मौखिक अभिव्यक्ति
मौखिक परीक्षा का उद्देश्य
- बालक को इस योग्य बनाना कि उसने जो देखा हो, सुना हो, पढ़ा हो अथवा अनुभव किया हो, उनका वर्णन शुद्ध भाषा में दूसरों के सामने कर सके।
- बालकों को शुद्ध उच्चारण, उचित स्वर, उचित गति एवं उचित हाव-भाव के साथ बोलना सिखाना।
- छात्रों को इस योग्य बनाना कि वे पूछे गए प्रश्नों का उत्तर स्पष्ट रूप से उचित ढंग से दे सकें।
- छात्रों को नि:संकोच होकर अपने विचार व्यक्त करने योग्य बनाना।
- बालकों में स्वाभाविक ढंग से वार्तालाप करने की क्षमता विकसित करना।
- छात्रों को मधुरतापूर्वक शिष्टाचार के नियमों का पालन करते हुए बोलना सिखाना।
- छात्रों को इस योग्य बनाना कि अपनी कही हुई बात की सार्थकता सिद्ध कर सकें।
- बालकों को धाराप्रवाह एवं प्रभावशाली तरीके से बोलना सिखाना।
- छात्रों को परिस्थिति एवं आवश्यकतानुसार शब्दों का प्रयोग करना सिखाना।
मौखिक अभिव्यक्ति का महत्व / आवश्यकता
मौखिक अभिव्यक्ति की आवश्यकता को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से प्रकट कर सकते हैं-
- मौखिक भाषा ही अभिव्यक्ति का सहज एवं सरलतम माध्यम है।
- मौखिक भाषा द्वारा ही मनुष्य अपने भावों को स्वाभाविक रूप से दूसरों के सामने व्यक्त कर सकता है।
- मौखिक भाषा द्वारा कुशल व्यक्ति अपनी वाणी से जादू जगा सकता है।
- दैनिक जीवन के सभी क्रियाकलापों में मौखिक भाषा ही प्रयुक्त होती है।
- इसके द्वारा बालक की जिज्ञासा शान्त होती है।
- मौखिक भाषा द्वारा नवीन जानकारी प्राप्त होती है।
- भाषा शिक्षण का स्वाभाविक क्रम है-सुनना, बोलना, पढ़ना, मौखिक भाषा का प्रयोग बालक को सुनने एवं बोलने में कुशल बनाता है। यह बोलचाल ही पढ़ने एवं लिखने के कौशल को विकसित करती है।
- विद्यालयी पाठ्यक्रमों के सभी विषयों में मौखिक भाषा ही प्रमुख माध्यम है।
- सामाजिक जीवन में सामंजस्य स्थापित करने में मौखिक अभिव्यक्ति ही प्रमुख साधन है।
मौखिक अभिव्यक्ति की शिक्षण विधियाँ
मौखिक कार्य भाषा शिक्षण का प्रमुख आधार होता है। मौखिक भाषा के बिना विद्यालय अथवा परिवार में सीखना-सिखाना दोनों ही असम्भव कार्य है। अत: भाषा शिक्षण कराते समय प्राथमिक स्तर पर ही मौखिक अभिव्यक्ति का विकास किया जाना चाहिए ताकि बालक की अभिव्यक्ति में प्रवाहमयता, शुद्धता, मधुरता आ सके। इसके लिए अध्यापक को निम्न विधियों का प्रयोग करना चाहिए-
- चित्र वर्णन विधि– प्राय: छोटे बच्चे चित्र देखने में रुचि लेते हैं। अतः किसी भी चित्र को दिखाकर बच्चों से चित्र वर्णन कराना चाहिए।जैसे-घोड़े का चित्र दिखाकर अथवा हाथी का चित्र दिखाकर, घोड़े अथवा हाथी के बारे में पूछ सकते हैं। चित्रों को दिखाकर कोई कहानी कही जा सकती है। मौखिक अभिव्यक्ति के लिए वित्र वर्णन सर्वोत्तम विधि है।
- कहानी कथन विधि– प्राय: कहानी सुनना बच्चों की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। अतः अध्यापक पहले स्वयं कहानी सुनाए फिर बच्चे से कहानी सुने। प्रायः सभी बच्चों को बोलने का अवसर प्रदान करना चाहिए। इस प्रकार बालकों को श्रवण कौशल एवं मौखिक अभिव्यक्ति-कौशल दोनों के विकास में सहायता मिलती है।
- सस्वर वाचन– पाठ्यपुस्तक अथवा पाठ पढ़ाते समय अध्यापक पहले स्वय अनुच्छेद का वाचन करे फिर छात्रों द्वारा सस्वर वाचन करवाएं। इसके लिए अध्यापक द्वारा छात्रों को छोटी-छोटी कविता, बाल-गीत आदि कंठस्थ करानी चाहिए।
- कविता पाठ– छोटे बच्चों में यह प्रवृत्ति होती है कि वह कहानी अथवा कविता कहे अथवा सुने। इसलिए बालकों को कविताएँ कंठस्थ कराकर उन्हें कविता पाठ अथवा वाचन के लिए प्रेरित करना चाहिए। उचित हाव-भाव के साथ संचालन कराने से मौखिक अभिव्यक्ति का विकास होता है। यह विधि मौखिक अभिव्यक्ति की शिक्षा देने का प्रमुख साधन है।
- समवेत वाचन– मौखिक अभिव्यक्ति में व्यक्तिगत रूप से वाचन करने में बालक को संकोच होता है। अत: सामूहिक रूप से वाचन करवाया जा सकता है। प्रार्थना, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि इसी में आते हैं।
- अभिनय एवं अनुकरण– अभिनय के अन्तर्गत नाटक, एकांकी में छात्रों को पात्र बनाकर अभिनय करवाया जा सकता है। इससे छात्रों का उच्चारण शुद्ध होगा एवं संकोच की प्रवृत्ति दूर होती है।
- अंत्याक्षरी– इस साहित्यिक क्रिया में बालक कविताओं को कंठस्थ करते हैं और प्रतियोगिता के समय पहले दल के बालक द्वारा कही गई कविता जिस वर्ण पर खत्म होती है। उसी वर्ण से शुरू होने वाली कविता सुनाते हैं। प्रायः बच्चों को कविता में रुचि होती है और मौखिक अभिव्यक्ति का विकास होता है।
- पैनल चर्चा– यह चर्चा उच्च कक्षाओं के लिए उपयुक्त रहती है, लेकिन अभ्यास से निम्न कक्षाओं के लिए भी उपयोगी रह सकती है। इसमें कुछ छात्र-छात्राओं को चर्चा के लिए तैयार किया जाता है। इसमें एक प्रकार से विचार-विमर्श होता है, सामूहिक चर्चा होती है। प्रत्येक बालक तर्कपूर्ण ढंग से अपने भाव व्यक्त करता है। इसमें एक प्रश्नकर्ता भी होता है।
- वार्तालाप विधि– वार्तालाप का विषय बालकों की अनुभव परिधि में होना चाहिए। इसमें बालकों से प्रश्न पूछकर उत्तर देना चाहिए।
- प्रश्नोत्तर विधि– सामान्य विषय या पाठ्य पुस्तक से सम्बन्धित पाठ से छात्रों से प्रश्न पूछे जाने चाहिए तथा उत्तर पूर्ण वाक्य में लेना चाहिए।
- भाषण– किसी भी विषय पर छात्रों को भाषण देने को कहा जा सकता है। विषय छात्रों के अनुकूल होना चाहिए।
उपर्युक्त पाठ्यक्रम क्रियाओं एवं पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन कर अध्यापक छात्रों को मौखिक अभिव्यक्ति का अभ्यास करने के उचित अवसर प्रदान कर सकता है। परन्तु इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि विधियाँ बालक के मानसिक स्तर के अनुकूल हों। बालकों को मौखिक अभिव्यक्ति में सक्रिय भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
महत्वपूर्ण लिंक
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