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लोक प्रशासन की प्रकृति और क्षेत्र

लोक प्रशासन की प्रकृति

लोक प्रशासन की प्रकृति

(Nature of Public Administration)

लोक प्रशासन के सम्बन्ध में दोनों ही दृष्टिकोण है व्यापक एवं संकुचित। मौस्टर्न मार्क्स जैसे लेखक तो प्रशासन के न्यायिक पक्ष को इसमें सम्मिलित करना चाहते हैं किन्तु संकुचित रूप में लोक प्रशासन का क्षेत्र केवल कार्यपालिका द्वारा सम्पादित कार्यों तक सीमित है। अतः प्रसिद्ध विद्वान डॉ0 महादेव प्रसाद ने लोक प्रशासन की परिभाषाओं को चार वर्गों में संगठित किया है।

  1. ह्वाइट जैसे लेखक जो प्रशासन की प्रकृति को व्यापक मानते हैं, किन्तु उसके क्षेत्र को सीमित रखना चाहते हैं।
  2. लेखकों का दूसरा वर्ग वह है जो प्रशासन के क्षेत्र तथा उसकी प्रकृति दोनों को ही संकुचित मानता है।
  3. लूथर गुलिक (Gullick) लेखकों के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है जो लोक प्रशासन की प्रकृति को तो संकीर्ण मानते हैं किन्तु उसके क्षेत्र को व्यापक बताते हैं।
  4. डिमॉक तथा फिफनर उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जो लोक प्रशासन के क्षेत्र तथा प्रकृति दोनों को व्यापक मानते हैं। इसके अनुसार प्रशासन का सम्बन्ध प्रशासन की समस्त क्रियाओं से है।

लोक प्रशासन का सम्बन्ध लोकनीति की क्रियान्विति मात्र से नहीं है लोकनीति का निर्माण कार्य भी परोक्ष में प्रशासन का दायित्व है इसे और अधिक स्पष्ट करते हुए विलोबी (Willoughby) ने कहा है कि लोक प्रशासन समस्त कानूनों, विनियमों, कार्य विधियों, संहिताओं तथा रीति-रिवाजों का सम्मिलित रूप है।

प्रशासन शब्द के सन्दर्भ में हमें एक अन्य प्रश्न पर भी विचार करना होगा प्रशासन में कौनसी क्रियाओं को सम्मिलित किया जाय? इस दिशा में दो दृष्टिकोण हैं—एकीकृत (Integrated) तथा प्रबन्धात्मक (Managerial) इन दोनों वर्गों में प्रशासन के जिन कार्यों को समाहित किया जाता है वे इस प्रकार हैं-

prashasaniye kaary

प्रशासन के सम्बन्ध में इन दोनों दृष्टिकोणों को अपने एकांगी रूप में सही नहीं कहा जा सकता। यदि प्रबन्धात्मक दृष्टिकोण को स्वीकार कर लिया जाय तो इसके अर्थ होंगे कि उच्च पदाधिकारी ही प्रशासन के यंत्र रह सकेंगे। अध्यापक, लिपिक तथा चपरासी का उसमें कोई स्थान नहीं होगा। किन्तु प्रशासन में दोनों ही प्रकार के कार्यों का समावेश होना चाहिए। प्रत्येक प्रशासकीय संगठन में दोनों ही प्रकार के व्यक्ति होते हैं। वे जिनका सम्बन्ध व्यवस्था से है और वे जिनका सम्बन्ध कार्यों के सम्पन्न करने से है।

अतः लोक प्रशासन को निश्चित सीमाओं में बाँधना सम्भव नहीं है उसकी कोई सर्वमत एवं निश्चित परिभाषा भी नहीं है। लोक प्रशासन के स्वरूप को जो तत्व सामान्य रूप में निर्धारित करते हैं वे हैं—सम्प्रेषण, आवागमन के साधन, समाज में रहने वाले सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्ध, प्रशासन का स्वरूप प्रत्येक काल एवं परिस्थिति में एकसा हो, यह आवश्यक नहीं है। क्लाइव के समय का प्रशासन मोरार जी देसाई के प्रशासन आवश्यक रूप से भिन्न होगा। सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक मानवों का आवश्यक रूप से लोक प्रशासन के स्वरूप पर प्रभाव होता है। निजी प्रशासन को लोक प्रशासन नहीं कहा जा सकता। जिस कार्य को करने के लिए सामूहिक प्रयत्न की आवश्यकता न हो वह लोक प्रशासन के लिए व्यर्थ है। प्रशासक वह है जिसके द्वारा इन तीन कार्यों का सम्पादन किया जाय—निदेशन, नियंत्रण एवं समन्वय। फैलिक्स निग्रो ने लोक प्रशासन की प्रकृति को एक वाक्य में बाँधकर रख दिया है कि “यह सार्वजनिक सन्दर्भ में सामूहिक एवं सहकारी प्रयत्न है।” (Co-operative group effort in a public setting)

लोक प्रशासन का क्षेत्र

(Scope of Public Administration)

लोक प्रशासन, प्रशासन की ही एक जाति है। अपने व्यापक रूप में लोक प्रशासन उन सब बातों से सम्बन्धित है जिनका सम्बन्ध सार्वजनिक नीति से समाज के सांस्कृतिक मूल्य के रूप में है। परिवर्तन के इस युग में लोक प्रशासन जैसे गतियुक्त विषय का क्षेत्र निश्चितbकरना बहुत कठिन है। मार्क्स (F. Marx) के अनुसार लोक प्रशासन के अन्तर्गत वे समस्त विषय आते हैं, जिनका सम्बन्ध सार्वजनिक नीति से है, स्थायी परम्पराओं के अनुसार, लोक प्रशासन के अर्थ असैनिक संगठन, कर्मचारियों एवं प्रक्रियाओं से लगाये जाते हैं जो प्रशासन को प्रभावशाली बनाने के लिए कार्यपालिका को दिये जाते हैं। व्यावहारिक दृष्टि से लोक प्रशासन के अन्तर्गत वे समस्त बातें आती हैं जिन्हें सरकार के असैनिक स्रोत राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयोग में ला सकते हैं। लोक प्रशासन के क्षेत्र का हम निम्नलिखित रूप में वर्णन कर सकते हैं-

  1. कार्यपालिका की क्रियाशीलता का अध्ययन (It is the study of Executive in action)- कुछ लेखकों के अनुसार लोक प्रशासन, प्रशासन का वह अंग है जो कार्यपालिका के क्रियाशील तत्वों का अध्ययन करता है। लोक प्रशासन का सम्बन्ध कार्यपालिका की उन समस्त असैनिक क्रियाओं से है जिनके द्वारा वह राज्य के निश्चित लक्ष्यों को प्राप्त करने की चेष्टा करता है। लोक प्रशासन का यह संकुचित रूप है। प्रशासन का वास्तविक उत्तरदायित्व कार्यपालिका के ऊपर है चाहे वह राष्ट्रीय, राजकीय अथवा स्थानीय स्तर की क्यों न हो।
  2. इसका सम्बन्ध सरकार केक्यों और कैसेसे है (It deals with how’ and what’ of the government)- लोक प्रशासन का सम्बन्ध सरकार के ‘क्या’ से है जिसके अर्थ हैं उन समस्त लक्ष्यों की उपस्थिति, जिनको हम सामग्री कहते हैं, और जिनको पूर्ण करने के लिए वे प्रयत्नशील रहती है। ‘कैसे’ का सम्बन्ध साधनों से है जिनका प्रयोग सरकार उन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए करता है। वित्त कर्मचारियों की भर्ती, निर्देशन, नेतृत्व, इत्यादि इसके उदाहरण हैं। इसके अन्तर्गत प्रशासन के दोनों पहलू आ जाते हैं सिद्धान्त तथा व्यवहार।
  3. इसका सम्बन्ध सामान्य प्रशासन से है (It deals with problems of general administration)- लक्ष्य, निर्धारण, व्यवस्थापिका एवं प्रशासन सम्बन्धी नीतियाँ, सामान्य कार्यों का निर्देशन, स्थान तथा नियंत्रण, आदि लोक प्रशासन के क्षेत्र में सम्मिलित हैं।
  4. लोक प्रशासन का सम्बन्ध संगठन सम्बन्धी समस्याओं से है (It deals with the problems of organization)- लोक प्रशासन के अन्तर्गत हम प्रशासनिक संगठन का अध्ययन करते हैं। सरकार के विभागीय संगठन का अध्ययन इसके अन्तर्गत किया जाता है। लोक प्रशासन के क्षेत्र में सेवाओं (असैनिक) के विभिन्न सूत्र, उसके संगठनों तथा क्षेत्रीय संगठनों का व्यापक अध्ययन करते हैं।
  5. पदाधिकारियों की समस्याओं का अध्ययन (It deals with the problems of personnel)- लोक प्रशासन के क्षेत्र में पदाधिकारियों की भर्ती, प्रशिक्षण, सेवाओं की दशा, अनुशासन तथा कर्मचारी संघ आदि समस्याओं का व्यापक रूप से अध्ययन करते हैं।
  6. सामग्री प्रदाय सम्बन्धी समस्यायें (It deals with the problems of material supply)- लोक प्रशासन के अन्तर्गत खरीदारी, स्टोर करना, वस्तु प्राप्त करने के साधन तथा कार्य करने के यंत्र आदि का विस्तृत अध्ययन किया जाता है।
  7. वित्त सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन (Study of the problems of finance)- लोक प्रशासन के अन्तर्गत बजट, वित्तीय आवश्यकताओं की व्यवस्था तथा करारोपण आदि का अध्ययन किया जाता है।
  8. प्रशासकीय उत्तरदायित्व (Administrative Accountability)- लोक प्रशासन की परिधि में हम सरकार के विभिन्न उत्तरदायित्वों का अध्ययन करते हैं। न्यायालयों के प्रति उत्तरदायित्व, जनता तथा विधान-मंडल आदि के प्रति प्रशासन के उत्तरदायित्व का अध्ययन किया जाता है।
  9. मानवीय तत्व का अध्ययन (Study of human element)- मानवीय तत्व के अभाव में लोक प्रशासन का क्षेत्र अपूर्ण ही कहा जायेगा। अमरीकी लेखक साइमन तथा मार्क्स ने लोक प्रशासन के अध्ययन में मानवीय तत्व के अध्ययन को विशेष महत्व दिया है। व्यक्ति ही समस्त प्रशासकीय व्यवस्था का संचालक, स्रोत, आधार तथा मार्ग निर्दिष्टा है। मानव मनोविज्ञान के अध्ययन बिना लोक प्रशासन की विविध समस्याओं को नहीं समझा जा सकता। प्रशासन पर परम्पराओं, सभ्यता, संस्कृति एवं बाह्य वातावरण का प्रभाव पड़ता है। बाह्य वातावरण के सहयोग से हमारे अन्दर एक दृष्टिकोण की उत्पत्ति होती है, मानवीय व्यवहार के ही सन्दर्भ में शासकीय नीतियों का उतार-चढ़ाव होता रहता है। इतिहास की दृष्टि में ही हमारी राष्ट्रीय नीतियों का निर्धारण होता है। लोक प्रशासन की विविध समस्याओं को हमें मानवीय व्यवहार के परिप्रेक्ष में देखना चाहिए। लोक प्रशासन एक सामूहिक मानवीय क्रिया है। सामूहिक सम्बन्धों का आधार क्या है तथा व्यक्ति उन आवश्यकताओं की पूर्ति किस प्रकार कर पाता है, यह विचारणीय विषय लोक प्रशासन का है। प्रशासकीय निर्णयों पर किन-किन तत्वों में व्यापक रूप से प्रभाव होता है, इसका अध्ययन हम लोक प्रशासन में करते हैं। पं० नेहरू ने एक बार कहा था कि “अन्तिम विश्लेषण में प्रशासन अन्य बहुत सी चीजों की भाँति एक मानवीय समस्या है। इसमें मनुष्यों के साथ व्यवहार करना पड़ता है कि आँकड़ों की किसी तालिका के साथ प्रशासक उसके सम्पर्क में आने वाले लोगों के सम्बन्ध में अव्यावहारिक रूप से विचार कर सकता है, उनके सम्बन्ध में ऐसे निष्कर्ष निकाल सकता है जो प्रत्यक्ष रूप में अन्यायपूर्ण हों किन्तु जिनमें मानव तत्व को भुला दिया गया हो। अन्ततः, चाहे आप किसी भी विभाग में कार्य कर रहे हों आखिर वह मनुष्यों ही की समस्या है और जैसे ही हम उसको भुला देते हैं, हम वास्तविकता से दूर जा पड़ते हैं।”

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