन्धित विषय पर विभाग का अभिमत अंकित होता है। पत्र व्यवहार वाले भाग में किसी विषय पर प्राप्त किये गये तथा भेजे गये सभी पत्र होते हैं।

सचिवालय मेनुअल में यह भी उल्लिखित है कि एक कागज को किस प्रकार व्यवस्थित किया जाये, संलग्न किया जाये, पृष्ठों पर नम्बर किस प्रकार डाला जाये, आदि। फाइल रखने का तरीका ऐसा होना चाहिए कि एक अधिकारी किसी फाइल को मँगाकर तत्सम्बन्धी सारी बातों की जानकारी कर सके।

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