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राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1992

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1992

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1992 की कुछ नई संकल्पनाएँ या विशेषताएँ

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 की सभी संकल्पनाएँ या विशेषताएँ मौलिक रूप में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की नवीनतम नीति, 1992 में स्वीकार कर ली गयी हैं। ये संकल्पनाएँ या विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

(1) शिक्षा का स्वरूप (Form of Education)-

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार देश के समस्त राज्यों में पाठ्यक्रम का तीन-चौथाई अर्थात् 75 प्रतिशत भाग एक समान होना चाहिए, शेष 25 प्रतिशत भाग में विभिन्न राज्य अपनी-अपनी आवश्यकताओं के अनुसार विभिन्न बातें समाविष्ट कर सकते हैं। पाठ्यक्रम में इस प्रकार की समानता लाने का उद्देश्य सभी छात्रों के अधिकारों एवं कर्तव्यों (Rights and Duties) स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास के समान सांस्कृतिक धरोहर तथा राष्ट्रीय पहचान के प्रतीक का ज्ञान कराना है। सभी राज्यों में 10 + 2 + 3 शिक्षा सीढ़ी का विकास होना चाहिए जिससे दसवीं कक्षा तक देश के सभी विषय सभी छात्रों को अनिवार्यताः पढ़ाये जा सकें। इस प्रकार की व्यवस्था करने से शिक्षा के राष्ट्रीय स्वरूप का विकास होगा। अन्त में इस प्रकार शिक्षा से देश के सभी नागरिक एक सूत्र में बंध सकेंगे और इससे ‘राष्ट्रीय एकता’ (National Integration) को भी प्रोत्साहन मिलेगा।

(2) स्व-क्रिया एवं स्व-अनुभव द्वारा सीखने पर बल (Emphasis on Learning by Self-activity and Self-experience)-

अध्यापकों को चाहिए कि वे छात्रों को स्व-क्रिया तथा स्व-अनुभव द्वारा सीखने पर उचित ध्यान दें और इस प्रकार का वातावरण तैयार करें कि वे स्वयं सीखने के लिए उत्प्रेरित हों। उन्हें पढ़ने के लिए ऐसी आधुनिकतम पुस्तकें प्रदान की जायें कि वे पढ़ने में स्वयं रुचि लें और जीवन में उपयोग में आने वाले ज्ञान को अधिक से अधिक अर्जित करें। वस्तुतः यदि अध्यापकगण इस दिशा में आवश्यक प्रयास करते रहें तो छात्र अपने प्रयास में कभी पीछे न रहेंगे। सीखने के इस आधारभूत सिद्धान्त अर्थात् ‘स्व-क्रिया व स्व-अनुभव द्वारा सीखने के सिद्धान्त’ (Principle of Learning by Self-activity and Self-learning) पर नई शिक्षा नीति में विशेष ध्यान दिया गया है।

(3) नौकरी के लिए डिग्री की अनिवार्यता समाप्त करना (Delinking Degree for Validity of Service)-

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रवर्तकों ने यह अनुभव किया कि यदि नौकरी हेतु डिग्री की अनिवार्यता समाप्त कर दी जाये तो नवयुवकों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर डिग्री लेने की इच्छा स्वयं समाप्त हो जायेगी। वस्तुतः जिन छोटी-बड़ी नौकरियों में डिग्री का, होना या न होना कोई महत्व नहीं रखता उनके लिए डिग्री आवश्यक समझनी भी नहीं चाहिए। विकसित देशों में नौकरी के लिए डिग्री अनिवार्य नहीं है। अतः वहाँ डिग्री प्राप्त लोगों का प्रतिशत । से नीचे है जबकि भारत में अधिकांश नौकरियों में डिग्री की अनिवार्यता होने के कारण, यह प्रतिशत 3.75 (1981 की जनगणना के अनुसार) है। डिग्री की अनिवार्यता समाप्त कर देने से आज जो डिग्री प्राप्त छात्रों की भीड़ है वह स्वतः समाप्त हो जायेगी और उच्च शिक्षा के लिए रुकेकाही आगे जायेंगे।

(4) शिक्षा का व्यवसायीकरण (Vocationalization of Education)-

नई शिक्षा-नीति में शिक्षा के व्यवसायीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया है। बालक का जीवन सुखी हो इसके लिए उसकी रुचि के अनुसार उसे किसी कौशल में प्रशिक्षित कर देना चाहिए। इस दृष्टिकोण को सामने रखते हुए शिक्षा नीति द्वारा प्रतिपादित ‘पाठ्यक्रम’ (Curriculum) में वैज्ञानिक एवं तकनीकी विषयों को स्थान दिया जाये। व्यावसायिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने की दृष्टि से नई शिक्षा-नीति में स्पष्ट कहा गया है कि दसवीं कक्षा में प्रायः 50 प्रतिशत छात्रों को ही साहित्यिक विषय चुनने दिये जायें। शेष 50 प्रतिशत छात्रों को व्यवसायीकरण विषयों को चुनने के लिए प्रोत्साहित किया जाये। शिक्षा के इस व्यवसायीकरण विषय से ‘बेरोजगारी’ (Unemployment) कम होगा और व्यक्ति केवल नौकरी पर ही निर्भर न रहकर किसी विशिष्ट क्षेत्र में अपने अर्जित कौशल का सदुपयोग करेगा।

(5) नैतिक मूल्यों का महत्व (Importance of Moral Values)-

नई शिक्षा-नीति में नैतिक मूल्यों के महत्व को स्वीकार किया गया है। स्वस्थ नैतिकता के विकास से व्यक्ति ‘भाग्यवाद (Fatalism) के स्थान पर अपने ‘कर्म’ (Karma) पर विश्वास करेगा। चूँकि समाज में परिवर्तन लाने के लिए शिक्षा एक सशक्त साधन होता है अतः किसी भी विषय के अध्ययन में जहाँ कभी भी सम्भव हो नैतिक शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। नई शिक्षा नीति की दृष्टि से यदि अन्य विषय की तरह नैतिक शिक्षा को भी पढ़ाया जाता है तो वह छात्रों को केवल सूचना देकर रह जायेगी और वे किसी अवसर के अनुसार आचरण करने के लिए उत्प्रेरित नहीं होंगे। अतः नैतिक शिक्षा देने के प्रत्येक अवसर का उपयोग करना चाहिए। वह प्रत्येक विषय के अध्ययन क्रम में सम्भव है।

(6) परीक्षा प्रणाली में सुधार पर बल (Emphasis on the Reform in Examination System)

नई शिक्षा नीति में परीक्षा प्रणाली के सुधार पर जोर दिया गया है। इसके लिए ‘श्रेणी’ (Division) के स्थान पर ‘ग्रेड’ (Grade) देने का सुझाव दिया गया है। वर्तमान परीक्षा प्रणाली में 45 या 48 प्रतिशत पाने वाले को ‘द्वितीय श्रेणी’ (Second Division) प्रदान की जाती है और 60 प्रतिशत या इससे ऊपर अंक पाने वाले को प्रथम श्रेणी दी जाती है। ऐसी दशा में 44 या 47 प्रतिशत अंक पाने वाले तथा 59 प्रतिशत पाने वाले छात्र यह सोचकर चिन्तित हो जाते हैं कि उनकी श्रेणी व्यर्थ में एक प्रतिशत से पीछे रह गयी। इस चिन्तनीय स्थिति से बचने के लिए नई-शिक्षा नीति में ग्रेड देने की पद्धति अधिक उचित समझी गयी है। इस नीति में 45 से 50,50 से 55 प्रतिशत अंक पानेवाले को ‘बी’ या ‘सी’ ग्रेड प्रदान किया जायेगा। ग्रेड का निर्धारण समस्त बातों की उपलब्धियों के आधार पर किया जायेगा। इसके अतिरिक्त नई शिक्षा नीति में सामयिक परीक्षाओं की संस्तुति की गयी है। केवल एक परीक्षा के आधार पर छात्रों का मूल्यांकन करना उचित नहीं है। इसी प्रकार इस शिक्षा नीति में ‘बाह्य परीक्षकों’ (External Examiners) की नियुक्ति को भी ठीक नहीं माना गया है। इसमें छात्रों के मूल्यांकन का सारा दायित्व अध्यापकों पर डाला गया है। इससे एक तो अध्यापकों का महत्व बढ़ जायेगा, दूसरे छात्रों में बढ़ती हुई अनुशासनहीनता कम होगी और तीसरा मूल्यांकन भी अधिक युक्तिसंगत होगा। इस नीति से प्रभावित होकर कुछ राज्यों में ‘स्वायत्तशासी डिग्री कालेज’ (Autonomous Degree College) की स्थापना पर बल दिया जा रहा है।

(7) सदैव चलने वाले प्राथमिक विद्यालय (Ever Continual Primary Schools)-

नई शिक्षा नीति में प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय वर्ष में पूरे बारह महीने खुले रहने का विचार प्रस्तुत किया गया है। इससे छोटे बच्चों को पर्याप्त शिक्षा प्राप्त हो सकेगी। प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय में कम से कम दो कमरे तथा दो अध्यापक होंगे जिनमें से एक महिला अध्यापक होना अनिवार्य है।

(8) अखिल भारतीय शिक्षा सेवा का गठन (Organization of All India Education Services)-

नई शिक्षा नीति में शिक्षा प्रशासन को अधिक चुस्त एवं फुर्तीला बनाने के लिए ‘अखिल भारतीय शिक्षा सेवा’ (All India Education Service) के गठन पर जोर दिया गया है। इससे शिक्षा अधिकारियों का देश के किसी भी कोने पर ‘स्थानान्तरण किया जा सकता है। ऐसा करने से एक तो अधिकारियों में क्षेत्रवाद’ की भावना नहीं पनपेगी। दूसरे प्रशासन में गत्यात्मकता बढ़ेगी और तीसरे अधिकारीगण क्षेत्र के लोगों तथा नेताओं से प्रभावित हुए बिना अधिक ईमानदारी से कार्य कर सकेंगे।

(9) खुले विश्वविद्यालयों की स्थापना (Establishment of Open Universities)-

नई शिक्षा नीति में उन लोगों के लिए खुले विश्वविद्यालयों की स्थापना पर जोर दिया गया है जो किसी कारणवश उच्च शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकें हैं और अपना भविष्य उज्ज्वल बनाने के लिए आधुनिक ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक हैं। खुले विश्वविद्यालयों के नियम के अनुसार कोई भी अपनी गति से उच्च शिक्षा ग्रहण कर सकता है। किसी भी परीक्षा के अंशों को कई प्रयत्नों से पास कर सकता है।

(10) नवीन शिक्षा संस्थानों की स्थापना (Establishment of New Education Institutes)-

नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत विभिन्न राज्यों में शिक्षा स्तर पर डिस्ट्रिक्ट इन्स्टीट्यूट ऑफ एजूकेशन एण्ड ट्रेनिंग (District Institute of Education and Training) तक ‘डिस्ट्रिक्ट ऑफ एजूकेशन’ (District of Education) के स्थापित करने पर ध्यान दिया गया ये संस्थाएँ किसी जिले (जनपद) में शिक्षित लोगों को आवश्यकता का अनुमान करने के लिए सम्बन्धित अधिकारियों को आवश्यक सुझाव प्रदान करेंगी। इसके अलावा ‘शिक्षा स्तर’ (Standard of Education) को ऊँचा उठाने के उद्देश्य से एक ‘राष्ट्रीय शोध संस्थान’ (National Research Institute) भी स्थापित करने की घोषणा की है।

(11) नवोदय विद्यालयों की स्थापना (Establishment of Navodaya Vidyalayas)-

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में आर्थिक दृष्टि से कमजोर प्रतिभाशाली बालकों को पाँचवीं कक्षा में आगे बढ़ाने के लिए नवोदय विद्यालयों की स्थापना पर ध्यान दिया गया है। इन विद्यालयों में छात्रों के लिए सरकार की ओर से निःशुल्क शिक्षा, भोजन एवं आवास की सुविधा दी जाये। आठवीं कक्षा उत्तीर्ण होने के बाद 20 प्रतिशत छात्रों को दूसरे राज्यों में नवोदय विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने हेतु भेजा जाये। इससे ‘राष्ट्रीय एकता’ (National Integration) को बढ़ावा मिलेगा। इन विद्यालयों में ‘त्रिभाषा सूत्र Three Language Formula) लागू करने का विचार भी प्रस्तुत किया गया है।

(12) पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा (Education for Backward Classes)-

नई शिक्षा नीति में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, विकलांग, महिलाओं आदि की शिक्षा पर विशेष बल देया गया है क्योंकि राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति के लिए इनका अधिकतम विकास आवश्यक समझा गया है। इस दृष्टि से उनके लिए शिक्षा संस्थाओं में विशेष स्थान सुरक्षित’ (Reserved) रखने पर ध्यान दिया गया है।

(13) महिला शिक्षा (Women Education)-

नई शिक्षा-नीति में देश में महिलाओं के स्तर को ऊँचा उठाने की दृष्टि से महिला शिक्षा पर विशेष ध्यान देने का सुझाव प्रदान किया गया है। पुरुषों एवं महिलाओं के मध्य किसी भी प्रकार की असमानता कम करने हेतु प्राविधिक एवं व्यावसायिक शिक्षा में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को समुचित स्थान देने का सुझाव दिया गया है। इसी प्रकार पाठ्यक्रम, पाठय-पुस्तकों आदि के चयन में भेदभाव समाप्त करने पर बल दिया गया है।

(14) साक्षरता कार्यक्रम (Literacy Programme)-

नई शिक्षा नीति में 15 वर्ष से 35 वर्ष की आयु के निरक्षर व्यक्तियों को साक्षर बनाने के लिए एक साक्षरता कार्यक्रम प्रारम्भ करने की बात भी की गयी है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सतत् शिक्षा केन्द्रों (Continuing Education Centres) के खोलने का सुझाव दिया गया है। प्रयोजना अधिकारियों का कर्तव्य है कि वे श्रमिकों की शिक्षा का विस्तार करें। इस शिक्षा प्रक्रिया में रेडियो, टेलीविजन व चलचित्र की सहायता से ‘दूरस्थ शिक्षण’ (Distance Education) को प्रोत्साहित किया जाये।

(15) अध्यापक प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान (Special Attention on Teachers Training)-

नई शिक्षा नीति में अध्यापक प्रशिक्षण पर विशेष जोर दिया गया है और इस बात पर ध्यान दिया गया है कि उपयुक्त व्यक्ति ही अध्यापक बनें, शिक्षकों के स्तर को ऊँचा करने के लिए उनके वेतनमान, सेवा-शर्तों तथा आवास आदि सुविधाओं में सुधार पर बल दिया गया है। इसी प्रकार शिक्षा के स्तर को ऊँचा करने के लिए अध्यापकों को ‘रीफ्रेशर कोर्स’ (Refresher Course) में भाग लेने की बात भी की गयी है जिससे उन्हें विकसित होती हुई नई शिक्षण प्रविधियों (New Teaching Techniques) का ज्ञान मिल सके।

(16) शिक्षा का आधुनिकीकरण (Modernization of Education)-

नई शिक्षा नीति में शिक्षा के आधुनिकीकरण पर विशेष जोर दिया गया है। इसके लिए ‘कम्प्यूटरीकरण’ (Computerization) को आवश्यक बताया गया है। साक्षरता के विकास यह पद्धति अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होगी। शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार में पत्राचार तथा सैटेलाइट के महत्व को स्वीकार करते हुए टेलीविजन, रेडियो, वीडियो कैसेट आदि के प्रयोग पर बल दिया गया है। नई शिक्षा नीति में नवयुवकों को 21 वीं शदी के लिए तैयार करने की बात की गयी है दिया जाये। और यह तभी सम्भव है जबकि उच्च पद्धति को अपनाते हुए शिक्षा का आधुनिकीकरण कर

(17) पर्यावरण की रक्षा पर बल (Emphasis on the Protection of Environment)-

नई शिक्षा नीति में पर्यावरण रक्षा पर विशेष ध्यान देने के लिए कहा गया है। इस सन्दर्भ में अध्यापकों एवं छात्रों से आग्रह किया गया है कि वे नदी, झील, तालाब, पर्वत, वन, चरागाह आदि की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दें। इसके साथ-साथ अध्यापकों एवं छात्रों से मिल तथा कारखानों के आस-पास के वातावरण को विशुद्ध रखने के लिए ध्यान देने को कहा गया है।

(18) खेलों के महत्व को स्वीकार करना (Acceptance of the Importance of Games)-

नई शिक्षा नीति में खेलों के महत्व को विशेष रूप से स्वीकार किया गया है क्योंकि खेल बालकों के लिए स्वाभाविक एवं आनन्ददायक तो होते हैं साथ ही साथ उनके खेलों में भाग लेने से ‘स्वास्थ्य’ (Health) का भी उत्तम विकास होता है जो बहुत आवश्यक है। इस उद्देश्य से क्रीड़ा संगम या खेल संकुल की भावना को आवश्यक बताया गया है। इसके अलावा खेलों के कुछ छोटे-छोटे पाठ्यक्रमों की रचना की भी संस्तुति की गयी है।

(19) ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड (Operation Black Board)-

नई शिक्षा नीति में ‘प्राथमिक शिक्षा’ (Primary Education) के द्रुत गति से प्रचार एवं प्रसार हेतु ‘ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड’ की आवश्यकता पर विशेष ध्यान दिया गया है जिसका अर्थ है ‘शैक्षिक साधनों एवं उपकरणों का न्यूनतम प्रावधान’ (Minimum provision of Educational Aids and Apparatus)। इस प्रावधान के अन्तर्गत प्राथमिक स्कूल को कम से कम दो बड़े कमरे, कुछ आवश्यक चार्ट एवं मानचित्र, श्यामपट्ट, टाट-पट्टी तथा अन्य उपयोगी आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई जायेगी। प्रारम्भ में प्रत्येक स्कूल के लिए दो ‘अध्यापक’ (Teachers) की नियुक्ति।

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